मितव्ययिता:संतुलन एवम समभाव
विवाह मानव समाज की वह व्यवस्था है जिसके द्वारा प्रकृति की वंशवृद्धि की
स्वाभाविक व्यवस्था को बनाये रखा जाता है. हालाँकि समाजविदों की इसकी अन्य
परिभाषाएँ भी हो सकती हैं. किन्तु विवाह संपन्न कराने के तौर-तरीकों का खर्चीला हो
जाना समाज को चिंतित करता है. कहते हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है. इस बात
को चरितार्थ किया है खण्डवा मध्यप्रदेश के समाज सेवियों ने. जिसमें उन्होंने
लॉकडाउन की परिस्थतियों में सादगी के साथ करीब एक सैकड़ा से अधिक विवाहों को
मितव्ययी तरीकों से संपन्न कराया गया है. दावा किया गया है कि यदि यही विवाह
परम्परागत तरीकों से किये जाते तो करोड़ों रूपये खर्च किये जाते. खंडवा, एमपी के लोगों ने बहुत ही अच्छा उदाहरण प्रस्तुत
किया है। बचपन में मुझे भी स्काउट गाइड में प्रशिक्षण प्राप्त करने का मौका मिला ,
एवम् वहीं से मितव्यई जीवन की नींव पड़ी।
कम खर्च में अपना जीवन यापन एवम्
सामाजिक समारोह के हमेशा से पक्ष धर रहे
हैं हम लोग, किन्तु जब इस
सिद्धांत को कार्य में तब्दील करने का
वक्त आता है, तब कुछ लोग
हिम्मत दिखाते हैं एवम् कुछ लोग पीछे हट जाते हैं ।
किसी भी वस्तु या सेवा का प्रचार - प्रसार
करने के लिए जिस प्रकार उद्योगपतियों द्वारा, नामी गिरामी
व्यक्तियों को सामने रखा जाता है , ठीक उसी प्रकार ,
मिताव्यिता का प्रचार प्रसार एवम् अनुकरण करने
हेतु समाज/ देश में प्रतिष्ठा प्राप्त व्यक्तियों को आगे आने की जरूरत है।
ऐसा करने से न सिर्फ समाज एवम् राष्ट्र में एक संतुलन एवम् समभाव स्थापित होगा
, अपितु साधन संपन्न समूह,
अपनी व्यक्तिगत बचत से मानवता के नव निर्माण
में सहयोगी भूमिका निभा पाएंगे 🙏
मनसा - वाचा - कर्मणा के क्रमिक
सिद्धांत के अनुसार संतुलन एवम् समभाव स्थापित करने के लिए पहले अपने मन को तैयार
करना है , उसके बाद हर मंच में,
हर फोरम में इन सद गुणों की चर्चा करके एक Eco System तैयार करना है, फिर आप पाएंगे कि अपने मनो भावों को कार्य में तब्दील करने
में आसानी होगी। ऐसा करके , आप और हम , जीवन में अनेक सकारात्मक एवम् नकारात्मक तनावों से मुक्त हो
सकते हैं।
विश्वास मानिए, संतुलन एवं समभाव
स्थापित करने के लिए बढ़ें हुए ये कदम ,
एक बेहतर मानवता के निर्माण में सहायक हो रहे
हैं । 🙏
जय 🇮🇳हिन्द , जय 🌍 मानवता
जनार्दन 29 मई 2020
नवी मुंबई
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सुंदर लेख एवं उत्तम विचार,यदि कुछ नामी गिरामी लोग मितव्ययिता के उदाहरण प्रस्तुत करें तो समाज की सोच में भी बदलाव आएगा कई लोग तो अपनी क्षमता से अधिक खर्च मात्र सामाजिक दवाब के कारण कर देते हैं और फिर कर्ज़ के बोझ में दबे रहते हैं, उत्तम लेख!
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