बुधवार, जून 10, 2020

प्रकृति से प्रेम: रमेश प्रसाद पटेल


प्रकृति से प्रेम

प्रकृति से है जीवन
सृष्टि का संचालन।
अनवरत से चल रहा
उसी के हाथ में नियंत्रण।
सर्वशक्तिमान है
जीवो का महाकाल है।
प्रकृति को नगण्न न समझ
हथियारों का भी ढाल है।
प्रकृति में सभी समाये
जानते हुए बने अनजान।
परिणाम आया मिटा शान
ज्ञानी बनकर हुई अज्ञान।
जो सत्य है जो अनंत है
निज हित में करते प्रहार।
स्वार्थपरता में डूबे
तन मन में भरा अहंकार।
क्रोध में अंधा बने हुए
हृदय में प्रेम हुआ नष्ट।
बादलों की गरज जैसे
परिणाम में छाया कष्ट।
प्रकृति से प्रेम करिये
जीवन में हर्ष छाएगा।
परिवार का मुखिया
समझे उद्धार हो जाएगा।
ऋषि-मुनियों ने गायी
दैवी प्रकृति प्रेम की।
स्वार्थ त्यागें हृदय से
जीवन को जीने की।


रचना: रमेश प्रसाद पटेल
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