दो कविताएँ
रमेश प्रसाद पटेल
1. सरस्वती वंदना
हे माँ सरस्वती, हमें शक्ति दे।
हे वीणावादिनी, हमें रोशनी दे।
हे वीणावादिनी, हमें रोशनी दे।
अज्ञान हमारे हृदय से दूर हो।
ज्ञान-गंगा छलकता कलश हो।
माँ निर्मल विचारों की दृष्टि दे
हे वीणावादिनी, हमें रोशनी दे।
ज्ञान-गंगा छलकता कलश हो।
माँ निर्मल विचारों की दृष्टि दे
हे वीणावादिनी, हमें रोशनी दे।
मातापिता की सेवा में ध्यान हो,
भारत माता के गीतों का गान हो,
सत पथ में अड़ जाने की मति दे,
हे वीणावादिनी, हमें रोशनी दे।
भारत माता के गीतों का गान हो,
सत पथ में अड़ जाने की मति दे,
हे वीणावादिनी, हमें रोशनी दे।
दीन-दुखियों की सेवा में रत हों,
दूसरों की भलाई में निरत हों,
सदाचार, उपकार, संयम का वर दे,
हे वीणावादिनी, हमें रोशनी दे।
दूसरों की भलाई में निरत हों,
सदाचार, उपकार, संयम का वर दे,
हे वीणावादिनी, हमें रोशनी दे।
शब्द मुख से सदा उच्चरित हो,
सुन सब जन, सदा प्रमुदित हों,
विद्या का ऐसा, वर माँ हमें दे,
हे वीणावादिनी, हमें रोशनी दे।
सुन सब जन, सदा प्रमुदित हों,
विद्या का ऐसा, वर माँ हमें दे,
हे वीणावादिनी, हमें रोशनी दे।
2. बनावटी श्रृंगार
श्रृंगार बना तुम पथ से, कभी विचलित न होना,
यह है बनावटी, तुम अपना पथ भुला न देना।
हथियार बनते वहाँ युद्ध करने की होती लालसा,
सही पथ अपनाने से टल जाता भयानक हादसा।
श्रृंगार वीर तुम अपने पथ से भ्रमित न होना,
यह है बनावटी, तुम अपना पथ भुला न देना।
बाजार में व्याप्त श्रंगार के साधन जो नकली,
सजग रहना सदा, तन में घात करते असली।
इन बनावटी प्रसाधनों से तुम सावधान रहना,
यह है बनावटी, तुम अपना पथ भुला न देना।
काम,क्रोध, मोह, लालच जिसके हृदय में होते,
संयम, सदाचार, उपकार इनसे कोसों दूर होते।
आत्मविश्वास सुदृढ़ तुम बनाये रखना,
यह है बनावटी तुम अपना पथ भुला न देना।
संयम, सदाचार, उपकार मानव का श्रेष्ठ श्रृंगार है,
ध्रुव, प्रहलाद, अनुसुइयाँ की गाथाएं जीवन आधार हैं।
तजकर कृत्रिम श्रृंगार सतपथ पर चलना,
यह है बनावटी, तुम अपना पथ भुला न देना।
श्रृंगार बना तुम पथ से, कभी विचलित न होना
यह है बनावटी, तुम अपना पथ भुला न देना।
रचना: रमेश प्रसाद पटेल, माध्यमिक शिक्षक
पी.एच-डी (शोध-अध्ययनरत)
पुरैना, ब्योहारी जिला शहडोल (मध्यप्रदेश)
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