जीता रहा मैं अपनी धुन में,
दुनिया का कायदा नहीं देखा।
रिश्ता निभाया तो दिल से,
कभी अपना फायदा नहीं देखा।।
एक किताब की तरह हूँ मैं,
कितनी भी पुरानी हो जाए।
पर उसके अक्षर नहीं बदलेंगे,
कभी याद आए तो पन्ने पलट कर देखना।
हम कल जैसे थे आज भी वैसे हैं,
कल भी वैसे ही मिलेंगे.............
जब मुझे चलना नहीं आता था,
तब कोई गिरने नहीं देता था।
और जब चलना सीख लिया तो,
हर कोई गिराने में लगा है।।
प्रस्तुति -धर्मेन्द कुमार पटेल
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