ज्ञान का दान करे शिक्षक,
सीख देत समाज सुधार करे।
अज्ञान तिमिर सब दूर करे,
बन ज्ञान का दीप प्रकाश करे॥
दे अक्षर ज्ञान
अक्षय करके, आस्तित्व असीम अकार करे।
हर काम आसान करे जग का, जन
जीवन भव्य श्रंगार करे॥
निज जीवन काहि जलाय सदा,
जनमानस काहिं प्रकाश भरे।
सत्य सुमार्ग सिखाय सबहिं, सदबुद्धि
समर्थ सुधार करे॥
बंद कपाट कपाल को खोल के,
शिष्य का कार्य आसान करे।
बिन गुरु न विद्या बुध्दि
मिले, वह जीवन मार्ग प्रशस्त करे॥
गुरु ज्ञान बिना सन्मार्ग
मिले नहिं, जीवन बेड़ा पार करे।
विद्या के मंदिर ज्ञान बटे तिन माहिं गुरु भगवान रहे॥
पितु-मात से बढ़कर मान धरे गुरु,
न्याय का मार्ग दिखाय रहे।
सम्मान के काम करे शिक्षक,
कर्तव्य करे कर्मठ रहे॥
सत्य व न्याय का मार्ग धरे नित प्रेरण नव निर्माण करे।
समाज सुधार सदा करके, सिख शीश है साया आशीष धरे॥
कर्तव्य हमारा बने इतना,
गुरुदेव का शुक्र गुजार करें।
सम्मान करे शिक्षक दिन को,
निज जीवन का उद्धार करें॥
सम्मान करें इनका हरदम, जिन
जीवन जीने योग्य कियो।
सम्मान करें इनका हरदम ,
जिन जग में हमहिं पहचान दियो॥
सम्मान करें इनका हरदम, जिन
मिट्टी से स्वर्ण बनाय दियो।
सम्मान करें इनका हरदम, जिन
चन्द्र व तारा का ज्ञान दियो॥
सच्चा गुरु सान्निध्य गये,
पथ जीवन स्वर्ण सुधार दियो।
गुरु बिन मारग सूझ पड़े नहिं, दानव पशुवत लोग जियो॥
कहत सहोदर जनम जनम गुरु, सीख की कर्ज उतार सके नहिं।
ईश भी ध्यान धरे गुरु का, सम्मान बखानत जात रुके नहिं॥
रचनाकार: राम सहोदर पटेल
शिक्षक, शासकीय हाईस्कूल नगनौड़ी, गृह निवास-सनौसी,जिला-शहडोल(म.प्र.)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया रचना के संबंध अपनी टिप्पणी यहाँ दर्ज करें.