रविवार, नवंबर 01, 2020

दहेज प्रथा: मनोज कुमार चंद्रवंशी

दहेज प्रथा

दहेज प्रथा जग में  आतंकवाद  का  पर्याय,
बेटी निष्ठुर,  निर्मम दरिंदों  के  शिकार  हुई।
बेटी    सिसकियाँ   हरदम   लेती   रहती है,
पावन  सी  धरा  में  बेटी  की अपकार हुई॥

बेटी  पितृ  हृदय   आँगन  की    राजकुमारी,
पर  घर  में  कुछ  अरमान  लेकर  आई  थी।
कातिलों   के   द्वारा   बेटी  अपमानित  हुई,
बेटी  पति के घर  मेहंदी  रचा कर आई थी॥

बेटी    की    जीवन    चमन   उजड़    गया,
बेटी   की   हृदय  में   अंतर्द्वंद  चल  रहा है।
बेटी   की   जीवन   उमंग   गमगमीन  हुआ,
नित  हृदय  में  क्रोध  की  अग्नि  जल रहा॥

बेटी   धरा  में   अभिशाप  नहीं   वरदान  है,
गुनाहगारो बेटी के सह अत्याचार  बंद करो।
दहेज के  लोभी  बेटी को  प्रताड़ित  ना कर,
बेटी   के   साथ  कुकृत्य  करना  बंद  करो॥

हाय!बेटी जीवन चमन की  प्रस्फुटित कली,
तुम्हारी  जीवन  करुण  क्रंदनमय  हो गया।
स्वार्थ सिद्धि के कारण तुम अपमानित हुई,
दहेज की ज्वाला  से तन, मन, बेदग्ध हुआ॥

                        रचना
             स्वरचित एवं मौलिक
           मनोज कुमार चंद्रवंशी
  बेलगवाँ जिला अनूपपुर मध्यप्रदेश

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