'आषाढ़ का पहला दिन'
आर्द्रा नखत की आकृष्ट आगाज।
पावस अभिनंदन में उत्तिष्ठ समाज॥
दिक्-दिगंत रिमझिम बारिश की फुहार।
भारतीय कृषक मना रहे पावस त्यौहार॥
उर्वरता की देवी पर अध्य॔ चढ़ा रहे हैं।
पुरखों के परंपरा को निभा रहे हैं॥
प्रकृति पुरुष! को नर- नारी दे रहें दुहाई।
कृषक मुदित होकर कर रहें बुवाई॥
कृषक बदन वसन शोभित बहु रंग।
हर्षित मन बहु खुशियाँ अतरंग॥
सुन्दर कूँड से कृषक के उर में आनंद।
हल के आगोश में मृदा की अजब सुगंध॥
खेतों में रोपित विविध अन्न, धान्य।
मानो धरती माँ की आंचल की शान॥
ठुमकती रजनी दृष्टिपात सघन साँवली।
बारिश से लबालब सरोवर, बावली॥
गोह टकटकी लगाए जग को देख रही है।
मानो स्तब्ध मन से कुछ सोच रही है॥
हवा की सरसराहट से पादप जाग उठे।
पावस ऋतु में खद्योत् जगमगा उठे॥
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रचना
मनोज कुमार चंद्रवंशी
पुष्पराजगढ़ जिलाअनूपपुर (म0प्र0)
रचना दिनाँक-१९|०६|२०२०
आर्द्रा नखत की आकृष्ट आगाज।
पावस अभिनंदन में उत्तिष्ठ समाज॥
दिक्-दिगंत रिमझिम बारिश की फुहार।
भारतीय कृषक मना रहे पावस त्यौहार॥
उर्वरता की देवी पर अध्य॔ चढ़ा रहे हैं।
पुरखों के परंपरा को निभा रहे हैं॥
प्रकृति पुरुष! को नर- नारी दे रहें दुहाई।
कृषक मुदित होकर कर रहें बुवाई॥
कृषक बदन वसन शोभित बहु रंग।
हर्षित मन बहु खुशियाँ अतरंग॥
सुन्दर कूँड से कृषक के उर में आनंद।
हल के आगोश में मृदा की अजब सुगंध॥
खेतों में रोपित विविध अन्न, धान्य।
मानो धरती माँ की आंचल की शान॥
ठुमकती रजनी दृष्टिपात सघन साँवली।
बारिश से लबालब सरोवर, बावली॥
गोह टकटकी लगाए जग को देख रही है।
मानो स्तब्ध मन से कुछ सोच रही है॥
हवा की सरसराहट से पादप जाग उठे।
पावस ऋतु में खद्योत् जगमगा उठे॥
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रचना
मनोज कुमार चंद्रवंशी
पुष्पराजगढ़ जिलाअनूपपुर (म0प्र0)
रचना दिनाँक-१९|०६|२०२०
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