फुदकती गौरैया
गौरैया-रानी, गौरैया-रानी
जब आँगन पर बैठी
मानो फूल खिली हो जैसी
दाना चुन-चुनकर खाती जाती
फुदक - फुदक कर षोर मचाती
वह षोर नहीं मधु प्रतिध्वनि की छाया है
खुद खाती खुद जीती है
ठंडा पानी पीती है
गौरैया रानी के चोंच को देखो
कितना रंग सुनहरा है
गौरैया रानी फिरती जब आँगन में
अपने मधु गीतों से मधुरस कर देती सबको
इतने में जब मालिक आता
कटु बातों की बीन बजाता
भाग जा पूरा दाना चुग ली
तब गौरै
या रानी सोची मन में
गुस्से की आग लगी है तन में
गुस्सा वाले गुस्सा तोड़
परोपकार से जीवन जोड़
यह मानुश तन पाया है
मानुश हाने का लाभ उठा
तू सत्संग की बात चला
गौरैया तुझसे कहती है
तेरा जीवन सफल हो जायेगा
यदि तू ऐसा कर पायेगा
इतना कह कर गौरैया रानी
नभ देष को पंख पसारी
गौरैया रानी, गौरैया रानी
मेरे आँगन में फुदक रही गौरैया रानी।
-रजनीश ”रेन”
हिन्दी(प्रतिष्ठा)
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