सोमवार, सितंबर 23, 2019

एक वक्त की रोटी


एक वक्त की रोटी


जीवन के सफर में आज भौतिकवादी इंसान ने समय के साथ-साथ पूरे वायुमंडल में मीठा जहर घोल दिया  है। किसी के पास खाने का वक्त नहीं है, और किसी के पास एक वक्त का खाना नहीं है। लोग कहते हैं सब कुछ बदल गया है । लेकिन सच तो यह है कि लोग बदल गए हैं। आइए इसे इस कहानी से समझें।

एक  दिन की बात है  एक अमीर व्यक्ति  की पत्नी रमा  सब्जी लेने गई। वह  सब्जी वाले के पास पहुंचती है। टमाटर उठा कर बोली,"टमाटर क्या भाव दिए ?" 
गरीब सब्जीवाला धीरे से बोलता है, "ले लो दीदी, 20 का एक किलो है" 
रमा   बोली-"15 लगाओ और आधा किलो दे दो" 
सब्जी वाला -"नहीं दीदी, नहीं पड़ेगा"   
 रमा  -"क्यों नहीं पड़ेगा?" 
सब्जी वाला-"महंगाई ज्यादा है ,नहीं पड़ेगा।"
रमा  -"अरे! तुम्हारे घर की सब्जी है। क्यों नहीं पड़ेगा?" 
सब्जी वाला -"बच्चे भूखे रह जाएंगे दीदी !"                 
रमा  ने आधा किलो टमाटर तौलने के लिए कहा  और उसने  सब्जीवाले को  सात रुपये दे दिए। सब्जी वाला बोला- "दीदी, तीन रुपए और चाहिए।"
रमा  अपने थैले में टमाटर रखकर चलते बनी। सब्जी वाला देखता  रह गया। आगे  एक दुकान में पनीर ,शाही पनीर मसाला, और अन्य  बहुत सी  सामग्री उसने लिए व दुकानदार से बोली कितना पैसा हुआ?          दुकानदार ने बताया  "2320 रुपये।"                    
रमा  ने अपना पर्स निकाला  और उसने  दुकानदार को  2320 रुपये  दे दिये। वह  सामान लेकर घर चली गई।

इस कहानी में हमने देखा कि रमा जो कि  एक अमीर व्यक्ति की पत्नी थी सिर्फ पांच रूपये बचाने के लिए  उसने  सब्जीवाले से मोलभाव किये किन्तु जहाँ उसने हजारों रुपये का बिल भुगतान किया, वहां उसने कोई मोलभाव नहीं किया।
निर्बल , गरीब, किसान ,मजदूर, रिक्शावाला, बेबस, लाचार आदमी, छोटा -मोटा  धंधा करने वाले व्यक्तियों  से ही मोल भाव क्यों होता है? बड़े-बड़े शॉपिंग मालों एवं बड़े दुकानों में ऐसा ही मोलभाव क्यों नहीं होता?            गंभीर विषय है, जरा सोचिए मजदूर ,किसान अपने खून पसीने  से आधा पेट खाना खाकर अपने बच्चों के लिए ठंडी, गर्मी, बरसात में मेहनत करके एक वक्त की रोटी के लिए और आप सब के  पेट भरने के लिए मेहनत करता है । अनाज उगाता है। बीज बोने से लेकर खाने लायक सामग्री तैयार करने तक की मेहनत की  कीमत सही मिलना चाहिए। सवाल 3 रूपये का नहीं है। सवाल है गरीबों के  प्रति लोगों की मानसिकता को समझना, उनके  मेहनत की  पूरी  कीमत देना , उनका सम्मान करना। हम आप सब पैसा कमा रहे हैं ,उनको उनके मेहनत की उचित कीमत दें। बदले में उनसे भोजन के लिए सामग्री लें । क्योंकि बिना पैसों  के गरीब जीवित रह सकता  है पर क्या हम आप  बिना भोजन के जीवित रह सकते हैं? नहीं । सोचिए। समझदारी से काम लीजिए।
प्रस्तुति: दीपक पटेल,सहायक अध्यापक, खड्डा, ब्यौहारी 
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2 टिप्‍पणियां:

  1. सब की सोच बदल जाये तो गरीबी दूर हो जाएगी. .हम आप सभी को अपनी मानसिकता बदलनी चाहिए.........

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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