शुक्रवार, जुलाई 03, 2020

डोली (कविता): बी एस कुशराम



👉डोली 👈
बाबुल के घर से एक डोली चली।
उस में बैठकर एक नवेली चली।।
   कंधे से उठाए हैं चार कहार,
   संग में बारातियों की टोली चली।
   बाबुल के घर से-------------
सजना से मिलने के सपने सजाए,
मासूम चेहरा एक भोली चली।।
बाबुल के घर से------------
   सोलह शृंगार किए बैठी है दुल्हन,
   गोटेदार चमकीली चोली सजी।
   बाबुल के घर से-----------
अल्हड़ अठखेलियां करती थी नैहर,
स्तब्ध भाव लेकर हमजोली चली।
बाबुल के घर से------------
   बाबुल का छुटा घर सखियों से बिछुड़ी,
   गमगीन दशा में छोड़ खोली चली।
   बाबुल के घर से-----------
कुशराम विदाई पल होती दुखदाई,
ऐसा लगे जिगर में गोली चली।
बाबुल के घर से एक डोली चली,
उस में बैठकर एक नवेली चली।
दिनांक- 03/07/ 2020
रचनाकार--बी०एस०कुशराम,
बड़ी तुम्मी जिला अनूपपुर (म०प्र०)
मो०-9669334330
       7828095047
     जिला अनूपपुर ( मध्य प्रदेश)
         सधन्यवाद
    ।
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