वनवासी
1
शहर की
अफरा-तफरी
लांक डाउन की
पाबंदियों
से परेशान होकर
आज मेरा मन
जंगली हुआ।
2
मैंने जंगली
गावों में जाकर देखा
आज भी वहा लोग
खुशी में मस्त हैं।
3
जहां सारी
दुनिया है मौत के कगार पर
डूबती उतराती है
अंतर्द्वंद के विचार पर
वही वनवासी
तेंदूपत्ता तोड़ने
और चिरौंजी
बटोरने में व्यस्त हैं।
4
एक बुजुर्ग से
मैंनें कहा....
आज कल शहरों में
महामारी है,
एक दूसरे को
छूने से होती है।
5
उसनें कहा.....
हमारी वनदेवी
हमारी रक्षा करती है,
वही सब
बीमारियों को दूर करती है,
मैंने पूंछा यह
वनदेवी कहां रहती है?
6
उसने कहा......
अरे! शहरी बाबू
यह कोई मूर्ति नहीं है।
जंगली जड़ी, बूटियां,ही वनदेवी हैं।
हम वनों की
रक्षा करते हैं।
वह हमारी रक्षा
करते हैं।
7
पेड़ जिन्हें हम पूजते हैं।
वही प्राणवायु देते हैं
नदियां जिनका पानी
बोतल के पानी से शुद्ध है।
8
हमारे जंगल की हवा
शहरों की हवा से शुद्ध है।
नि:स्वार्थ भाव वाली
हमारी वनदेवी है।
9
वहां मुझे
सोन्दर्य दिखा
मैं एक दिन का
बनवासी हुआ
पूरे दिन की
थकान दूर करने को
आज भी उनकी
मांदल सुरक्षित है।
10
शहर की चकाचौंध
से दूर,
लोक जीवन के
रंगों से भरपूर,
मैंने वहां
मानवता के संस्कार देखें
जिनके पास रुपए
पैसे नहीं
लोक कल्याण की
भावनाएं हैं।
11
उनकी परंपराएं,मान्यताएं
आज भी जंगलों में सुरक्षित है।
यही उनकी पूंजी है
जिससे मानव जीवन
रक्षित है।
12
इन्होंने ही
सुरक्षित रखा हुआ है।
हवा, पानी, प्राकृतिक संसाधनों को
शुद्ध हवा और
मीठे जल का स्वाद
यह उसी वनदेवी
का है,
प्रसाद...
13
ए जंगली नहीं
है।
छल कपट द्वेश
इनमें नहीं है।
मन से भोले हैं
सरल और विश्वासी हैं।
प्रेम, सौंदर्य, संस्कृति रक्षक,बनवासी।
कोमल चंद
कुशवाहा
शोधार्थी हिंदी
अवधेश प्रताप
सिंह विश्वविद्यालय रीवा
मोबाइल 7610103589
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