करुण पुकार
हाय !बेबस है यह जिंदगी,
करुण क्रंदन की पुकार।
इस तन में है कसक,
नहीं भरते कोई हुंकार॥
शब्द नहीं जज्बातों में,
तन चिथड़ा अभावों में।
विधाता की कैसी रचना,
मरहम नहीं लगता घावों में॥
क्या? किसको बतलाऊं,
कुछ दिन कैसे बीते हैं।
व्याकुलता की वेदना में,
हम कैसे जीते हैं॥
मलिन बदन अलसा रहा है,
तनिक नहीं दुस्साहस मन में।
लुढ़कते अश्रु कापोलों पर,
सुकून नहीं है तन में॥
क्षुधा पीड़ा स्तब्ध के लिए,
लग जाते हैं कामों में।
नगण्य मात्र कुछ नहीं मिलता,
रवि की ढुलकती शामों में॥
अनुराग नहीं पर अधरों में,
बदन की कैसी व्यथा सुनाऊं।
बिलखती है निज काया ,
कब दीनता से छुटकारा पाऊं॥
जीवन कब अह्लादित होगा,
कष्टों का साया छाया है।
यह जग कुछ नहीं,
विपदा का घड़ी आया है॥
नीरसता है यह ये तन में ,
होली ना दिवाली।
कब उदित होगा सुख के किरण,
रब कब आएगा खुशहाली॥
कैसे हुआ जग सृजन,
हे !भगवान ना समरसता समता।
दीनो की उपकार में,
हिय में तनिक नहीं मानवता॥
काल कवलित तन हो रहा है,
हे!ईश प्राणवायु जीवन में भरदो।
अब सहम नहीं हृदय में ,
पीड़ित तन के लिए कुछ कर दो॥
काव्य रचना:मनोज कुमार चंद्रवंशी
(प्राथमिक शिक्षक)
संकुल खाटी विकासखंड पुष्पराजगढ़ जिला अनूपपुर
मध्य प्रदेश
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