ठंडी गीत
रात या बैरी लागे ठंडी के महिनवा हो।कैसे कटी कैसे कटी ठंडी वाले दिनवा हो।।
हां कैसी कटी कैसे कटी ठंडी वाले के महिनवा हो....2
धूप या ऐसी लागे, जैसे जले अगेठिया हो।
कैसे कटी कैसे कटी ठंडी वाले महिनवा हो।।
हां कैसे कटी कैसे कटी.........
रजाई या ऐसा लागे, जैसे सगे हों मितवा हो।
कैसे कटी कैसे कटी ठंडी वाले महिनवा हो।।
हां कैसे कटी कैसे कटी.........
कपड़े तो ऐसे लागे, जैसे लगे प्रियतमा हो।
कैसे कटी कैसे कटी ठंडी वाले महिनवा हो।।
हां कैसे कटी कैसे कटी.......
रचनाकार:धर्मेन्द्र कुमार पटेल
नौगवां, मानपुर जिला-उमरिया(मध्यप्रदेश)
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