शुक्रवार, मई 28, 2021

प्रकृति (कविता) : शोभा तिवारी 'समीक्षा'


  
शीर्षक  -  प्रकृति (कविता)
प्रकृति के ये नजारे 
            कितने सुंदर कितने प्यारे ,
नौका मे  करूँ विहार 
          कभी इस आर कभी उस पार,
नीले  गगन तले 
                    चले  ठंडी -ठंडी पवन,
देख कर दृश्य यह
              भाव विभोर हो रहा मन  ।
नदियॉ रहती अपनी धुन में 
              आसमान नीला - नीला 
खुबसूरत इन वादियों में 
                पक्षी उड़ते मस्तमौला
मन करता  हैं मै भी 
                  पक्षी  बन उड़ जाऊँ 
छू   लूँ  जाके गगन 
            हवा के साथ लहराऊँ ।
सुबह का सूरज उगता जैसे 
               नयी प्रेरणा  लाये 
उठो , जागो ,काम करो
            आलस त्यागो यही  सिखायें 
  इन बहारों  को देख 
                 खुशी मिल गयीं 
लगता  है जैसे 
           दिल की कली खिल गयी 
 कितनी सुंदर , कितनी प्यारी 
              लगती  हैं धरती  हमारी ,
 प्रकृति का श्रृंगार कर  सुन्दरता 
              हो जाती और भी  न्यारी।
इसी प्रकृति  के प्रेम मे
             आओ कही खो जाएँ ,
करते  रहे  प्रयत्न  हम अपनी 
         प्रकृति  को खुशहाल  बनाये ।
रचना:-
शोभा तिवारी "समीक्षा "  
          कोटाबाग , 
   नैनीताल , उत्तराखंड
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कोविड-19:बेपटरी अर्थव्यस्था को सुदृढ़ करने में ग्रामीण क्षेत्रों का योगदान


कोविड-19:बेपटरी अर्थव्यस्था को सुदृढ़ करने में ग्रामीण क्षेत्रों का योगदान


       
           कोविड-19,वर्ष 2020 की एक अत्यंत भयंकर महामारी व त्रासदी है,जिसके कारण 24 मार्च, 2020 से लगातार 68 दिनों के लॉक डाउन,उसके बाद अनलॉक डाउन की लंबी श्रृंखलाओं ने हमारे जन- जीवन के साथ ही हमारी अर्थ व्यवस्था को बहुत बुरी तरह से प्रभावित किया है।हमारी पूरी अर्थ व्यवस्था बेपटरी हो गई है।बहुत बड़ी संख्या में कामगारों का पलायन शहरों से गांवो की ओर हुआ।उद्योग धंधे,कल - कारखाने,निर्माण कार्य सभी ठप हो गए।सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार पिछले साल भर में 98 लाख लोगों की नौकरी गई है। कोरोना की दूसरी लहर ने दोबारा नया संकट पैदा कर दिया है।पहली लहर के बाद भारतीय अर्थ व्यवस्था तेजी से सामान्य होने की ओर बढ़ रही थी और इसमें ग्रामीण क्षेत्र बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है।सकल घरेलू उत्पाद (जी डी पी)में कृषि क्षेत्र की भागीदारी 13 फीसदी है,जो तीसरे नंबर पर आती है। कोरोना काल में भी रबी की फसल का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ था।कटाई व मड़ाई के समय थोड़ी राहत से निर्बाध रूप से यह कार्य संपन्न हुआ।लेकिन दूसरी वेब में फिर से बहुत बड़ी संख्या में दिल्ली,मुंबई,पंजाब,
गुजरात से लोग उत्तर प्रदेश और बिहार आए। चूंकि उत्तर प्रदेश में पंचायतों के चुनाव चल रहे थे,इसलिए बाहर से आने वाले लोग बिना पृथकवास और संगरोध के सीधे अपने घरों को पहुंच गए।चुनाव के साथ ही सहालग और धार्मिक आयोजनों के फेर में गांवों तक कोरोना ने दस्तक दे दिया है,जहां जांच और इलाज दोनों के साधन कम हैं।
           यह बात और गंभीर हो जाती है कि हमारी अर्थव्यवस्था पिछले वर्ष के लॉक डाउन के कारण पूरी तरह से पटरी पर नहीं आ सकी थी।अब पुनः उससे भी बुरी तरह से महामारी ने हमारे देश को प्रभावित किया है,और अबकी बार गांवों में भी संक्रमण बढ़ा हुआ है।प्रतिदिन पूरे देश में चार लाख से भी अधिक लोगों का संक्रमित होना बहुत बड़े खतरे की निशानी है।फिर भी सुखद संयोग है कि अब जब खरीफ की फसल बोई जा रही है, तैयारी चल रही है,तेजी से स्थिति सामान्य हो रही है।स्वास्थ्य सेवाओं में भी इजाफा हुआ है, सरकार भी चुनाव की व्यस्तता के बाद पूरी मुस्तैदी से महामारी के प्रकोप से बचाने के लिए अपनी सारी मशीनरी झोंक दी है।इस दौरान भी जब हर सेक्टर में नकारात्मक ग्रोथ थी,अकेले कृषि क्षेत्र ऐसा रहा,जिसमें सकारात्मक विकास दर रही है,अर्थात  भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद कृषि सेक्टर पर ही आश्रित रही। एच डी एफ सी बैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री अभीक बरुआ बताते हैं कि कोरोना महामारी के समय कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की ताकत समझ में आई।
          ग्रामीण अर्थव्यवस्था को और सुदृढ़ करने के लिए सरकार को कृषि क्षेत्र में व्यापक बदलाव व सुधार की जरूरत है:
1.मनरेगा के अन्तर्गत खेती के कार्यों को भी सम्मिलित किया जाए,जिसमें कार्य करने वाले को आधी मजदूरी संबंधित किसान ग्राम प्रधान के माध्यम से भुगतान करे और आधी सरकार वहन करे।राजकोष की बचत होगी साथ ही समय से खेती का कार्य भी सुगमता पूर्वक हो जायेगा, लागत भी कम आयेगी।सरकार की मंशा के अनुरूप किसानों की आय भी बढ़ेगी।
2.सभी फसलों के लिए न्यूनतम मूल्य निर्धारित किया जाय और किसानों से उसकी सीधे खरीद की जाय। बिचौलियों को सस्ते दामों पर अनाज के खरीद से रोका जाय।किसान सरकारी खरीद केंद्रों की मनमानी की वजह से सस्ते दामों पर इन बिचौलियों को आधार कार्ड, बैंक पासबुक व खतौनी की प्रति देकर बेचने को मजबूर है।
3.बुवाई से पूर्व ही किसानों को उत्तम बीज की व्यवस्था सहकारी समितियों/ग्राम पंचायतों के माध्यम से किया जाय।ब्लॉक स्तर से इसे ग्राम पंचायत स्तर पर लाया जाए।ताकि सभी को उनकी जरूरत के अनुसार मिल सके।
4.किसानों को प्रर्याप्त मात्रा में उर्वरक मुहैया कराया जाय,हरी खाद,कंपोस्ट खाद और जैविक खाद के प्रयोग हेतु विशेष योजना बनाकर उन्हें प्रेरित किया जाय और प्रशिक्षित किया जाय।
5.गन्ना, आलू,दलहन,तिलहन जैसी नगदी फसलों को बढ़ावा दिया जाय।इनके भी एम एस पी पर बिक्री का प्रबंध किया जाय।
6. घड़रोज और छुट्टा जानवर किसानों की फसल ही नहीं बरबाद कर रहे हैं, और उनको आर्थिक क्षति ही पहुंचा रहे हैं, बल्कि उन्हें शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर कर रहे हैं।जब दिन की कड़ी मेहनत के बाद रात को भी जागकर इन जानवरों से अपनी फसल की रक्षा करता है तो नींद न पूरी होने से अनेक बीमारियां उसे जकड़ लेती हैं।ऊपर से जो घर में जमा पूंजी थी उसे खेत में लगा दिया और छुट्टा जानवर उसे सफाचट कर गए तो "घर की मसुरी भी बयाना" वाली कहावत चरितार्थ हो गई।इसलिए सरकार के स्तर पर इन जानवरों का मुक्कमल प्रबंध किया जाय ताकि फसल बची रहे,किसान की आय बढ़े साथ ही देश की जी डी पी में भी वृद्धि हो सके।किसानों को प्रतिवर्ष मुफ्त (सम्मान निधि)में करोड़ों रुपए की इमदाद से भी राजकोष का बोझ कम हो जायेगा।मछली देने से अच्छा है उन्हें मछली पकड़ना सिखायें।
7.कृषि आधारित कुटीर उद्योग स्थापित किए जाने हेतु प्रोत्साहित किया जाय और उनके उत्पादित माल की बिक्री का पूरा प्रबंध किया जाय ताकि उन्हें वाजिब दाम मिल सके।
8.ग्रामीण क्षेत्र में  बिजली,पानी,सड़क,स्वास्थ्य,
और शिक्षा का पूरा प्रबंध किया जाय,ताकि पलायन को रोका जा सके।लोग गांवों में रहकर कृषि कार्य व उससे आधारित कुटीर उद्योग को अपना सकें।
9.पधुधन और कृषि आधारित खाद्य प्रसंस्करण,उनके रख रखाव के पूरे प्रबंध किए जाय।यह कार्य सहकारी आंदोलन को बढ़ावा देकर किया जा सकता है।
10.किसानों को जो नगद धनराशि देकर सम्मान निधि बताया जा रहा है,उसके स्थान पर उन्हें सम्मान जनक और स्वाभिमानी जीवन जीने हेतु, श्रम करके अपना भोजन व अन्य जरूरी सामान जुटाने के लिए कृषि बीज, जुताई,उर्वरक,सिंचाई की सुविधा मुफ्त में उपलब्ध कराई जाए।ताकि वे श्रम करके अपनी रोजी और रोटी का प्रबंध करें।गांधीजी का भी मानना था कि जो बिना श्रम किए रोटी खाता है,वह अपराधी से कम नहीं है।
               निश्चित रूप से आत्मनिर्भर और विकसित भारत के निर्माण में ग्रामीण क्षेत्रों का बहुत महत्त्व है।अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने और जी डी पी को बढ़ाने में ग्रामीण इलाकों की भूमिका को और सार्थक बनाया जा सकता है।वरिष्ठ अर्थशास्त्री श्री अरुण कुमार जी का कहना है कि अबकी बार ग्रामीण इलाकों में भी वायरस का प्रसार हो गया है,इसलिए वहां भी उत्पादकता प्रभावित होगी।इसे ध्यान में रखकर हमें लघु एवम् कुटीर उद्योगों को प्रर्याप्त समर्थन देना होगा।,,,,नई लहर से निपटने के लिए भी हम तैयार रह सकेंगे।जान बचाने के साथ ही साथ भविष्य बचाने पर भी काम होना चाहिए।
डॉ ओ पी चौधरी
एसोसिएट प्रोफेसर मनोविज्ञान विभाग
श्री अग्रसेन कन्या पी जी कॉलेज, वाराणसी।
मो:9415694678
Email: opcbns@gmail.com
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के स्वयं के हैं। ब्लॉगर टीम का सहमत होना आवश्यक नहीं।)
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बुधवार, मई 19, 2021

बचपन के वो दिन,गांव की मस्ती बनाम विकास: डॉ. ओ.पी. चौधरी

बचपन के वो दिन,गांव की मस्ती बनाम विकास
             पनघट, पगडंडी,पैड़ा,डगर, खोर, डहर, मेड़ –डांड, हल –जुवाठ, सैल,पैना,हेंगा,नाधा, हरजोत्ता, हर्ष,फार,खोंपी,पचवासी,बरारी,रसरी, नाथी, –पगहा,गेराव,मोहड़ी,सिंघौटी,खूंटा, मुद्धी, खुंटा, सकरमुद्धी, बैठनी,कूंड–बरहा,
चरखी,हौदा, धन्न, उबहन,जगत, घिर्री,गगरा,गुलौर,कईन, झुकवा, हंकवा, पकवा,बोझवा,सईका, सईकी,हौदी, गगरी, परयी,पुछिया,कड़ाह–कड़ाही,कोल्हू, कातर,तौला,कूड़ा,कमोरी, रहट, पुरवट, बेड़ी,सैर,घोल,ताल,पोखरा,गड़ही, छान –छप्पर,छनौती, बाती, बन्हन, पाती, सरपत,बेड़ा,कोरो, बड़ेर,खपड़ा,नारियां,करी, अनगब,मोखब,कोसा, कोहा,दवरी, गांज,पैर,खलिहान, अखनी, पांचा, टेडूवा, गोबरहा, लेहना,बोझ,बिसरवार, हलवाह, उपरी –चिपरी, गोइंठी, गोइंठा,मौनी, मौना, दौरी,दौरा, 
सिकहुला, डेहरी,जबरा, चूल्ह,चूल्हा, लगौना, थवना,बोरसी, पोतनहर, भितरही,मझेरिया, लीपना,पोतना,अहरा, जांता, चाकी, कांडी,सूप, चलनी,अंगिया, झन्ना, अरगनी,सिल –बट्टा, पहरुवा, पीढ़ा, पिरहई,भदेली, भदेला, पतेली,बटुली, हंडा –लोटा,भुजिया, बहुरी,गोजई, जौ–मटरा, सतुआ,पंजीरी आदि अनेक शब्द जो मुझे याद नहीं लेकिन बचपन में गांवों में लोग प्रयोग में लाते थे,सभी का प्रयोग होता था।जैसे जैसे हम भौतिक सुख प्राप्त करने में लीन होते गए हमने अपनी गंवई,देशी और विशुद्ध भारतीय  संस्कृति,अल्हड़पन,बेपरवाही सभी विसारते गए और धन तो अर्जित कर लिए लेकिन कहीं न कहीं अपने मूल्य, विश्वास,नैतिकता,अपनत्व,सामूहिक सहयोग,सामाजिक समरसता, सदभावना खोते गए या उनमें क्षरण होता गया।वैभव में सुख और आनंद तलाश करने लगे लेकिन वास्तव में इन सबसे कोसों दूर होते गए।अब गांवों में भी चिंता, अवसाद,नैराश्य,कुंठा,तनाव जैसी मानसिक बीमारियां अपना पांव पसार चुकी हैं। बीपी, सुगर सभी अब आम बात हो गई है।ऐसा क्यों हुआ यह विचारणीय है।हम भौतिकता के साधन जुटाने में अपनी सबसे बड़ी धरोहर परिवार और समाज को उपेक्षित करते गए।
            यह पढ़ते समय आपको लग रहा होगा की मैं विकास विरोधी हूं, ऐसा कदापि नहीं है, किंतु अपने स्वास्थ्य से, परिवार से समझौता कर विकास हासिल कर भौतिक सुख तलाशना कहां तक की होशियारी है। हमें यथार्थ में धरातल पर पैर जमीन पर टिका कर रहना होगा।नीचे जमीन से पांव उतना ही ऊपर ले जाए जिससे आसानी से नीचे आ सकें,आकाश की ओर बढ़ें लेकिन उतना ही कि नीचे धड़ाम से धरती पर न आना पड़े।वास्तव में हम सुख और आनंद की तलाश में रहते हैं और इस भ्रम में कि धन आयेगा तो यह चीजें अपने आप आ जायेगी,इसी मुगालते में अंधी दौड़ में भागते हैं, घर, परिवार,नाते – रिश्ते, यार –दोस्त, गांव –ज़वार सभी पीछे छूट जाते हैं और जब हम वापसी का सोचते हैं तो देर हो चुकी होती है फिर क्या न माया मिली न राम,अब क्या होगा जब चिड़िया चुग गई खेत?
           इस समय महामारी ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है।वर्तमान में अपने देश की स्थिति ज्यादा खराब है।पहली बार ऐसा हुआ कि गांव से शहर की ओर के बजाय शहर से गांव की ओर पलायन हुआ।महामारी,लॉक डाउन, पृथकवास,संगरोध,दूरियां,अपनों को खो देने का डर और दर्द,हमें अंदर से झकझोर दिया है,हम विचलित से हो गए हैं।किंतु इस विषम परिस्थिति में यदि किसी ने हमें सहारा दिया है तो वह है हमारा संपर्क, लगातार अपने मित्रों, रिश्तेदारों से जुड़े रहना, बातचीत करते रहना।उस गांव की ओर, गली, मुहल्ले की ओर रुख करना जहां हमने अपने जीवन की शुरुआत की थी, जहां की धूल भरी, मिट्टी से सनी धरती मां में पल कर बड़े हुए थे।इसी कारण बहुत से लोग अपनी रोजी,व्यवसाय आदि को ताख पर रखकर गांवो में आ गए,अपने मुहल्लों में आ गए।मेरे बचपन के मित्र हैं हाजी अब्दुल समद,कटघर मूसा,जलालपुर, अम्बेडकरनगर कहते रहते हैं कि मिलते –जुलते रहिए पता नही कब रूखसती का पैगाम आ जाय,इस कोविड काल में यह और ज्यादा समीचीन लग रहा है,लेकिन इतनी निराशा भी नहीं है।बस हमें हिम्मत और धैर्य के साथ चलते जाना है।लगातार अपनों से संपर्क में बने रहना है।सच मानिए कि इस महामारी का सामना करने के लिए सावधानी, दवाई के साथ साथ हौसला भी टूटने नहीं देना है।मानसिक तनाव ने बहुत से लोगों के हौसले को मानों चुनौती दे डाली है।अनेक मामलों में तनाव इस महामारी की गंभीरता को बढ़ा रहा है।यह भी देखने को मिल रहा है की बिना संक्रमण के भी बहुत से लोगों में यह तनाव शारीरिक कष्ट में तब्दील हो रहा है।मरीज हो या सामान्य आदमी,तनाव सभी के ऑक्सीजन के स्तर को घटा रहा है।ऐसे में हमें अपनों से जुड़े रहना है, बातचीत करते रहना है।सामाजिक दूरी नहीं अपितु भौतिक दूरी को बनाए  रखते हुए हाले दिल बयां करते रहना है।इस दौर में हाले दिल बयां करते रहना और सुनते रहना हमारी मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है।हमें यह समझना है कि किसी से अपने दिल का हल कहने का उद्देश्य हमेशा समस्या का समाधान खोजना ही नही होता है,बल्कि अपने मन में चल रहे विचारों के तूफान को शांत करना है,जिससे आप बेहतर मानसिक स्थिति में आएं और हल्का महसूस कर सकें।प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड ने इसे कैथार्सिस कहा है,मतलब अपनी बात कह देने से मन का बोझ उतर जाता है और व्यक्ति हल्का महसूस करने लगता है।हमें मन की बातों को अपनों से साझा करना चाहिए ताकि हमारा तनाव कम हो सके।जरूरी नहीं कि वे आपके परिवार के सदस्य हों,ये आपके मित्र ,शुभचिंतक हो सकते हैं,जिनसे आप खुलकर बिना झिझक के अपने मन की बात कह सकते हैं।अपनी बीती यहां बताना समीचीन समझ रहा हूं।बात 1998 की है,मुझे लूज मोशन के साथ बुखार आ गया, मेरा भतीजा दीप नारायण मेरे साथ रहकर लॉ कर रहा था, मेरी धर्मपत्नी ने उससे मेरे लिए दवा मंगवाई, मैने खा भी लिया अपेक्षित परिणाम नहीं मिला,फिर क्या दीप नारायण ने कहा की अनिल चाचा(डॉ अनिल श्रीवास्तव,अपर शोध अधिकारी,संभागीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण प्रशिक्षण केंद्र, वाराणसी)से बात कर लीजिए अभी तुरंत ठीक हो जाएंगे।वह जानता था की मेरी उनसे प्रायः बातचीत होती रहती है, फिर मैने बात किया भी।यह है बातचीत की शक्ति और विश्वास। महामारी के इस दौर में या कोई अन्य तनाव या बात जो मुझे  परेशान करती हो तो सबसे पहला फोन अनिल सर को करता हूं,फिर" सहयोगी – सुख-दुःख के साथी" को,अब तो रोज बात करने का क्रम बन गया है।ठीक ऐसे ही जब यहां काम से थक या ऊब जाता हूं तो घर(गांव)चल देता हूं।वहां एक रात बिताकर भी तरोताजा हो जाता हूं।कभी कभी संगम तीरे दिनेश बाबू(डा दिनेश सिंह, उप मुख्य चिकित्सा अधिकारी, मेरे दामाद)चला जाता हूं।यह शक्ति है बातचीत की अपनों से मिलने की,हाले दिल बयां करते रहने से।किसी से बात करने में आपको एक अंतर्दृष्टि मिलती है,जिससे यह भी समझ में आ जाता है कि सही नजरिया क्या है।बात लंबी हो रही है समाप्ति इस निवेदन के साथ कि दुनिया भर से आ रही डरावनी खबरों पर हर वक्त विवेचना करना,बातें करना नहीं कहलाएगा,अपितु ये आपकी मानसिक सेहत को और खराब करेगा।इसे एक वस्तुस्थिति की तरह लें और अपनों से बातचीत करते रहें, हालचाल लेते –देते रहें,संपर्क बनाए रहें।अपने दिल की कहते रहें।वृक्ष कितना भी विशाल क्यों न हो तभी तक हरा –भरा रह सकता है,जब तक जड़ें मजबूत रहेंगी, जड़ों से जुड़ा रहेगा।हम भी चाहे जहां हो लेकिन जड़ों से अर्थात अपने गांवों से मोहल्लों से गलियों से जुड़े रहें।
     जोहार प्रकृति! जोहार धरती मां!
         डॉ. ओ. पी. चौधरी
एसोसिएट प्रोफेसर मनोविज्ञान विभाग
श्री अग्रसेन कन्या पी जी कॉलेज वाराणसी
मो: 9415694678
ईमेल: opcbns@gmail.com
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मंगलवार, मई 18, 2021

आधुनिकता में विलुप्त होती बैलगाड़ी,पहले थी गांव की सवारी: डॉ. ओ.पी. चौधरी

आधुनिकता में विलुप्त होती बैलगाड़ी,पहले थी गांव की सवारी     

        
                 भारत गांवों का देश कहा जाता है।बापू हमेशा कहते थे कि देश का विकास गांवों के विकास से ही होगा।काफी पहले जब सड़के नहीं थीं और न ही आवागमन के इतने साधन थे ,तब अनेक कार्यों में बैलगाड़ी का ही उपयोग किया जाता था।पहले काठ के पहिए होते थे उस पर लोहे की हाल चढ़ी होती थी, बाद में विकास के क्रम में बैलगाड़ी का नया संस्करण डनलप आ गया, अब पहिए ट्रक वाले रबर वाले हो गए।बैल तीन होते थे दो एक साथ जुए में नधे होते थे एक आगे बिडियहा होता था, जो केवल कभी कभी जोर लगाता था, जब गाड़ी चढ़ाई पर होती थी या पहिया सड़क(मिट्टी की खोर हुआ करती थी)पर फंसती थी,लेकिन यह बड़ा दुलारा और मजबूत होता था प्रायः हम लोगों के यहां उतरहा होते थे।अनाज ढोने, व्यापार,ईंट भट्टे, बाजार तक इस बैलगाड़ी से माल,अनाज, ईंट, गन्ना या अन्य सामग्री के ढुलाई में उपयोग किया जाता था।इसके अलावा ऊंट पर भी अनाज बाजार में बिकने जाता था,खच्चर का उपयोग भी करते थे।कहीं-कहीं तो अकेले  बैल के पीठ पर ही व्यापारी अपना समान लादकर तिजारत किया करते थे।बैलगाड़ी पर बैठकर लोग बारात में भी जाते थे।उसी पर तंबू,शामियाना जाता था, मुझे भी एक दो बार राम लखन उर्फ पांडें काका के साथ बैलगाड़ी पर बारात जाने व भट्टे पर सेवाराम बाबू(डा सेवाराम चौधरी, अ प्रा, वरिष्ठ जेल अधीक्षक)के साथ भौरी खाने जाने का अवसर मिला है,उस आनंद की कल्पना से अभी भी हम लोग रोमांचित हो उठते हैं।बारात तो दर्जा आठ में पढ़ते हुए ताहापुर,मालीपुर,अंबेडकरनगर हम लोग अच्छू बाबू (श्री अच्छे लाल राजभर) के साथ ट्रेन देखने की आशा से गए थे और अच्छू बाबू निराश भी नहीं किए,दिखाए भी।जिसके घर बारात जाती थी वे बैलों के लिए दाना पानी, चुनी भूसा का प्रबंध करते थे।पहले बारात तीन दिनों की होती थी इसी बैलगाड़ी पर थोड़ा  राशन,लकड़ी, उपरी,दाना,गुड़,बाल्टी लोटा,रस्सी सहित बर्तन रख दिया जाता था ।बाराती शादी के दिन दोपहर तक गाँव के पास किसी पोखरे या बगीचे में,जहां कुंआ होता था, डेरा डाल देते थे।दोपहर का भोजन वहीं बनता था ।सायं सब लोग नहा-धोकर तैयार होने के बाद उस गाँव जहाँ बारात जानी रहती थी,पहले ही पहुंच जाते थे ताकि समय से तम्बू कनात खड़ा हो सके। गोधूलि बेला में ही द्वारपूजा लग जाया करती थी।    
                    उस समय इसका बहुत ही ज्यादा प्रयोग किया जाता था।बैलगाड़ी का उपयोग                                                                                                         खेतों में कंपोस्ट खाद गिराने से लेकर फसल ढोने तक किया जाता था,फिर अनाज को घर या बाजार तक पहुंचाने के लिए भी।बैलगाड़ी हांकने वाले को गाड़ीवान की पदवी से नवाजा जाता था,और गाड़ी में जुतने/नधने वाले बैलों को गड़ियहा कहा जाता है। देश की स्वतंत्रता के समय 1947 में विभाजन के समय  लोग बहुत बड़ी संख्या में इधर से उधर बैलगाड़ी में ही अपना-अपना वतन छोड़ कर गये थे अपने पूरे परिवार व गृहस्थी के साथ।
               हमारे जनपद अम्बेडकरनगर के पश्चिमी छोर पर शहजादपुर में बैलों की खरीद व बिक्री होती थी, उस स्थान को बरदहिया ही कहा जाता था,अब वहां अच्छी बाजार व कॉलोनी बन गई है लेकिन हम जैसे लोग अभी बोलचाल में वरदहिया ही कहते हैं।जनपद की दूसरी बड़ी बाजार बैलों की थी लंगड़ी पृथ्वी पुर(लंगड़ तीर,घाघरा नदी के किनारे)हंसवर बाजार के निकट। जनपद के पूरबी किनारे गोविन्द साहब का मेला मार्गशीष शुक्ल पक्ष की दशमी " गोविंद दशमी"को मेला लगता है।इस मेले में दूर दूर से लोग हाथी घोड़ा, लकड़ी का सामान, लोहे के औजार आदि सभी की खरीद फरोख्त करने आते थे।बड़े बड़े लोगों का शिविर भी लगता था।जलालपुर से विधायक रहे एवम् उत्तर प्रदेश सरकार में पूर्व मंत्री रहे स्मृतिशेष यशकायी बाबू राम लखन वर्मा जी का भी सबसे बड़ा कैंप लगता था।बहुत से लोग उस मेले में भी बैलगाड़ी से जाया करते थे और रात वहीं रुकते थे,कानपुर से लगायत दूर दूर से नौटंकी कंपनियां आया करती थीं,जो उस समय मनोरंजन का और अपनी संस्कृति व सामाजिक ताने– बाने के प्रस्तुतिकरण का साधन था।हमारे पड़ोस के ही जनपद सुल्तानपुर में महावीरन (विजेथुआ)में राम भक्त हनुमान जी का पुराना व बहुत प्रसिद्ध मंदिर है, वहां रोट चढ़ता है, पहले सभी बैलगाड़ी से ही ही सारा सामान आटा,घी,लकड़ी लादकर और महिलाओं को बिठाकर आते थे।इधर योगी सरकार ने गोवंश की रक्षा हेतु गोशालय बनवा दिए हैं,कुछ छुट्टे रूप से घूम रहे हैं।हम उनका सदुपयोग कर बैलगाड़ी से छोटा मोटा कार्य जो कम भारवाला व दूरी वाला हो उसे कर सकते हैं।ईंधन की खपत कम होगी और सबसे बड़ी बात यह कि पर्यावरण प्रदूषण भी कम होगा।छोटा कोल्हू लगाकर गन्ने का ताजा रस निकालकर उसे बेच सकते हैं,जिसमें आयरन के साथ ही पौष्टिकता भी होती है।इस कोरोना काल में लोग महानगरों से गांव की ओर पलायन किए हैं।ऐसी स्थिति में कुछ कर सकते हैं।         
            प्रदेश के पूर्वांचल में भृगु ऋषि की तपोस्थली बलिया में कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा व घाघरा नदी के दोआब में ददरी का बहुत बड़ा मेला लगता है ।यह मेला कार्तिक पूर्णिमा से दस दिन पहले से लेकर पूर्णिमा के दस दिन बाद तक रहता है ।इस मेले में गाय,बैल,भैंस,घोड़ा आदि के अलावा शादी विवाह की समस्त सामग्री बिकती है । इस मेले में पूरबी उत्तर प्रदेश व बिहार प्रदेश के लोग विशेष रूप से गाजीपुर,छपरा,आरा,बक्सर जिलों के लोग अपने-अपने साधनों से आते थे, इसमें भी पहले बैलगाड़ी का खूब उपयोग पहले हुआ करता था।पूरा कुनबा इसी बैलगाड़ी पर सवार हो मेले में आते थे।इसी मेले में कितनी सयानी बच्चियों की बात ही बात में शादी तय हो जाती थी,लोग लड़की व लड़का पसंद कर लेते थे।भृगु ऋषि के मंदिर में दर्शन भी जरूर करते थे।मुझे भी एक बार जाने का मौका मिला है,लेकिन केवल देखने का,कुछ खरीद नहीं सका।क्योंकि मुझे जो सबसे अच्छी लगी, खरीदने लायक वह पड़िया (भैंस का बच्चा)थी,उसके बलिया से अंबेडकरनगर तक लाने की समस्या।मेरे अत्यंत करीबी बड़े भाई नरसिंह बाबू कहते हैं के वह समय कितना अच्छा था।समय अच्छा बुरा नही होता।वह सम्पूर्ण ही होता है।पर उस समय, देश काल से जुड़ी हमारी सोच,मन:स्थिति हमारे पूरे अनुभव को बदल देती है।अभी तुरंत आप अपने चारों ओर के परिवेश को देखें तो सूर्य की रोशनी,चांद की चांदनी,प्राणवायु, जल,नभ,पृथ्वी,चिड़ियों की चहचहाहट, मेघ की गर्जना,हवा का झोंका, तपिश  जैसी चीजों से जिंदगी घिरी है।यह एक समय है,जो है, जैसा है,पूरी तरह वैसा ही है।मानव जीवन में सम्पूर्ण समाज को अस्त व्यस्त करने वाली घटनाएं घटती रहती हैं।1920 का तावन,2020 की कोविड महामारी,तो बीच बीच में सुनामी जैसी आपदाएं हमारी स्मृतियों में दबी रहती हैं।उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द जी ने कहा है कि अतीत की स्मृतियां बहुत ही सुखद होती हैं,वे चाहे जैसी रही हों।ऐसे में बैलगाड़ी भी हमारी स्मृति का, अतीत का एक सुखद अहसास है,जिसकी पहिए की चूं चपड़ हमें सुनाई ही पड़ती रहेगी।जोहार प्रकृति!जोहार धरती मां!
              डा ओ पी चौधरी
      एसोसिएट प्रोफेसर मनोविज्ञान विभाग
श्री अग्रसेन कन्या पी जी कॉलेज वाराणसी
मो 9415694678
Email: opcbns@gmail.com
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सोमवार, मई 10, 2021

लोक ऑक्सीजन की तलाश में, तंत्र वोट की तलाश में: डॉ. ओपी चौधरी



           विश्व प्रसिद्ध विचारक लेव टोलेस्टॉय की अमूल्य और अनुपम कृति है,"युद्ध और शांति"।उन्होंने अपनी एक कहानी " वर्क,डेथ एंड सिकनेस" को 1903 में लिखा था।आज 2020 –2021में जब सम्पूर्ण विश्व कोविड –19 से जूझ रहा है, कितना सटीक है," .........अभी थोड़े दिन ही हुए,जब कुछ मनुष्यों ने काम की अहमियत जानी।उन्होंने समझा की काम के आधार पर मनुष्य को कमतर या उच्चतर नहीं समझा जाना चाहिए।काम से हर मनुष्य को सुख मिलना चाहिए।काम ऐसा होना चाहिए की मनुष्यों के बीच एक जुटता का भाव बना रहे।अब वे समझ गए हैं कि जीवन क्षण भंगुर है और मृत्यु कभी भी आ सकती है।इसलिए जीवन का जितना भी समय हमारे हाथ में है,उसका प्रत्येक साल,महीना,दिन,घंटा और मिनट हमें प्रेम और सौहार्द्र से बिताना चाहिए।वे समझने लगे हैं कि रोग हमें एकता की ताकत समझाने ही आते हैं।इसलिए दूसरे के दुख ,बीमारी और कष्ट में उसकी मदद करना हर इंसान का कर्तव्य है"। आज के कोरोना काल में यह कितना सटीक है।काम का महत्व हम अब समझ पाए जब महामारी के कारण पिछले साल भर में लगभग 98 लाख लोगों की नौकरी गई है,यह सी एम आई ई की एक ताजा रिपोर्ट पर आधारित है।2020 –21 के दौरान देश में कुल 8.59 करोड़ लोग किसी न किसी तरह की नौकरी में लगे थे और इस वर्ष मार्च तक यह संख्या घटकर 7.62 करोड़ रह गई है। कोरोना की दूसरी लहर से कही कहीं लॉकडाउन या लॉकडाउन जैसी स्थिति के कारण, सरकारी प्रोटोकाल, दिशा –निर्देशों के कारण रोजगार के लिए दोबारा नया खतरा पैदा हो गया है।रेहड़ी और खोमचे वाले सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।
               देश के अनेक भागों –मुंबई, दिल्ली,कोलकाता, सूरत,बंगलौर,अहमदाबाद आदि से पुन:बड़ी संख्या में कामगार गुजरात,पंजाब और हरियाणा से लोग बिहार और उत्तर प्रदेश के अपने गांवों, हाटों,बाजारों,चट्टियों की ओर लौट रहे हैं।इनकी रोजी – रोटी तो दांव पर लगी ही है, साथ ही संक्रमण का भी खतरा बढ़ा है।सबसे ज्यादा परेशानी उत्तर प्रदेश में है, जहां पंचायत चुनाव संचालित हो रहे हैं।ग्राम प्रधान पद के प्रत्याशी लोगों को अपने पक्ष में मतदान करने हेतु बुलाते हैं।पिछले साल तो वे जब गांव आए तो  पृथकवास में 14 दिन रहते थे,लेकिन अबकी बार सीधे घर पहुंच रहे हैं और शाम को चुनाव प्रचार के उपरांत आयोजित भोज समूह में बिंदास सम्मिलित हो रहे हैं।बीमारी का खतरा बढ़ गया है।जांच के और उपचार के अभी उतने साधन हमारे गांवों में उपलब्ध नहीं हैं।वैवाहिक और धार्मिक आयोजनों में सम्मिलित होने के फेर में गांवों तक कोरोना ने दस्तक दे दिया है।किंतु यह पता लगाना मुश्किल है कि कौन कब कोरोना पॉजिटिव होता है,यदि पता चल भी जाय तो, इलाज मिलना बहुत ही मुश्किल है।गांवों में जन स्वास्थ्य के देखभाल की जिम्मेदारी आशा बहुओं की है। बिडंबना यह है की बहुत सी आशा बहुएं स्वयं प्रत्याशी हैं,वे अपने प्रचार में व्यस्त हैं,किसी को कैसे पृथक्वास में रहने के लिए कहें,क्योंकि दावत छूटेगी तो नाराजगी, और पाल्हा बदलने का डर बना रहेगा,इसलिए कोविड के प्रसार की चिंता कम अपने वोट की चिंता ज्यादा है।इस समय उत्तर प्रदेश में प्रतिदिन तीस हजार से भी अधिक लोग संक्रमित हो रहे हैं,तीन सौ से अधिक की मृत्यु कोरोना से हो रही है।चुनाव के कारण और अधिक इजाफा हुआ है,कारण लोग मास्क, सेनेटाइजेशन,साबुन से हाथ धोना, दो गज की दूरी का अनुपालन नहीं कर पा रहे हैं, कुछ अभाव तो ज्यादा लापरवाही के कारण।प्रशासन भी क्या –क्या, कौन – कौन से काम एक साथ करे, कानून व्यवस्था पर नजर रखे या चुनाव संपन्न कराए या महामारी से उपजी विपदा में राहत पहुंचाए,ऐसी स्थिति में जब  कार्मिकों की संख्या लगातार घट रही है।स्वास्थ्य सेवाएं भी जनसंख्या के अनुपात में बहुत ही कम है।एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि देश में 6 लाख डॉक्टरों वी 20 लाख पैरा स्टाफ को कमी है।65 प्रतिशत शहरी आबादी निजी स्वास्थ्य सेवाओं पर निर्भर है।ज्यादातर मरीज प्राइवेट हॉस्पिटल्स या चिकित्सकों के भरोसे है,जहां तक आम आदमी की पहुंच नहीं है,वे भी कस्बों या शहरों में ही हैं।
             इस समय भारतवर्ष में प्रतिदिन चार लाख से भी अधिक लोग संक्रमित हो रहे हैं, जो बहुत ही अधिक है।रोज साढ़े तीन हजार से भी अधिक लोग काल कवलित हो रहे हैं।यह स्थिति अत्यंत भयावह है।जिन पांच राज्यों में चुनाव संपन्न हुए, वहां कोविड गाइड लाइन को धता बताकर माननीयों ने खूब बड़ी – बड़ी रैलियां करने में मशगूल और अति उत्साह से लबरेज हो रहे थे,और यह कहते नही थक रहे थे कि आपकी इतनी बड़ी संख्या में उपस्थित हमारे लिए गौरव की बात है।।रश्मि लता मिश्रा ने ठीक ही लिखा है, " त्रस्त जनता, सो रही सरकार है। उसे भी तो केवल अपने वोटों से सरोकार है।"हमारा ध्यान चुनाव की तरफ ज्यादा, कोरोना की ओर कम रहा।इस वक्त हमें सभी को राजनीति करने के बजाय मानवता की रक्षा के लिए एक जुट होकर रणनीति बनाने का कार्य करना था,लेकिन हम चुनाव जीतने को रणनीति बनाते रह गए।जब लोक रहेगा,तभी लोकतंत्र रहेगा।एक अच्छी बात थी टीकाकरण की लेकिन टीके की रफ्तार भी कम हो गई,उपलब्ध ही नहीं है।मैंने अपने साथियों के साथ 14 मार्च को  टीका लगवाया था,अब दूसरी डोज की तलाश शिद्दत से कर रहे हैं,अभी उपलब्धता नहीं थी कई दिन के प्रयास के बाद दूसरी डोज लेने का मौका मिला,यह हाल मा प्रधानमंत्री जी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी का है।महाराष्ट्र,राजस्थान, छत्तीसगढ़,झारखंड, ओडिसा जैसे राज्यों ने टीकों की कमी से केंद्र को अवगत करा दिया है।ऐसे में विदेशों से आयात करने के साथ ही,भारत में भी युद्ध स्तर पर टीकों का निर्माण तेज करना चाहिए।अमेरिका ने कच्चा माल उपलब्ध कराने का भरोसा दिया है।टीके के लिए तो मारामारी है ही, ऑक्सीजन,रेमडेसिविर और प्लाज्मा,वेंटिलेटर की मांग जरूरत से ज्यादा बढ़ गई है।ऑक्सीजन और रेमडेसिविर की कालाबाजारी और जमाखोरी के कारण यह कठिनाई और बढ़ गई है।मांग बढ़ने से भी ज्यादा परेशानी जमाखोरी से हो रही है।हमारा राष्ट्रीय चरित्र उजागर हो रहा है कि हम आपदा के समय भी बजाय दूसरों का सहयोग करने के अपनी तिजोरी भरने में लगे हुए हैं।किसी ने सही ही लिखा है कि"सुबह न्यूज पढ़ी डॉक्टर गिरफ्तार है,
जीवन प्रदाता दवा का करते व्यापार हैं।" कालाबाजारी चरम पर है।पूरा तंत्र चुनाव में व्यस्त है,लोक महामारी से पस्त है।सोशल मीडिया पर खबरों पर सरकार लगाम लगाने लगी,जैसे सौ बरस पहले युद्ध या महामारी के समय तुरंत सेंसरशिप लगा दी जाती थी।लेकिन अब दुनिया तेजी से बदल रही है, हर हाथ में सोशल मीडिया तक पहुंच के यंत्र हैं।खुद माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्वत:संज्ञान लेकर सरकारों को चेताया है कि वे नागरिकों को अपनी तकलीफों को सार्वजनिक करने पर प्रताड़ित न करें।सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही यह सवाल उठाए हैं कि मरीजों व उनके तीमारदारों को दवाओं के लिए इधर उधर भटकना पड़ रहा है,सरकार उनकी उपलब्धता सुनिश्चित करे।
          कोरोना महामारी से वास्तव में देश की स्वास्थ्य सेवाओं की कमजोरियां व प्रबंधन की कमी उजागर हुई हैं।जबकि स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधा प्राप्त करना हर भारतीय का मौलिक अधिकार है।इस महामारी के बीत जाने के बाद जरूरी है की हम अपने स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत करें,जिससे हमें भविष्य में ऐसी विषम परिस्थिति का सामना न करना पड़े।अबकी जो गलतियां ,जो लापरवाही सरकार की ओर से हुई है, उसमें सुधार करने की महती आवश्यकता है।अभी तीसरी लहर की भी बात सामने आ रही है,इसलिए मूलभूत सुविधाओं की ओर अधिक ध्यान देने की जरूरत है।अंत भी टोलोस्ताय को उद्धृत करके ही करूंगा," खुशी के क्षणों को कैद कर लो,प्रेम करो और प्रेम करने दो।इस दुनिया में केवल यही एक सच्चाई है,बाकी सब मूर्खता के सिवा कुछ नहीं"।जोहार प्रकृति!जोहार धरती!
      डा ओ पी चौधरी
एसोसिएट प्रोफेसर मनोविज्ञान विभाग
श्री अग्रसेन कन्या पी जी कॉलेज वाराणसी
*महामहिम श्री राज्यपाल द्वारा नामित कार्य परिषद सदस्य वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर*
मो: 9415694678
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गुरुवार, मई 06, 2021

अच्छा-अच्छा सोचो जी: धर्मेंद्र कुमार पटेल



अच्छा अच्छा सोंचो जी
🤔🤔🤔🤔🤔🤔🤔

जो करता है वो भरता है,
अच्छा अच्छा सोंचो जी।
दुनिया से जब जाना तय है,
तो मीठा मीठा बोलो जी।।
अच्छा अच्छा सोंचो .....

हंसी - खुशी से जीवन जी लो,
याद यही तो आएगा।
अमन चैन से रहना सीखो,
 झगड़े टंटे छोड़ो जी।।
अच्छा अच्छा सोंचो......

जलना, कुढ़ना, नफरत, धोखा,
तकलीफें ही देता है।
प्यार ,मोहब्बत के दरवाजे,
अपने अपने खोलो जी।।
अच्छा अच्छा सोंचो......

मिलना- जुलना,आना -जाना,
मीठा मीठा बतियाना।
जरा जरा सी बात पकड़ कर,
रिश्ते यूं न तोड़ो जी।।
अच्छा अच्छा सोंचो......

रब ही जाने ,जाने कैसी,
फितरत है इंसानों की।
कदम कदम पर क्यूं देते हैं,
अपनों को ही धोखा जी।।
अच्छा अच्छा सोंचो......

आपका भाई धर्मेन्द्र कुमार पटेल✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️
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गूँज उठी रणभेरी : कवि गोलेन्द्र

*★रणभेरी★*
*(गूँज उठी रणभेरी)*



काशी कब से खड़ी पुकार रही
पत्रकार निज कर में कलम पकड़ो
गंगा की आवाज़ हुई
स्वच्छ रहो और रहने दो
आओ तुम भी स्वच्छता अभियान से जुड़ो न करो देरी
गूँज उठी रणभेरी

घाटवॉक के फक्कड़ प्रेमी
तानाबाना की गाना
कबीर तुलसी रैदास के दोहें
सुनने आना जी आना
घाट पर आना --- माँ गंगा दे रही है टेरी
गूँज उठी रणभेरी

बच्चे बूढ़े जवान
सस्वर गुनगुना रहे हैं गान
उर में उठ रही उमंगें
नदी में छिड़ गई तरंगी-तान
नौका विहार कर रही है आत्मा मेरी
गूँज उठी रणभेरी

सड़कों पर है चहलपहल
रेतों पर है आशा की आकृति
आकाश में उठ रहा है धुआँ
हाथों में हैं प्रसाद प्रेमचंद केदारनाथ की कृति
आज अख़बारों में लग गयी हैं ख़बरों की ढेरी
गूँज उठी रणभेरी

पढ़ो प्रेम से ढ़ाई आखर
सुनो धैर्य से चिड़ियों का चहचहाहट
देखो नदी में डूबा सूरज
रात्रि के आगमन की आहट
पहचान रही है नाविक तेरी पतवार हिलोरें हेरी
गूँज उठी रणभेरी

धीरे धीरे
जिंदगी की नाव पहुँच रही है किनारे
देख रहे हैं चाँद-तारे
तीरे-तीरे
मणिकर्णिका से आया मन देता मंगल-फेरी
गूँज उठी रणभेरी

©गोलेन्द्र पटेल
छात्र, बीएचयू

ईमेल : corojivi@gmail.com
पता : ग्राम-खजूरगाँव, जिला-चंदौली , उत्तर प्रदेश, भारत।
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बढ़ती भौतिकता विलुप्त होती संवेदनाएं–डा ओ पी चौधरी



            प्रसिद्ध कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता ’ यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में आग लगी हो,तो क्या तुम दूसरे कमरे में सो सकते हो?यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में लाशें सड़ रही हों,तो क्या तुम दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो’?इसी संदर्भ में मुजफ्फरपुर के जनाब आदित्य रहबर लिखते हैं,यदि इसका जवाब हां है तो मुझे आपसे कुछ नही कहना है,क्योंकि आपके अंदर की संवेदना मर चुकी है और जिसके अंदर संवेदना न हो ,वह कुछ भी हो लेकिन मनुष्य तो कत्तई नहीं हो सकता है।आज कोरोना महामारी ने जिस तरह से हमारे देश में तबाही मचा रखी है,उसमें किसी की मृत्यु,किसी की पीड़ा पर आपको दुःख नहीं हो रहा है,तो निश्चित ही आप अमानवीय हो रहे हैं।जब देश में चारों ओर कोहराम मचा है,प्रतिदिन चार लाख से भी अधिक लोग( जो एक दिन में विश्व के किसी भी देश में हुए संक्रमितों की संख्या सेअधिक है)कोविड–19 का शिकार हो रहे हैं, ऐसे में आई पी एल का जारी रहना कहां तक उचित है?सुखद संयोग है कि यह लिखते समय ही ज्ञात हुआ कि कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रकोप के कारण आई पी एल स्थगित कर दिया गया। पांच राज्यों के विधान सभाओं के चुनाव, कुछेक राज्यों में उप चुनाव तथा उत्तर प्रदेश में पंचायतों के चुनाव कहां तक उचित हैं/थे।व्यक्ति आजीवन दो तरह के परिवेश में रहता है, एक सामाजिक –जिसमें पद, प्रतिष्ठा, मान सम्मान, यश आदि दूसरे भौतिक परिवेश, जिसमें मानव ने अपनी शारीरिक सुख सुविधा और विलासिता की अनेकानेक वस्तुएं जुटा रखी हैं।यही विलासिता और भौतिक सुख साधन जुटाने में हमने प्रकृति का अंधाधुंध दोहन किया है,वनों का क्षेत्र सिमटता जा रहा है।सरकार अभियान चलाकर वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाती है,लेकिन जन सहभागिता न होने के कारण वह केवल कागजों पर और गिनीज बुक में दर्ज कराने तक ही सीमित रह जाती है।ऑक्सीजन के असली स्रोत को समाप्त करके हम सिलेंडर के भरोसे जीने को मजबूर हैं।हमें वृक्षारोपण के लिए बहुत बड़े पैमाने पर जन आंदोलन चलाना होगा और सभी को कमसेकम एक वृक्ष लगाने का संकल्प लेना होगा।
            दूसरी ओर सामाजिक पद और प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए हम लोगों ने अपना जीवन ही दांव पर लगा दिया।लोकतंत्र में चुनाव जरूरी हैं, लेकिन लोक को समाप्त करके नहीं।देश के कर्णधार, भविष्य ,नौनिहालों की पढ़ाई,परीक्षा सभी सरकार ने पंचायतों का चुनाव कराने के लिए टाल दिया।जो शिक्षक पढ़ाते, परीक्षा कराते उन्हें चुनाव ड्यूटी में लगा दिए गए,और अब तक 700 से भी अधिक शिक्षक चुनाव ड्यूटी करके कोविड का शिकार होकर अपनी जान गवां बैठे हैं,और भी न जाने कितने होंगें,मतगणना,जहां से संक्रमण फैलने की सबसे अधिक संभावना थी, अंदर तो ठीक लेकिन बाहर कई हजार की भीड़ खड़ी थी जो लगातार विभिन्न चैनलों पर दिखाई जाती रही, लेकिन शासन प्रशासन मूक दर्शक बना रहा और जब लोग संक्रमण लेकर अपने गांव जवार में आ गए तो लॉक डाउन की सुध आई,’ का वर्षा जब कृषि सुखानी’।जगह जगह चिपके  पोस्टर में बड़ी बड़ी तस्वीरें मा प्रधानमंत्रीजी और मुख्यमंत्री जी की लगी हुई है कि मास्क और दो गज की दूरी जरूरी , साबुन से बार बार हाथ धोएं।लेकिन ऐसे बड़े बड़े नेताओं के समक्ष भीड़ एकत्र होती रही,और उसे संबोधित कर गौरवन्नित होते रहे।लोग बिना मास्क के, बिना सामाजिक दूरी के इकट्ठा होते रहे।वही सरकार कार में अकेले जा रहे, मोटरसाइकिल या साइकिल में अकेले जा रहे लोगों से पुलिस से जबरी चालान कटवाती रही और जुर्माना वसूलवाती रही।सरकार का कैसा दोहरा चरित्र, ऐसा कभी नहीं हुआ। जो आयोग और सरकार के अदूरदर्शी निर्णय के शिकार हो गए,सभी को विनम्र श्रद्धांजलि एवम् परिवार के प्रति गहरी संवेदनाएं।पूरे प्रदेश और देश के जिन प्रदेशों में चुनाव हुए वहां अभी कितने लोग काल कवलित होंगे कहा नहीं जा सकता है।भला हो मद्रास उच्च न्यायालय का जिसने केंद्रीय चुनाव आयोग को हत्यारों की श्रेणी में रखकर मुकदमा चलाने की बात की।कितनी बेहयाई, लोग सुप्रीम कोर्ट चले गए, वहां भी फटकार मिली तब बड़ी बड़ी रैलियों पर रोक लगी।कहां और क्यों हमारी संवेदनाएं मृत हो रही हैं?हमारे नैतिक मूल्य तो लगता है अब पुस्तकों तक ही सीमित रह गए हैं।बड़े बड़े नेता खुद बड़ी बड़ी सभाएं आयोजित करते रहे और इधर विजय जुलूस पर रोक लगाते रहे, फिर भी कहीं कही बड़े पैमाने पर बाजे गाजे के साथ जुलूस निकले,एक भी चेहरे पर मास्क नहीं,जनपद अंबेडकरनगर के टांडा तहसील के बेहरा जगनपुर के ग्राम प्रधान के विजय जुलूस का फोटो देखिए इतना वायरल होने के बाद भी पुलिस मूकदर्शक बनी हुई है।रसूखदार लोग हैं पुलिस भी कार्यवाही करने से घबड़ाती है, जानती है अब उम्र 50 के पार है, जबरी घर बिठा दिए जायेंगे,कैसे चलेगा प्रशासन, कौन लेगा कानून के अनुपालन की जिम्मेदारी?जमाखोरी और कालाबाजारी हमेशा रहती थी,लेकिन प्रायः खाने पीने की चीजों पर लेकिन अबकी इस कोविड की दूसरी लहर में तो जीवन रक्षक ऑक्सीजन,(ऑक्सीजन  की कमी से बत्रा अस्पताल में 12 मरे,हिंदुस्तान, 2 मई,21), रेमडेसिविर आदि कोविड से संबंधित दवाओं की जमाखोरी व कालाबाजारी चरम पर पहुंच गई।यह दर्शाता है जब लोग जीवन और मृत्यु से संघर्ष कर रहे हैं तो भी एक वर्ग केवल धनार्जन में लगा हुआ है, संवेदनशीलता के क्षरण की पराकाष्ठा है।वहीं सरकार की भी अदूरदर्शिता व इच्छा शक्ति का अभाव है। राह जाते शवों को लोग रुककर प्रणाम करते हैं।उन्हीं शवों की चिता लगाने का मुंहमांगा दाम लिया जा रहा है, काशी में जिसे मोक्ष दायिनी कहा गया है,यह खेला यहां हो रहा है।दूसरी ओर सरकारी एंबुलेंस के ड्राइवरों की मिलीभगत से प्राइवेट एंबुलेंस वाले 3 से 5 किमी की दूरी तक का 15000 से 20000 वसूल कर मानवता को शर्मशार कर रहे हैं,ऐसी खबरें रोज अखबारों में आ रही हैं।यह सब उसी वाराणसी में हो रहा है, जहां के सांसद श्री नरेंद्र मोदीजी भारत के मा प्रधानमंत्री हैं,और योगी जी सत्ता संभालने के पश्चात से वाराणसी दौरे का शतक जल्दी ही लगाने वाले हैं।
           लेकिन कितनी भी कठिनाई आए हमें उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना है।जिस तरह से इलाज के जरूरी संसाधनों का अभाव हुआ है,जिस तरह की बदइंतजामियों को हमने देखा है,उन्हें भूल पाना कठिन है।महामारी जब हमारे दरवाजे तोड़ने लगे और तब जिन लोगों की नींद खुले,ऐसे लोगों को यह देश जिम्मेदारी वाले पदों पर नहीं रख सकता।सरकार और अन्य लोगों के उन चेहरों को पहचान लेना चाहिए,जिन्होंने आपदा के समय लोगों को चुनाव में ढकेला है,दवाओं की कालाबाजारी की है,हम सभी को छला है।यह महामारी न केवल हमारी संवेदनहीनता बल्कि हमारे चरित्र के निंदनीय पहुलओं को सरेराह कर दे रही है।समाज के ऐसे निर्दयी चेहरों को देर सबेर बेनकाब करना ही होगा।मन में आशा और विश्वास रखना होगा कि कितनी भी काली घनी अंधेरी रात हो,विहान होगा और सूरज अपनी रोशनी से हम सभी का जीवन प्रकाशमान करेगा। कोरोना हारेगा, हम जीतेंगे।जोहार प्रकृति!जोहार धरती मां!
                 डा ओ पी चौधरी
एसोसिएट प्रोफेसर मनोविज्ञान विभाग
श्री अग्रसेन कन्या पी जी कॉलेज वाराणसी
मो : 9415694678
ई मेल: opcbns@gmail.com

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शनिवार, मई 01, 2021

मजबूरी मे भी हँस कर काम करता है मजदूर : शोभा



सादर नमन माँ शारदा 🙏
सादर नमन मंच 🙏
 
दिन  - शनिवार 
दिनांक  - 01 - 05 - 2021 
विधा - कविता  


मजदूर दिवस पर विशेष 
****************

दूसरों के घरों को बनाता
       है मजदूर 
 पर खुद झोपड़ी में रह लेता है
      मजदूर,
  बनाता है जो अपने हाथों से
      शहर  को 
 उससे भी पराया हो जाता
      है मजदूर ।

दुनिया का बोझ ढोता है मजदूर 
 पर उसके पास कुछ नही होता है ,
 चैन की नींद हम सोते हैं घरों में 
 पर कल की आस मे रोता है मजदूर ।

परिवार के लिए अपने हर दुःख 
   सहता है मजदूर 
ठंड मे ठिठुरता और गरमी मे 
   तपता है मजदूर  ,
अपनी इच्छाओ को जलाकर भी
फिर से काम पर निकलता है मजदूर ।

हमेशा चुप रह कर , बिना  लड़े  
मेहनत और लगन से काम करता
  है मजदूर , 
क्यों उसे उसका हक नही मिल 
   पाता है 
क्यों बनाया गया उसे हर पल 
     मजबूर ।

ग़रीबी मे जी कर भी उसके पास
   ईमानदारी हैं 
पर इंसानियत भूल लोगो ने उसे नीचा
     दिखाया हैं  ,
कभी ठुकराकर  , कभी दुत्कार कर
हमेशा मजाक बनाया हैं 
 पर मजबूरी मे भी  हँस कर काम  
    करता है मजदूर  । 


शोभा " समीक्षा "
उत्तराखंड 

सभी मेहनतकश लोगो को समर्पित कविता  जिनकी वजह से हम अपने घरों मे आराम से रह पाते है ,,,, 

धन्यवाद 🙏🙏 💐💐
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