बाबा तेरी शान ना मिटने दूंगी
मां तेरे संस्कारों को कभी ना भूलूंगीभाई के सपनों की खातिर
अपनी खुशियों का गला मैं घोट दूंगी।
मां तेरे आंखों में आए आंसू
ये मुझ से सहन नहीं होगा
दो पल तू आराम से बैठ सके इसलिए
चूल्हे में रोटियां मैं सेंक लूंगी।
तू चाहे डांटे मुझे या
हर पल मुझे सताये
राखी पर प्यार का धागा बांध
मैं अपनी उम्र भी तेरे नाम करना चाहूंगी।
बाबा तेरे कदमों की आहट सुन
मैं झटपट चाय बना लाऊंगी
परेशानी की एक शिकन भी
आए तुम्हारे चेहरे पर
ये मैं कभी ना देखना चाहूंगी।
बस एक विनती मां,बाबा मेरी ये तुमसे है
तुम्हारे कलेजे का टुकड़ा मैं हूं
मुझे खुद से दूर तुम कभी ना करना।
मुझे एक कोना ही दे देना घर का
मगर मेरी विदाई ना करना
बस उस कोने में बैठ मैं तुमको
मुस्कुराता देख खुश हो लूंगी।
मगर ना भेजना मुझे
पराये घर तुम
जहां मैं तुम्हारी एक
झलक पाने को भी तरस उठूंगी।
और अगर दस्तूर है यही जग का कि
बेटी कलेजे का टुकड़ा नहीं
धन है पराया तो बाबा
सौदा करना मेरा उस हाथों में
जहां मेरी भी कद्र होगी।
मैं सह लूंगी तंज सारे
चूल्हे में रोटियां भी मैं सेंक लूंगी
तुम्हारे संस्कारों पर मैं
आंच कभी ना आने दूंगी।
बस एक उपकार मुझ पर बाबा
तुम इतना कर देना कि
ढूंढ़ देना ऐसा रिश्ता मेरे लिए
जहां भले ही हजारों दुःख मुझे मिले
या ख्वाहिशें मुझे अपनी मारनी भी पड़े।
मगर ढूंढ़ना ऐसा घर मेरे लिए
जहां मेरे तुमसे मिलने पर
कोई पाबंदी ना होगी।।
//रचना//
नैनीताल,उत्तराखंड
आपके स्वप्निल भावांशों को सलाम है ..... कविता में एक तरफ संस्कृति और संस्कारों के फूल उगाने की बात कही जा रही है तो दूसरी तरफ हृदय की पीड़ा ..... आपकी रचना पगी और गढ़ी जान पड़ती है ..... एक अच्छा सन्देश समाज को संप्रेषित करती है ... आपके कला-कौशल को प्रणाम है ....
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