शुक्रवार, अक्टूबर 04, 2019

शिक्षा और संस्कार:अखिलेश पटेल


शिक्षा और संस्कार
धन्य भारत, धन्य-धन्य इसके वासी 
पश्चिम जिसका अनुकरण कर धन्य हुआ,
संस्कारहीन शिक्षा पा  अब वह
पश्चिम का अनुगामी अनन्य  हुआ।

थे वे भी लोग जो आजादी की खातिर बलिदान हुए,
अब हैं नए ज़माने के लोग, कुर्सी की खातिर परेशान हुए।

थे राजा दार्शनिक विक्रमादित्य, थी राज्य में खुशहाली,
जब तक न होगा दार्शनिक राजा, कभी  न होगी अमन बहाली।

चाहे कसूर रहा कुछ भी, उन्होंने चाहा सत्ता हथियाना,
परवाह नहीं जनता की, जारी है शिक्षा से नित संस्कार ढहाना।

अब  शिक्षा है व्यापार,
कहां से आये संस्कार?

हमने सीखा नेताओं से
पटरी उखाड़ना और गाड़ी जलाना
चक्का जाम संस्कृति आयी
स्कूल और दफ्तर बन्द कराना

जोर-जुल्म के टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है,
संसद और विधानसभाओं में अभद्र गालियां संस्कार हमारा है।

शिक्षा होती संग संस्कार के
तो भारत भर में होता सुकून,
न इतने पाप होते,
न बनाना पड़ता दुष्कर्म कानून।

जीता नहीं जा सकता,
युद्ध को हथियार के बिना,
न प्राप्त की जा सकती
शिक्षा संस्कार के बिना।

मानव - मानव में प्रेम हो
संस्कार हमें सिखाता है,
शिक्षा संस्कार के संग हो तो
पथ हमारी संस्कृति का दिखाता है।

संस्कार नहीं फलते पेड़ों पर,
नहीं दिखाते इनको दीवार।
संस्कार सृजित करते शिक्षालय,
घर, समाज और परिवार।

रचना:अखिलेश  कुमार पटेल 
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