पर्यावरण विवर्ण हुआ
रमेश प्रसाद पटेल
मानव सुनो विषैली गैसें,
विश्व युद्ध सी उदित हुई।
पर्यावरण प्रदूषित करते,
वायु में अंतर्निहित हुई।।
विश्व युद्ध सी उदित हुई।
पर्यावरण प्रदूषित करते,
वायु में अंतर्निहित हुई।।
पर्यावरण विवर्ण त्रस्त हो,
आज लगा रोने जैसे।
जीना मुश्किल हुआ सृष्टि में,
नयी आपदा तूफां जैसे।।
आज लगा रोने जैसे।
जीना मुश्किल हुआ सृष्टि में,
नयी आपदा तूफां जैसे।।
धीरे-धीरे विषाच्छादन,
छाने लगा धरातल में।
लगी वनस्पतियाँ मुरझाने,
दूषित वायु तरंगों में।।
छाने लगा धरातल में।
लगी वनस्पतियाँ मुरझाने,
दूषित वायु तरंगों में।।
विष का ऐसा असर बिखरता,
मिटा प्रमोद जगत पुष्पों का।
कलरव खग कुल के न होंगे,
ना ही गुंजन भवरों का।।
मिटा प्रमोद जगत पुष्पों का।
कलरव खग कुल के न होंगे,
ना ही गुंजन भवरों का।।
निज हित में हो मस्त लोग,
ला रहे भयावह ज्वाला।
जीवन रक्षक ओजोन परत,
हर जगह छिद्र कर डाला।।
ला रहे भयावह ज्वाला।
जीवन रक्षक ओजोन परत,
हर जगह छिद्र कर डाला।।
व्याकुल हो कापेंगे अब ये,
जीव जन्तु व समुदाया।
छाई अब यह दशा भयावह,
विवश व्यथा व निरुपाया।।
जीव जन्तु व समुदाया।
छाई अब यह दशा भयावह,
विवश व्यथा व निरुपाया।।
रचना: रमेश प्रसाद पटेल, माध्यमिक शिक्षक
पी.एच-डी (शोध-अध्ययनरत)
पुरैना, ब्योहारी जिला शहडोल (मध्यप्रदेश)
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