उधारी (लघुकथा)
आज सुबह से ही बारिस हो रही थी .....। मंहगू जैसे ही बिस्तर से उठता है; वह अपने खाली खेतों के बारे मे सोचने लगता है। तब तक उसकी पत्नी बरामदे में झाड़ू लगा चुकी थी और रसोई घर की ओर बढ़ती है। मंहगू को देखकर जोर से आवाज लगाती है-"सोये रहोगे! आषाढ़ आ गया है।" मंहगू झट से तैयार हुआ और रात का बचा हुआ भोजन खाकर मन ही मन सोंचता है-''अब आषाढ़ लग ही गया है, खेत में धान का थरहा रख देना चाहिए।" यह विचार करते हुए; अपनी गरीबी को छिपाते हुए दुकानदार के पास जाता है, चारों तरफ किसानो की भीड़ लगी हई थी । आज के समय में देशी धान बोने के वजाय हाइब्रिड धान का प्रचलन तेजी से हुआ है, मंहगू का मन भी हुआ कि इस वर्ष हाइब्रिड धान की रोपाई करना है पर लाकडाउन की वजह से कहीं मजदूरी नहीं कर पाया था जिसके कारण उसके पास धान बीज खरीदने के लिए पर्याप्त रूपए नही थे। मन में अपने मेहनत पर भरोसा करके इस वर्ष अच्छी पैदावार करने की सोंच को सकारात्मक करते हुए, दुकानदार से २० किलो हाइब्रिड धान मांगा, दुकानदार मंहगू के हाव-भाव को देख कर प्रसन्न हो रहा था। दुकान पर बीज खरीदने वाले किसानों की भीड़ लगी हई थी, सब नकद धान बीज ले रहे थे और दुकानदार दे भी नही रहा था। मंहगू के 20 किलो धान की कीमत 250 रुपये किलो की दर से 5000 रुपये हुआ। मंहगू अपने जाकिट के खीसा से 2000 रुपये निकाल कर दुकानदार को देता है और विनम्रता से कहा-शेष फसल काटने के बाद। दुकानदार मुस्कुरा कर कहता है-आप धन्य हैं। दुकान पर सभी किसान उधारी देखकर दंग रह गए। दुकानदार मंहगू से कहता है-"उधारी का मतलब ये नही कि आपके पास रुपये नही है, मतलब ये नही की आप मजबूर हैं, मतलब ये नही की मैं सिर्फ नकद बेचता हूँ । उधारी का मतलब है कि -आप कितना सक्षम हैं, आप में विश्वास, ईमानदारी, वचन की कीमत और प्रतिष्ठा कितनी है। मंहगू धान बीज पाकर; दुकानदार के लिए प्रकृति से प्रार्थना करता है। हे! परमात्मा, इस दुकानदार का व्यापार अच्छा फले-फूले।
दुकानदार, मंहगू को अंत में कहता है- "हे! अन्नदाता; आप जैसे वचनधारियों के कारण ही मेरा व्यापार चलता है।
डी.ए.प्रकाश
खांडेकर, शासकीय कन्या शिक्षा परिसर पुष्पराजगढ़ अनूपपुर म.प्र .
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