धूमिल, धूमिल, धूमिल......
आज तीसरे व्यक्ति ने फिर खेला है।
उसके दंश को पहले ने झेला है।
लेकिन इस बार रोटियों से नहीं
विश्वास से खेला है।
धूमिल ,धूमिल, धूमिल......
यह तीसरा हमेशा से क्यों खेल रहा है ?
पहला मौन होकर क्यों सह रहा है ?
कोई पूछता क्यों नहीं
यह तीसरा कब तक खेलेगा?
पहला कब तक
दर्शक बनकर देखता रहेगा ?
धूमिल ,धूमिल ,धूमिल.........
कोई पूछे संसद मंत्रिमंडल से
या पूछे आधुनिक समाज से
यह व्यवस्था कब टूटेगी ?
पहले की रोटियां बेलना कब छूटेगी ?
धूमिल ,धूमिल ,धूमिल.......
आखिर यह तीसरा है कौन ?
जो खेलता ही जा रहा है।
पहला मजदूर है।
दूसरा किसान है।
तीसरा वह है -
जिसके विरुद्ध बोल नहीं सकते।
शोषण के हर स्वरूप को झेल सकते हैं।
रचना: कोमल चंद कुशवाहा
शोधार्थी हिंदी
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा
मोबाइल 7610 1035 89
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