मुझे ऐसा लगता है कि अब समय आ गया है कि मैं अपनी लिखावट को कागज के पन्नों में नहीं बल्कि इसे मैं किसी पत्थर पर उकेर दूं। ताकि इस सभ्यता के पतन बाद दूसरी सभ्यता का जब कभी हजारों लाखों करोड़ों साल बाद आविर्भाव हो तो उन्हें कागज के पन्ने तो नहीं मिलेंगे लेकिन हमें सिंधु घाटी सभ्यता के विनाश होने जैसा पुख्ता प्रमाण उनको जरूर मिल जाएगा। वे जान सकेंगे कि किस कारण से विकसित सभ्यता का विनाश हुआ था। आज भी हम सिंधु घाटी सभ्यता के विनाश होने के कारणों को टटोलते रहते हैं और कहीं ना कहीं उन कारणों में किसी एक कारण को मतों के आधार पर मान लिया जाता है उस मत के पीछे उस इतिहासकार का वैज्ञानिक दृष्टिकोण सर्वमान्य होता है इसलिए उसे हम सब मान लेते हैं।
इसीलिए कहता हूं कि चलिए अब पत्थरों पर लकीरें खींचते हैं और छेनी हथौड़ी लेकर उस पर लिखते हैं कि किसी और की वजह से इस सभ्यता का विनाश नहीं हुआ बल्कि विनाश इसलिए हो रहा है कि हमने अपने लिए बहुत ज्यादा विकास कर लिए हैं। इसलिए हम विनाश की कगार पर चले गए और हमारा विनाश हो गया। आगामी सभ्यता के लिए एक संदेश होगा कि विकास की सीमा कितनी होनी चाहिए। आज हम अपने आप को नहीं समझा सकते कि हमारे विकास की तय सीमा कितनी होनी चाहिए इस बात को शायद ही कोई समझ पाए और यह बात भी सच है की विकास की अंतिम सीमा बड़े-बड़े रासायनिक हथियार, जैविक हथियार, मिसाइलें गोला बारूद जो हमारे विकास को विनाश में तब्दील कर चुके हैं, यही विकास की शायद अंतिम सीमा थी । जबकि इस सीमा तक हमें नहीं पहुंचना था परंतु हम इस सीमा तक पहुंच चुके हैं और उसी का परिणाम हमारे आपके सामने है। चाहे जो कुछ भी हो मैं बात को प्रामाणिकता के साथ कह सकता हूं कि वजह यही है जब हम पत्थर पर लिखें तो वजह स्पष्ट कर दें ताकि आने वाले समय में सिंधु घाटी सभ्यता जैसे तमाम प्रकार के मत सामने न आएं। चलो एक-एक पत्थर उठाते हैं उन पर छेनी हथौड़ी से मारना शुरू कर देते हैं और चीन की इस कहानी को लिखते हैं। अच्छे-अच्छे शैली में लिखने वाले लेखकों की लिखावट पन्नों तक सीमित रह जाएगी किन्तु हमारे टेढे –मेढे अक्षरों से ही हमारी सभ्यता के नष्ट होने का सच सामने आ जाएगा क्योंकि हजारों सैकड़ों सालों बाद जब भी सभ्यता का जन्म होगा तब कागज के पन्ने, कंप्यूटर, लैपटॉप मोबाइल आदि जितने भी लिखने के साधन हैं सिवाय पत्थर के सब नष्ट हो जाएंगे। बचेगा तो केवल पत्थर जिसमें हमारे इतिहास की गौरव गाथा पढ़ी जाएगी।
तब हमारे शिलालेख जरूर ही पढ़े जायेंगे और जब भी उस सभ्यता के लोगों को यह शिलालेख हाथ लगेगा तब जेम्स प्रिंसेस जैसे विद्वान लिपि पढ़ने मैं कामयाब होंगे और यह स्पष्ट होगा की सभ्यता का विनाश मानव ने स्वयं कर लिया था।
मैं अभी तक जो भी अपने शब्दों में लिखा कोविड-19 का जिक्र नहीं किया था। ऐसा लोग मानते हैं कि कुछ देशों द्वारा अपने आपको सुपरपावर के शीर्ष पर रखने के लिए प्रतिस्पर्धा की दौड़ में पीछे करने के लिए कोविड-19 जैसे विनाशकारी जैविक हथियार को विनाश के लिए विकसित किया गया है , कई देशों का कहना है कि चीन की साजिश से इंकार नहीं किया जा सकता है। विकास के इस प्रतिस्पर्धा के दौर में वह शीर्ष में आना चाहता है इसी प्रकार उसके साथ और भी देश हैं जो उसका साथ दे रहे है जो कि विकास की आंधी दौड़ में पागल हो गये हैं मतवाले हो गये हैं उन मतवाले देशों ने तमाम विश्व के 260 देशों को काल के गाल में धकेल दिया , कोविड-19 जैसे घातक जैविक हथियार का इस्तेमाल कर विकसित मानव सभ्यता को नष्ट करने की तैयारी में हैं।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के स्वयं के हैं)
आलेख:
कृष्ण कुमार केके
ग्राम-आखेटपुर, ब्योहारी जिला-शहडोल
मध्यप्रदेश (भारत)
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