स्मृति रेखा
-रजनीश (हिन्दी प्रतिष्ठा)
सच, याद आते हैं वो
जो प्राण अपनी छोड़ गए हैं
और जिनका प्राण
ले लिया गया है
जिन्होंने कभी हँसकर साथ गीत गाए थे
खुशियाँ बरसात की
जिन्होंने कभी हाथ बटाये थे बन्धुत्व काम की
आज वे सिर्फ चन्द
किस्सों में ही
चिन्हित और सुसज्जित हैं
क्या उनका घर
स्वर्ग ही है?
या कोई आत्मखाना
सच, याद आते हैं वो
जो हमसे दूर हैं
पहले रास्ते एक,
मंजिल एक
पर प्राण-विसर्जन सुनिश्चित
काल था या अफवाह
या कोई असावधानियाँ
ले गया झटके से
या जाने में
उस बहुरि का ‘‘प्राण पेवा’’
‘‘काल-दैव’’
प्राण लेता है
कलुषित समाज में कालदैव बन बैठा मानव
भी प्राण लेता है
प्राण जाए बचकर कहाँ?
उसे शरीर छोड़ना
भाता नहीं
शरीर के अन्तस्थ में नहाता वही
पर काल की गति
विचित्र
कुछ साथ लेकर जाता अवश्य
उस ‘‘अवश्य-पत्र’’ पर किसी के प्राण का हस्ताक्षर
सच, याद आते हैं वो
जिन्होंने थोड़ा जिया
समाज दिया
सौम्यता दी
पर हमने दिया
अल्प अश्रुओं की आडम्बरी
प्रसाद था हम पर,
उनका
विश्वास था हम पर, उनका सदा
पर विश्वास उनके
रौंदे गए
विलासिता की मंजिल निर्माणित की गई
तो पर भी शाख में जान नहीं आई
सबेरे और सुबह का
क्रम
दिन डूबने का भ्रम
सदैव बना रहा
उनकी यादें आती रही
एक प्राण दूसरे
प्राण को
नतमस्तक कर सृष्टि मण्डल में दृश्यांकित होते रहे
सच, याद आते हैं वो जो हमसे दूर हैं
शब्दहीन पर प्रवीण हैं
हाँ, उनके प्राण को प्रणाम है
हृदय को सलाम है
उन्हीं की गीत है
उन्हीं का साज है
बनाये उन्हींने
दुनिया
यह संसार जैसे प्रमीत है
सच, याद आते हैं वो
जो हमसे मशहूर हैं
मजबूरी है कि दूर
हैं
शिला प्राण लकीर का
आज स्वर्ग में
सोता फकीर का
रास्ता सदैव हो याद हमें
सर्वस्व का
समर्पण अर्पण इन्हें।।
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