'मेरा बचपन'
मुझे बचपन की सुध आती है,
निशदिन क्रीड़ांगन में जाया करता था।
सखा और सहपाठियों के साथ,
आँख मिचौली खेला करता था॥
मिलन हुआ करता था नदी किनारे,
जहाँ सघन सुहावन अमराई है।
उपवन के हृदय स्थल में,
एक छोटा सा क्रीड़ा स्थल स्थायी है॥
खेला करता था विविध खेल,
पांव गेंद, लुकाछिपी, और गुल्ली डंडा।
तन स्फूर्त और मन मुदित होता था,
खेल - खेल में हृदय होता था ठंडा॥
नोकझोंक होता था मित्रों के बीच,
आपस में सुलझाया करते थे।
हाथ मिलाकरआलिंगन किया करते थे,
संध्या के समय घर जाया करते थे॥
आपस में मौज - मस्ती खूब उड़ाते थे,
हा, हा, हू, हू भी किया करते थे।
खेल प्रांगण में अपनेपन का एहसास,
मन में खटक नहीं रखा करते थे॥
भोर काल में अध्ययन किया करता था,
माँ सरस नाश्ता दिया करती थी।
अपने हाथों से सजा संवार कर,
विद्यालय को रवाना किया करती थी॥
शायं के समय इष्ट मित्रों के साथ,
बगीचे में टहलने जाया करता था।
आम, जाम, करौंदा, बेर,
सरस, सुहृद फल खाया करता था॥
झुरमुट झाड़ियों को अवलोकित कर,
मेरा मन वहाँ रम जाता था।
उपवन में देखता था विविध सुमन,
घर वापसी का मन नहीं करता था॥
बचपन की जीवंत स्मृतियों के गंघ से,
सुवासित है हृदय का कोना।
पल - पल झलक उन अनुभूतियों का,
विगत अनमोल पल सरस सलोना॥
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रचना✍
स्वरचित एवं मौलिक
मनोज कुमार चंद्रवंशी बेलगवाँ
पुष्पराजगढ़ जिला अनूपपुर मध्यप्रदेश
रचना दिनाँक - १६|०६|२०२०
मुझे बचपन की सुध आती है,
निशदिन क्रीड़ांगन में जाया करता था।
सखा और सहपाठियों के साथ,
आँख मिचौली खेला करता था॥
मिलन हुआ करता था नदी किनारे,
जहाँ सघन सुहावन अमराई है।
उपवन के हृदय स्थल में,
एक छोटा सा क्रीड़ा स्थल स्थायी है॥
खेला करता था विविध खेल,
पांव गेंद, लुकाछिपी, और गुल्ली डंडा।
तन स्फूर्त और मन मुदित होता था,
खेल - खेल में हृदय होता था ठंडा॥
नोकझोंक होता था मित्रों के बीच,
आपस में सुलझाया करते थे।
हाथ मिलाकरआलिंगन किया करते थे,
संध्या के समय घर जाया करते थे॥
आपस में मौज - मस्ती खूब उड़ाते थे,
हा, हा, हू, हू भी किया करते थे।
खेल प्रांगण में अपनेपन का एहसास,
मन में खटक नहीं रखा करते थे॥
भोर काल में अध्ययन किया करता था,
माँ सरस नाश्ता दिया करती थी।
अपने हाथों से सजा संवार कर,
विद्यालय को रवाना किया करती थी॥
शायं के समय इष्ट मित्रों के साथ,
बगीचे में टहलने जाया करता था।
आम, जाम, करौंदा, बेर,
सरस, सुहृद फल खाया करता था॥
झुरमुट झाड़ियों को अवलोकित कर,
मेरा मन वहाँ रम जाता था।
उपवन में देखता था विविध सुमन,
घर वापसी का मन नहीं करता था॥
बचपन की जीवंत स्मृतियों के गंघ से,
सुवासित है हृदय का कोना।
पल - पल झलक उन अनुभूतियों का,
विगत अनमोल पल सरस सलोना॥
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रचना✍
स्वरचित एवं मौलिक
मनोज कुमार चंद्रवंशी बेलगवाँ
पुष्पराजगढ़ जिला अनूपपुर मध्यप्रदेश
रचना दिनाँक - १६|०६|२०२०
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