रविवार, मार्च 21, 2021

नीति परक दोहे : राम सहोदर पटेल


★नीति परक दोहे★
बातन से बाते बने, बातन बात नसाय । 
बातन से गौरव मिले, बातन बात दिलाय॥॥

फरिका करत बयान है, भीतर की सब हाल ।
ताल नीर मैलो दिखा, प्यास बुझे तत्काल॥2॥

मन मैला जब होत है ,  बाहर ही दिख जात।
कूड़ा दरवाजा पड़े,  भीतर की क्या बात ॥ 3॥

दरवाजे कचरा पड़ा , भीतर कचरा होय ।
भीतर–बाहर एक सम , जान परत सब कोय॥ 4॥

अधपढ़ की संगोष्ठी , अरू दूर्जन का साथ । 
जबरा केरी मित्रता निश्चित करे विहाथ ॥ 5॥

अहं प्रेम दोनों अरी, दोनों रहें न संग । 
एक रहे दूजा भगे , या होवेगा जंग ॥ 6॥

एक बेर तरू के लगे , बेर - बेर फल होय । 
फल चाखे नर तोष से,सिद्ध जन्म  फल होय॥7॥
 
विनय सहोदर करत हैं, जाय सहोदर पास । 
मोहिं  सहोदर मानकर, राख सहोदर खास ॥ 8॥ 

चन्चल मन चंचल सदा,  रहे न स्थिर जान। 
चंचल जल की भांति है,संयम से रख ध्यान॥9॥

मानुष पानी के गये,  बैठन को नहिं ठौर ।
पानी जतन बचाबहु , गर चाहो निज खैर ॥10 ॥ 

अम्बर घन बरसे वरुण, गिरि पीताम्बर धार। 
अम्बर भी भीगा नहीं,  इन्द्रदेव गे हार ॥ 11॥

चिकनी सुपड़ी बात में, छिपी कपट जंजाल 
सुन्दर फूल गुलाब के,  कांटे खीचे खाल ॥12 ॥ 

जान हथेली  पर लिये, सीमा पर जो  ज्वान।
धन्य  मात वह जन्म दे, किया बड़ा अहशान ॥13॥ 

कड़वे बोलन की सजा, खीरा जैसा होय। 
अलग किया सिर काटकर,निन्दत हैं सब कोय॥14॥

अहंकार दुश्मन बड़ा, करे समूल विनाश।
धरा रह गया राजपद, , दुर्योधन  के पास॥15॥
 
नारी के अपमान से,  बच नहिं पाया कोय। 
चीर हरण के कारणे, दुर्योधन गया खोय॥16॥

रेती की दीवार हो,  हवा लगे ढह जाय। 
ओछे की ज्यों दोस्ती , स्थायी न रह पाय॥17॥ 

कर्म करो औकात भर, कार्य सफल नित होय।
गर सीमा बाहर हुए, हँसी करें सब कोय॥18॥

 मदिरा सेवन के किये , मान जाय सब टूट।
धन-बल यश का नाश हो, प्रेम सबों से छूट॥19॥

समय अपव्यय मत करो, यह जीवन का सार। 
समय गये मिलता नहीं,  फिर जीवन निस्सार॥20॥

हीरो बनना सीख तू,  जीरो को कर दूर। 
जीरो यदि खोया नहीं,  हीरो चकनाचूर॥21॥ 

देखो अच्छा सब जगह,  अच्छा बनना सोंच।
अच्छा करना कर्म सब, बुरा न रखना सोच॥22॥

लूट किया सब बेशरम , छिपा बेशरम ओंट।
बना बेशरम लाज तज, गया बेशरम सोंट॥23॥

रचना:-
राम सहोदर पटेल, 
शिक्षक
ग्राम- सनौसी, थाना-ब्योहारी, तहसील- जयसिंहनगर
जिला-शहडोल (मध्यप्रदेश)
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3 टिप्‍पणियां:

  1. आपके दोहों को पढ़कर रहीम,कबीर जैसे नीति-निपुण कवियों की शीतल स्मृति हृदय को अथाह आनन्द देता है
    जैसे साक्षात रहीम,कबीर की ओजस्विता आपको प्रसाद में मिली
    हो।।।। आपके इन रचनाओं से बहुत कुछ सीखने को मिलता है।।
    आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।।।।।

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  2. उत्साह बर्धन के लिए सहृदय धन्यवाद।

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