॥दोहा॥
प्रेम बनाये काम सब,
प्रेमहिं सुख आधार।
वशीकरण यह प्रेम है ,
प्रेम जीवनाधार ॥
॥चौपाई॥
प्रेम से प्रेम बढ़े दिन
दूना। प्रेम बिना यह जीवन सूना॥
प्रेम प्रसंग पवित्र
पियारा। प्रेम पराग मधुपकण धारा॥
प्रेम पियासे सुर-नर मुनि
सब। प्रेम के बसी भये खग-मृग सब॥
प्रेम के बसी होहिं
भगवंता। प्रेम में रति का वास अनंता॥
प्रेम से राष्ट्र अमित
अखंडा। प्रेम दिलावे नहीं कछु दंडा॥
दंपत्ति प्रेम कुटुम्ब
सुधारहिं। सम्पति प्रेम सकल निस्तारहिं॥
कर्तव्य से प्रेम
प्रतिष्ठा देई। लोगन प्रेम सुखद पल होई॥
प्रेम का भूखा हर नर - नारी। प्रेम से मिले महातम भारी॥
॥दोहा॥
जे निज स्वारथ रत रहहिं,
करे न कछु उपकार।
ते नर पशुवत जियत हैं, पावत नहिं सत्कार
॥
॥चौपाई॥
प्रेम सकल रस की है खाना।
प्रेमहिं बसे होहिं भगवाना ॥
प्रेम अकर्षण और उजाला।
प्रेम उमंग उत्साह का प्याला ॥
प्रेम दिलोदिल का है
मेला। प्रेम स्वाभाविक भावुक खेला॥
प्यार , मोहब्बत नाम अनेका। स्नेह, इश्क, लव एक से एका॥
ढाई आखर का यह नामा।
व्यापक अर्थ सकल सुख धामा॥
जाकी होहि भावना जैसी।
प्रेम - पकट होवे तिन तैसी ॥
प्रेम बीज अंकुरन समाना।
तरूबर होहिं फूल फल नाना॥
धरणीमन उपजाऊ जैसे। प्रेम फले मन तरूवर तैसे॥
॥दोहा॥
अपनापन ही प्रेम है,
प्रेम समर्पण भाव।
प्रेम समन्वय भाव का, संकट प्रेम बचाव॥
॥चौपाई॥
प्रेम होय दुख - सुख का
साथी। प्रेम से शीतल होय द्वि छाती॥
परम पवित्र है प्रेम
पिपासा। अन्तर्मन अभिव्यक्ति दिलासा॥
प्रेम न टूटे काहू तोड़े। प्रेम बसी होवे हैं जोड़े ॥
प्रेम बिखरना नहीं चाहता। लेकिन निश्छल भाव चाहता ॥
प्रेमशक्ति है प्रेमभक्ति
है ।निस्वार्थ चाह की अनुरक्ति है ॥
मानव को मानवता देता। जीवन को अनुशासन देता ॥
प्रेमहिं जीवन हो आबादा। कपटी प्रेम करे बरबादा॥
निश्छल प्रेम करे जो कोई।
जीवन सकल जनम फल होई ॥
॥दोहा॥
तन - मन - धन सब प्रेम है, प्रेम मानवी
मूल्य ।
प्रेम बिना सृष्टि नहीं, प्रेम प्रकृति
अनुकूल॥
प्रेम रंग व्यापक अती, प्रेम बिना सब सून।
प्रेम ही जीवन मृत्यु है, जीवन प्रेम सकून॥
॥चौपाई॥
वत्सल प्रेम माता उपजाये। गुरू प्रेम मारग दिखलाये॥
जीवन साधे प्रेम पिता का।जग
साधे ज्यों लौ सविता का॥
परिजन प्रेम उठाये ऊपर। ज्यों गिरिवर चोटी ले ऊपर॥
सभ्य समाज सो प्रेम बढ़ाये । सदा सुखी आनंद मनाये॥
प्रेमहिं प्रेम बढ़े दिन राती। प्रेम बिना नहि ठण्डक छाती॥
राष्ट्र प्रेम सम नहीं
कछु सेवा। यह विचार मन में धरि लेवा॥
प्रेम भार्या जीवन
साथी। जिससे
जीवन होवे हाथी ॥
सुतका प्रेम बुढ़ापा साधे। सुता प्रेम रिश्ता में बांधे॥
॥दोहा॥
प्रेम सहोदर राखिये,
सब सो नित प्रति जोय।
प्रेम तार टूटे नहीं, राखहुं याहि सजोय ॥
रचना:
राम सहोदर पटेल
शिक्षक
ग्राम-सनौसी, थाना-ब्योहारी तहसील-जयसिंहनगर
जिला-शहडोल (मध्यप्रदेश)
अतिसुंदर
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