● सपना●
सपने मन में अपने, कुछ तो बुना करें
चाहे विषय अपने मन का ही चुना करें।
जब चाहे बोयें, जितना चाहे बड़ा करें
सपनों की धुन में जैसा चाहे सुना करें।
सपनों को सजाने जैसा चाहे रंग मिलाएं
स्वप्न बाग में चाहे जैसा फूल खिलाएं।
रहें विचारमग्न अकेला या दुनिया घूमें
बैठ अकेला या किसी को मन में लाएं।
सपनों में रहना व विचरना मनमर्जी है
है शिकायत खुद की खुद से अर्जी है।
नहीं किसी भय या चिंता में सपना देखें
सपनों को सजाने में खुली खुदगर्जी है।
सपनों की क्षमता है हवा में महल बनाएं।
पकड़ गगन को चाहे मुट्ठी में भर लाएं।
जाना चाहें पार अंतरिक्ष में यानों से,
सपनों में कीच लपेटें या समंदर नहाएं।
सपना ही तो है, क्यों न उल्लास मनाएं,
दीप प्रज्ज्वलन की सर्वत्र प्रकाश समाए।
मुख मंडल पर स्वाभाविक आभा दमके,
सपनों की यह आभा नव आस जगाए।
इस दुनिया में जो भी छटा निराली हो,
सूखे होठों को तलाशती जो प्याली हो।
कम से कम सपनों में तो हक हो अपना
दृष्टि जाय जिधर वहाँ-वहाँ हरियाली हो।
●रचना●
#सुरेन्द्र_कुमार_पटेल
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