बघेली गजल
केखा खोटहा कही केखा हीरा कही।
है निठुर जब जमाना केसे पीरा कही।।
केसे रोई बताई हम आपनि बिपति।
केहू पिरबेदना दुनिया मा अइसन नही।।
जेखा मानेन हम आपन ऊ दीन्हिसि दगा।
करी केखर भरोसा साथ केखे रही।।
अब उचटि गा हय बिसुआस संसार से।
हर घड़ी अब जुलुम बोला कइसे सही।।
टोरि दीन्ह्या तुहूं सगली उम्मीद का।
एक भरोसा रहा तोंहसे आशा रही।।
सुधि रही या मरत तक जउनु दीन्ह्या सजा।
नाउ से तोंहरे आंसू या बहतय रही।।
ठीक भा तू किहा जउनु जानिन गयन।
पय पारुख तोहांरय उमिर भर रही।।
तूं मिला ना मिला दुःख न होई कबौ।
ना बिसरि पउबय सुधि आय अउतय रही।।
तूं जहां जा खुशहाल जीबन जिया।
रात-दिन माधव मांगन या मगतय रही।।
खेल किसमत के जाने न पाबय कोऊ।
दूध बिगड़े के बादय बनत है दही।।
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