गुरुवार, नवंबर 07, 2019

सत्य एक निर्मल धारा:धर्मेन्द्र कुमार का आलेख


सत्य एक निर्मल धारा
आप सभी ने बचपन में क‌ई कहानियां सुनी होगी, और उनमें से क‌ई ऐसी कहानियां भी सुनी होगी जिनमें सत्य की विजय का वर्णन किया गया होगा।

आखिर में इस सत्य को जानने की उत्सुकता मन में आ ग‌ई होगी तो आप अपने माता-पिता और शिक्षकों से सत्य के बारे में पूछा भी होगा, तो उन्होंने विभिन्न मान्यताओं और प्रेरक प्रसंगों  के  माध्यम से सत्य के सम्बन्ध  में विस्तार से जानकारी दी होगी। और जो भी, जैसा भी आपको बता दिया गया होगा आप उसे मान गये होंगे।

ठीक आपकी  ही तरह मेरे साथ भी ऐसा ही  हुआ मैंने सत्य जानने की इच्छा गुरु जी से जताई और मेरे गुरु ने हरिश्चंद्र की कथा सुना दी, पुनः जिज्ञासा हुई तो यही प्रश्न अपने माता से किया तो उन्होंने  श्रीराम और रावण के बीच हुए सत्य की विजय का कथा सुना दी, अपने पिता से सत्य के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने कौरवों पर पाण्डवों की जीत को सत्य की जीत के रुप में बताया। एक दिन अपने चाचा जी से पूछ बैठा कि आप बताइए सत्य के बारे में तो उन्होंने गौतम बुद्ध के द्वारा किए गए जनकल्याण कार्यों को ही सत्य की खोज बताया। मैं अपने मित्र से कहा कि  जितने लोगों से सत्य के बारे में पूछता हूँ, सब अलग-अलग तरह से बताते हैं आप सही-सही बताओ मित्र ने कहा-आधुनिक युग के मसीहा मोहन दास करमचंद गांधी द्वारा रचित  "मेरे सत्य के प्रयोग" नामक रचना को पढ़ लो तो  तुम्हें सत्य का ज्ञान हो जाएगा।

मैं इन सभी  माध्यमों  से असली सत्य को जानने की कोशिश करता रहा अनगिनत कोशिशें  करते हुए क‌ई पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों का अध्ययन किया, महापुरुषों की जीवनियां पढ़ी, नाटक , कहानियां आदि स्रोतों से सत्य के बारे में जानने की कोशिश करता रहा।

एक दिन मन में अजीब सी हलचल पैदा होने लगी और दिल से आवाज आई कि सत्य एक अविरल धारा और निर्मल प्रवाह के रूप में स्थापित मानवता के गुणों से सुसज्जित दि‌व्य ज्योति के रूप में जन्म जन्मांतर से हम सभी को अच्छे कर्मों को करने के लिए प्रेरित करता हुआ मार्ग है।

इस मार्ग पर चलने वाले जितने भी लोग हैं विभिन्न कठिनाइयों को सहन करते हुए अपना कर्म, वचन और मन को शांति प्रदान करने के लिए, विश्व को एकसूत्र में बांधने के लिए, मानवता की भलाई के लिए,जीव मात्र की रक्षा के लिए लगे रहते हैं ।

सत्य के मार्ग पर चलने वाले  हरिश्चंद्र,श्रीराम, श्रीकृष्ण, गौतम बुद्ध, गांधी जैसे अनेकानेक महापुरुष  हमें सत्य के लिए प्रेरित करते रहते हैं , यही सत्य है।

अतः निष्कर्ष रुप में कहा जा सकता है कि सत्य  पत्थर पर खींची गई लकीर की तरह है जो कि अमिट और कभी न खत्म होने वाला मानव धर्म के रूप में स्थापित गुण हैं। सत्य एक सतत  निर्मल धारा है।

रचनाकार:धर्मेन्द्र कुमार पटेल
नौगवां, मानपुर जिला-उमरिया(मध्यप्रदेश)

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2 टिप्‍पणियां:

  1. मेरे हिसाब से जो बहस का विसय नही है वही सत्य है,सत्य निर्गुण है,जो है जैसा है जब हम उसे वैसा का वैसा ही मान लेते हैं तब हम कह सकते हैं कि हमने सत्य को स्वीकार लिया है। शेष सब व्यवस्था,परंपरा ,जाती,धर्म, मानवता आदि के पैमाने सगुण हैं और हमेसा से बहस और चर्चा का विसय रहे हैं। सभी मानवीय व्यवस्थाएं एवोल्यूशनरी हैं यानी समय के साथ उनका उद्भव और विकास हुआ है।
    महात्मा बुद्ध ने जीवन से जुड़े कई सत्य को उजागर किया जिससे परंपरा, व्यवस्था आदि के नाम पर फैले झूठ को एक चुनौती मिली। बुद्ध ने बहुत ही सरल तरीके से सत्य को कहा ।
    एक बार एक वृद्ध महिला अपने पुत्र के निधन पर बुद्ध के पास जाकर अपने पुत्र को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना करने लगी बुद्ध ने उसे एक मुट्ठी चावल दिया और उसे उस घर मे जाकर देने को कहा जहां कभी किसी की मृत्यु नही हुई हो। शाम को वह वृद्ध महिला बुद्ध के पास वापस आयी और वही मुट्ठी भर चावल बुद्ध को वापस देते हुए कहा कि मुझे सबकुछ समझ आ गया है। हमे इसे कहानी से क्या समझना चाहिए सत्य या बुद्ध का धर्म स्वयं निर्णय करें। पर कई धार्मिक पुस्तकों में मृत को जीवित कर देने का चमत्कार मिलता है और भी ऐसे कई चमत्कार धर्म के आड़ में परोसे जाते रहे हैं।

    जीवन एक छणिक घटना है पर उसे हमने कितने झूंठ में लपेटकर रखा रहा । झूंठ को पालने के लिए धर्म, जाती नस्लवाद, राष्ट्रवाद न जाने कितनी ही चीजें गढ़ ली हैं और नए नए गढ़ते चले जा रहें हैं।
    सत्य बिल्कुल हमारे सामने हैं पर मूढ़ता और अहंकार की वजह से हम उसे मानने से इनकार किये जा रहें हैं। हमने justification का रास्ता पकड़ लिया है हम साबित करने के रास्ते पर चल पड़े हैं हमारे नेता कह रहें है कि इसे मानो यही सत्य है और सत्य नही है तब भी कहो कि यही सत्य है जब प्रमाण न दे पाएंगे तब जस्टिफाई करेंगे कि ऐसा मानने के क्या फायदे हैं।
    पहले अज्ञानता थी पर आज सब जानते हैं फिर भी सत्य, सत्य की तरह प्रस्तुत नही हो पा रहा है फायदे और नुकसान की तरह प्रस्तुत हो रहा है। तोल नाप के बहुसंख्यक की तुष्टि और समर्थवान के अहंकार के उत्पाद की तरह प्रस्तुत हो रहा है।

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  2. प्रदीप जी, सार्थक टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद. निश्चित ही आप जैसे विचारवान प्रतिभाओं से जनसमूह के बीच वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होगा. अत्यंत व्यस्तता के बावजूद आप अपने विचार साझा करते रहते हैं, आपका यह योगदान सदैव अविस्मर्नीय रहेगा.

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