शुक्रवार, मई 28, 2021

प्रकृति (कविता) : शोभा तिवारी 'समीक्षा'


  
शीर्षक  -  प्रकृति (कविता)
प्रकृति के ये नजारे 
            कितने सुंदर कितने प्यारे ,
नौका मे  करूँ विहार 
          कभी इस आर कभी उस पार,
नीले  गगन तले 
                    चले  ठंडी -ठंडी पवन,
देख कर दृश्य यह
              भाव विभोर हो रहा मन  ।
नदियॉ रहती अपनी धुन में 
              आसमान नीला - नीला 
खुबसूरत इन वादियों में 
                पक्षी उड़ते मस्तमौला
मन करता  हैं मै भी 
                  पक्षी  बन उड़ जाऊँ 
छू   लूँ  जाके गगन 
            हवा के साथ लहराऊँ ।
सुबह का सूरज उगता जैसे 
               नयी प्रेरणा  लाये 
उठो , जागो ,काम करो
            आलस त्यागो यही  सिखायें 
  इन बहारों  को देख 
                 खुशी मिल गयीं 
लगता  है जैसे 
           दिल की कली खिल गयी 
 कितनी सुंदर , कितनी प्यारी 
              लगती  हैं धरती  हमारी ,
 प्रकृति का श्रृंगार कर  सुन्दरता 
              हो जाती और भी  न्यारी।
इसी प्रकृति  के प्रेम मे
             आओ कही खो जाएँ ,
करते  रहे  प्रयत्न  हम अपनी 
         प्रकृति  को खुशहाल  बनाये ।
रचना:-
शोभा तिवारी "समीक्षा "  
          कोटाबाग , 
   नैनीताल , उत्तराखंड
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