शुक्रवार, फ़रवरी 26, 2021

मुझ पर हँसते हो (कविता)


मुझ पर हँसते हो 

मुझ पर हँसते हो 
क्यूं मेरा मजाक बनाते  हो ,
जितना मै खुद को समझती हूँ 
इतना तुम कहाँ समझते हो ।
मेरा क़ाबिलियत पर भरोसा है मुझे 
क्योंकि खुद के लिए जीना है मुझे ,
इस बात को तुम कहाँ समझते हो 
मुझे नादान समझकर तुम खुद को 
कितना सयाना समझते हो ? 

शोभा तिवारी ✍
काशीपुर उत्तराखंड 😊
मौलिक स्वरचित और अप्रकाशित रचना

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