रमेश प्रसाद पटेल
जग में आतंकवाद की है चल रही बयार हो,सजग ना हो रहा अब यह सकल संसार हो।
हलचलें मचा रहा, जग त्रस्त हो रहा,
परमाणु बम से हमले पैदा कर रहा।
यह अनल है, इसे समझ नहीं पतवार हो,
सजग न हो रहा अब यह सकल संसार हो॥
जग सो रहा सोचता, मौत का घर नहीं,
कब अंत होगा इसका कोई पता नहीं।
कैसे स्वतंत्र हों. कब पार होंगे मझदार हो,
सजग ना हो रहा अब यह सकल संसार हो॥
आतंकवाद का शिकार नहीं केवल कश्मीर,
न्यूयार्क हमला बना अमेरिका पीर।
भूल न जाना, यह फल नहीं है अनार हो,
सजग ना हो रहा अब यह सकल संसार हो॥
शांति दंड टूटे, आतंकी प्राणों को कपाएँ,
नाश! नाश!! हा महानाश!!! प्रलय लाएं।
सकल जगत डुबोने वाली यह जलधार हो,
सजग ना हो रहा अब यह सकल संसार हो॥
टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे अवशेष मात्र रहेगा,
विश्व जलकर राखों का ढेर दिखेगा।
छाए ना पाए जगत में, अब ऐसा अंधकार हो,
सजग न हो रहा, अब यह सकल संसार हो॥
जग में आतंकवाद की है चल रही बयार हो,
सजग न हो रहा अब यह सकल संसार हो॥
रचना:रमेश प्रसाद पटेल, माध्यमिक शिक्षक
पुरैना, ब्योहारी जिला शहडोल (मध्यप्रदेश)
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