शनिवार, अक्टूबर 31, 2020

दादा वल्लभ की सांसें वतन के लिये: राम सहोदर पटेल



       
                                                                                                                                            

:दादा वल्लभ की सांसें वतन के लिये:
दादा वल्लभ की सांस थी वतन के लिये,
उनकी हर आस थी इस वतन के लिये।
जिन्दगी की कभी भी न परवाह की,
पग बढ़ाया हमेशा वतन के लिये।।

कभी अन्याय सहना न सीखा था वह,
दया करुणा की समझो तो सागर था वह,
दीन-हीनों का समझो पुजारी था वह 
उनका सपना भी होता वतन के लिये।।

धूर्त दुष्टों का अन्याय सहकर के भी,
आंग्ल क्रूरों के कोड़ों से छिल करके भी, 
बन्दी खाने में भूखा ही रहकर के भी,
उनकी हर चाह होती वतन के लिये।।

पड़ा दुर्भिक्ष बेहाल जनता हुई,
भूखे प्यासे भरें टैक्स दुगुनी हुई,
तब कुशासन विरोधी कृषक सेना ले,
किया बारडोली क्रान्ति वतन के लिये।।

जान लेकर हथेली में निर्भय लड़े, 
देश दुश्मन के कानून थे सिर चढ़े, 
झुका अंग्रेज़ी नीति को सरदार बन, 
पदवी एमपी को छोड़ा वतन के लिए ॥

देशी सारे रियासत को सम्मिलित किया,
सार्वभौमिक बना देश अखण्डित किया,
रहे लोहा सा दृढ़ लौहपुरुष थे बने,
खुद समर्पित रहे हैं वतन के लिये।।

हाथ उनके हजारों उठे साथ में, 
कार्य उनके हजारों करें साथ में, 
सबसे रखते सहोदर सरल भावना,
सबल संगठन बनाया वतन के लिये।।
पग बढ़ाया  हमेशा वतन के लिये।।
रचनाकार: राम सहोदर पटेल, सहा. शिक्षक 
शासकीय हाईस्कूल नगनौड़ी, निवास ग्राम- सनौसी थाना- ब्योहारी जिला- शहडोल (मध्यप्रदेश)
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लौह पुरुष की ऐसी छवि:अनिल पटेल


लौह पुरुष की ऐसी छवि,       
न देखि न सोची कभी।    
आवाज मे सिंह सी दहाड़ थी,
हृदय मे कोमलता की पुकार थी।।    
एकता का स्वरूप जो इसने रचा,  
देश का मानचित्र पल भर मे बदला।।      
गरीवो का सरदार था वो,
दुश्मनो के लिए लोहा था वो।  
आंधी की तरह वहता गया, 
ज्वालामुखी सा धधकता गया।
बनकर गांधी का अहिंसा का शस्त्र, 
महकता गया विश्व मे कोई ब्रम्हास्त्र।
इतिहास  के गलियारे खोजते है जिसे,
ऐसे सरदार पटेल अब न मिलते पूरे विश्व मे।।      
खंड खंड  को जोड़ जिसने,    
अखंड राष्ट्र का सृजन किया।
उन शिल्पी वल्लभ को सबने, 
लौह पुरुष कह नमन किया।। 
खेड़ा से राण  मे  रखे कदम,
भर हुंकार बारदौली मे बोले।
न दे लगान कि रत्ती हम,   
वाणी मे थी सिंह गर्जना।    
पांच सौ  पैसठ रजवाड़ो को,
कूटनीति से विलय किया।।
रचना:अनिल पटेल,
ग्राम-पोस्ट नगनौड़ी, तहसील-जयसिंहनग
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राष्ट्रीय एकता से सामाजिक एकता की ओर: जनार्दन

राष्ट्रीय एकता से सामाजिक एकता की ओर: जनार्दन 

 


आज हम सबने भारत वर्ष की राष्ट्रीय एकता के सूत्रधार सरदार वल्लभ भाई पटेल साहब का 145 वां जन्मदिन राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया । दोस्तोंजब हम लोग  एकता शब्द उच्चारित करते हैं तो मन में शक्ति का भाव ज्यादा उभरता है, किन्तु एकता शब्द  का  अर्थ   ( एक + ता = एक जैसा अर्थात  समानता) वाला भाव कितना जागता है, आप खुद से पूंछ लें।

 

साल दर साल हम सरदार पटेल एवम् अन्य महापुरुषों के द्वारा किए गए कार्यों को याद करते हैं और अच्छा महसूस करते हैं, फिर अपने जीवन यापन, अपने व्यवसाय एवं कार्य व्यवहार में लग जाते हैं। हमारा पूरा ध्यान इस बात में रहता है कि हम महापुरुषों के कार्यों के विषय में कितनी सटीकता से जानकारी रखते हैं, आपको क्या लगता है, किए गए कार्यों की चर्चा / उल्लेख से  देश(समाज) का उत्थान होगा? मुझे लगता है कि देश ( समाज) की बेहतरी तब होगी, जब चर्चा उन कार्यों की हो, जो अधूरे रह गए, जिन कार्यों को पूरा करने से पहले ही महापुरुष का भौतिक जीवन पूरा हो गया है।

 

सरदार पटेल साहब को राष्ट्रीय एकता का शिल्पी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने 562 रियासतों को भारतीय गणराज्य में मिलायालेकिन राजनीतिक आज़ादी के 73 वर्ष बाद भी सामाजिक एकता अर्थात सामाजिक समानता स्थापित नहीं हुई । बहुत खुशी होती यदि देश सामाजिक समानता की ओर बढ़ता हुआ दिखता, किन्तु अफसोस! ऐसा नहीं जान पड़ता। कभी-कभी ऐसा लगता है कि सुख समृद्धि की मृग मरीचिका के पीछे दौड़ते-दौड़ते, संविधान की प्रस्तावना में चिन्हित उद्देश्यों को हम भूलते जा रहे हैं। वैभव के लिए तड़पते नीति निर्धारकों को याद दिला दूं :  एक देश(समाज) के लिए गरीबी से ज्यादा दुखदाई है - असामनता की खाई।

 

आइए हम सब मिलकर उन कार्यों की चर्चा करें, जो काम सरदार साहब के जीवन में पूरे नहीं हुए, सरदार पटेल ने देश की रियासतों को मिलाकर एक विशाल राष्ट्र बनाया; हम सब देशवासी अनेक जाति - धर्म रूपी रियासतों को मिटाते हुए, सामाजिक समानता स्थापित करके इसे एक श्रेष्ठ राष्ट्र बनाएं।

 

सामाजिक समानता  एवं समान अवसर वाले श्रेष्ठ राष्ट्र की स्थापना के लिए संकल्पित - सरदार पटेल के द्वारा एकीकृत विशाल  देश का एक कृतज्ञ नागरिक-

 

जनार्दन पटेल, 31 अक्टूबर 2020

नवी मुंबई।

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सरदार वल्लभ भाई पटेल(आलेख): भानू पटेल



भारतरत्न लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल 


पूरा नाम- वल्लभ भाई झावेरभाई पटेल
जन्म- 31 अक्टूबर 1875 नडियाद (बंबई पेंसीडेंसी)
मृत्यु- 15 दिसम्बर 1950 (मुम्बई)
पत्नी- झाबेरवा पटेल
सरदार पटेल के नाम से लोकप्रिय
भारत के उपप्रधानमंत्री प्रथम (15 अगस्त 1947 से 15 दिसम्बर 1950)
सरदार पटेल जी का जन्म नडियाद,गुजरात में एक लेबा पटेल (पाटीदार) जाति में हुआ था। आपके पिता का नाम झाबेरभाई एवं आपकी माता का नाम लाडवा देवी था। आप अपने माता-पिता की चैथी संतान थे। आपके तीन बड़े भाई सोमाभाई, नरसीभाई औ बिट्ठलभाई थे। आपकी शिक्षा मुख्यतः स्वाध्याय से हुई। आप लन्दन जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत की।


महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर आप स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिए।
स्वतंत्रता आंदोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बड़ा योगदान 1918 में खेड़ा संघर्ष में  हुआ। गुजरात का खेड़ा खण्ड उस समय सूखा की चपेट में था। तब किसानों ने अंगेजों से कर में छूट की मांग की। जब यह स्वीकार नहीं किया गया तब सरदार पटेल ने किसानों का नेतृत्व कर अंग्रेज सरकार को झुकने पर मजबूर किया।
बारडोली सत्याग्रह भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान 1928 में गुजरात में किसानों के लगान में 30 प्रतिशत की वृद्धि कर दी गई। तब पटेल ने इसका जमकर विरोध किया। सरकार ने इस सत्याग्रह आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया और कठोर कदम उठाए लेकिन अंततःविवश होकर किसानों की मांगों को मानना पड़ा और लगान को 22 प्रतिशत कम कर 6.03 कर दिया।
इस सत्याग्रह आंदोलन में सफल होने के कारण वहाँ की महिलाओं ने बल्लभ भाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की। जिस कारण से भारत एवं अन्य जगहों पर उन्हें अक्सर हिंदी, उर्दू और फाारसी में ‘सरदार’ कहा जाता था जिसका अर्थ है ‘प्रमुख’।
किसान संघर्ष एवं राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम के अंतर्संंबंधों की व्याख्या बारडोली किसान संघर्ष के संदर्भ में करते हुए गांधी जी ने कहा कि इस तरह का हर संघर्ष, हर कोशिश हमें स्वराज के करीब पहुंचा रही है और हम सबको स्वराज की मंजिल तक पहुंचाने में ये संघर्ष सीधे स्वराज के लिए संघर्ष से कहीं ज्यादा सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
यद्यपि अधिकांश प्रान्तीय कांग्रेस समितियाॅं पटेल के पक्ष में थीं लेकिन गांधीजी की इच्छा का आदर करते हुए प्रधानमंत्री पद की दौड़ से अपने को दूर रखा और नेहरू का समर्थन किया। और उपप्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री का कार्य सौंपा गया। किन्तु इसके बाद नेहरू जी से संबंध तनावपूर्ण ही रहे। इसके चलते कई बार पद त्याग करने की धमकी भी दे दी।
गृहमंत्री के रूप में पहली प्राथमिकता थी  देशी रियासतों को भारत में मिलाना। इसको उन्होंने बिना खून बहाए पूरा किया। स्वतंत्रता के समय 562 देशी रियासतें थीं। इनका क्षेत्रफल भारत का 40 प्रतिशत था। आजादी के बाद ही वीपी मेनन के साथ मिलकर देशी रियासतों को भारत में मिलाने का वीणा उठाया और जम्मू और कश्मीर को छोड़कर  सभी को भारत में विलय कर दिया गया। नेहरू के कश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या अंतरराष्ट्रीय है और संयुक्त राष्ट्र संघ में ले गये और अलगाववादी ताकतों के कारण कश्मीर की समस्या बनी रह गयी।
एक भारतीय अधिवक्ता और राजनेता होेने  के साथ-साथ भारतीय गणराज्य के संस्थापक पिता थे। भारत के एकीकरण में महान योगदान के लिए उन्हें भारत का लौहपुरुष के रूप में जाना जाता है।
सन् 1991 में मरणोपरांत उन्हें भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारतरत्न’ से सम्मानित किया गया।
उनकी याद में भारत सरकार ने गुजरात के नर्मदा तट पर सरदार सरदार पटेल जी की एक विशाल मूर्ति स्थापित करने का निर्णय लिया । यह स्मारक लौह से निर्मित मूर्ति है। इस स्मारक का नाम ‘एकता की मूर्ति’ या स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी’ रखा गया। प्रस्तावित प्रतिमा को एक छोटे चट्टानी द्वीप ‘साधू बेत’ पर स्थापित किया गया जो केवड़िया में सरदार सरोवर बांध के सामने नर्मदा नदी के बीच स्थित है। इसे 31 अक्टूबर 2018 को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने राष्ट्र को समर्पित किया है।
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आलेख प्रस्तुति:  भानू पटेल, प्राथमिक शिक्षक एवं ब्लाक अध्यक्ष, आजाद अध्यापक शिक्षक संघ ब्लाक ब्योहारी जिला शहडोल निवासग्राम- आमडीह, थाना-ब्योहारी, तहसील-जयसिंहनगर जिला-शहडोल (मध्यप्रदेश)
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भारत रत्न सरदार वल्लभभाई पटेल (कविता): मनोज कुमार चंद्रवंशी

भारत रत्न सरदार वल्लभभाई पटेल
                          (कविता)

            सरदार   जी   का  जीवन  दर्शन,
            हम  सबके  लिए अनुकरणीय है।
            कर्मयोगी लौह पुरुष का योगदान,
            सियासत की धरा में अतुलनीय है॥
सरदार   पटेल    युग  प्रवर्तक  के   सच्चे  अवतारी थे।
दूर दृष्टा,   देशभक्त   मातृभूमि   के   परम   पूजारी थे॥

            प्रतिभा  के बहुमुखी  सरदार पटेल,
            बारडोली सत्याग्रह  में  आगे आए।
            महिलाएं   पटेल  को  उपनाम दिये,
           भारत में पटेल"लौह पुरुष"कहलाए॥
मन, वचन, कर्म से  भारतीय  संस्कृति  के संवाहक थे।
सरदार  अटल, निर्भीक  वर्ग विरोध  के  जननायक थे॥

           न्याय  प्रिय,   यथार्थवादी  पटेल,
           युग  दृष्टा,   साहित्य  साधक  थे।
           दीन- हीन वर्गों के मसीहा  पटेल,
           निज  मातृभूमि  के  आराधक थे॥
पटेलअनुशासन प्रिय,त्वरित निर्णय लेने की क्षमता था।
राज्य  एकीकरण  के अग्रदूत के हृदय में मानवता था॥

          राजनीति    एकता   के  सूत्रधार,
          संगठन शक्ति को  मजबूत किए।
          परतंत्रता की आंधी को रोक कर,
          "लौह पुरुष" होने का सबूत  दिए॥
सेवाभावी  पटेल "बिस्मार्क" के  नाम  से  प्रसिद्ध  हुए।
तन, मन से सियासत  एकीकरण यज्ञ को सिद्ध  किए॥

          अखंड भारत के स्वर्णिम सपनों को,
          सरदार   पटेल   जी  साकार  किये।
          प्रथम गृह मंत्री के पद में सुशोभित,
          राष्ट्रीय  एकता  को  मजबूत  किए॥
कर्मनिष्ट, मितभाषी, मृदुभाषी  जन-जन के  नायक थे।
प्रतिभावान, विराट व्यक्तित्व पटेल सब  के लायक थे॥

                         ✍रचना
                 (स्वरचित एवं मौलिक)
                 मनोज कुमार चंद्रवंशी
        बेलगवाँ जिला अनूपपुर मध्यप्रदेश

प्रियदर्शिनी इन्दिरा: राम सहोदर पटेल



प्रियदर्शिनी इन्दिरा



प्रियदर्शिनी इंदिरा प्रखर बुद्धिशाली,
अद्भुत अजूबा करामात वाली।
अदम्य साहसी शूरमा शेरनी की मूरत,
वतन की प्रगति में रही मतवाली
देशभक्ति से नस-नस तेरी रंगी थी,
बचपन से तेरी शक्ति जगी थी।
विलक्षण सकल कार्य होते हैं तेरे,
बनाया था वानरसेना प्रबल बच्चों वाली
महिला प्रथम थी जो भारत में छाई,
तेरी नीति का कोई नहीं पार पाई,
प्रेरक प्रकृति प्रेम निश्छल सदा ही,
कूटनीतिज्ञ दूरदृष्टि भावना निराली
बांग्ला को पृथक कर आजाद कीन्हा,
अनाचारी पाक के दाॅंत खट्टे कीन्हा।
सन् इकहत्तर का जंग जीत लीन्हा,
धैर्य और साहस प्रचण्ड शक्तिवाली
राजा नवाबों का प्रिवीपर्स रोका,
राष्ट्रीयकरण में अधिकोषों को झोंका।
भूमि की सीमा निर्धारण कराया,
तू लौह महिला अथक शौर्यवाली
कुशल प्रशासन से जन-मन को जीता,
गरीबी उन्मूलन में तेरा पल बीता।
रखती सहोदर सा नाता सभी से,
उर्जस्वला थी मृदुल बोलवाली
अद्भुत अजूबा करामात वाली
रचनाकार: राम सहोदर पटेल, सहा. शिक्षक 
शासकीय हाईस्कूल नगनौड़ी, निवास ग्राम- सनौसी थाना- ब्योहारी जिला- शहडोल (मध्यप्रदेश)
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बुधवार, अक्टूबर 28, 2020

सरदार जी का संक्षिप्त परिचय: राम सहोदर पटेल



-:सरदार जी का संक्षिप्त परिचय:-
बरस अठारह सौ पचहत्तर में,
अक्टूबर इकतीस को जन्म लिया
अपने अद्भुत सद्भावों से,
स्वातंत्र्य संग्राम को सफल किया
सरदारों का सरदार था वह,
निर्भय वीर महान था वह
रण कौशल था हिम्मतवाला,
सेना नायक दिलदार था वह
दृढता पर अविचल रह करके,
भारत का नव निर्माण किया
बारडोली का वन शेरेदिल,
कृषकों का उद्धार किया
कुशल युद्ध संचालन कर,
सरदार उपाधि को प्राप्त किया 
अजेय प्रबल पराक्रम से,
दुश्मन के छक्का छुड़ा दिया
मानवीय गुणों में थे भरपूर,
निज स्वारथ पर नहिं काम किया
दयाभाव अनुशासन से
जिम्मेदारी का कार्य किया
अपनी असाधारण बुद्धिमत्ता से,
पांच सौ बासठ रियासतें भंग किया
अखंड भारत को रच डाला,
नहीं किसी को तंग किया
प्रेरणा दायक सद्वृत्ति से,
सद्मार्ग दिखाया हम सबको
प्रखर करें उन भावों को,
फर्ज सिखाता हम सबको
रचनाकार: राम सहोदर पटेल,
सहायक शिक्षक, शास. हाईस्कूल नगनौड़ी
निवासग्राम-सनौसी, थाना-ब्योहारी जिला शहडोल (मध्यप्रदेश) 
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मंगलवार, अक्टूबर 27, 2020

सरदार वल्लभ भाई पटेल: महान व्यक्तित्व राम सहोदर पटेल

सरदार वल्लभ भाई पटेल: महान व्यक्तित्व

राम सहोदर पटेल



सरदारों का सरदार था वह,
दिलदारों का दिलदार था वह।
भारतीय किसानों का रक्षक,
देशभक्त किरदार था वह॥
था गुजराती शेरेदिल वह,
नेतृत्व कुशल सिद्धांत अटल।
था सख्त मिजाज सुभट योद्धा,
लौहपुरुष अवतार था वह॥
था मितभाषी, कर्मठ, जनसेवक,
भारत का एकीकरण किया।
प्रतिभा प्रखर नेतृत्व अटल,
वीर पुरुष दमदार था वह॥
था कालजयी हिम्मत वाला,
दुश्मन के होश उडाता था।
किया राष्ट्र निर्माण स्वबूते,
भारत का कर्णधार था वह॥
निज स्वारथ से दूर सदा रह,
दीन-हीन पर दया किया।
न्याय, निष्ठा, अनुशासित रह
भारत हित का पतवार था वह॥
दानी था दानवीर से बढ़,
पद लोलुपता का त्याग किया।
दान किया था राजमुकुट का,
क्योंकि गाँधी का वफादार था वह॥
कुटिल फिरंगी की कुटिल चाल को,
रौंद कुशल संचालन से।
रखा सहोदर रिश्ता सबसे,
इसीलिए सरदार था वह॥
इसीलिए सरदार था वह॥

रचनाकार: राम सहोदर पटेल,
शिक्षक, शासकीय हाईस्कूल नगनौड़ी
निवासग्राम-सनौसी, थाना-ब्योहारी जिला शहडोल
मध्यप्रदेश

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रविवार, अक्टूबर 11, 2020

जीवन और अन्तःकरण: इंजीनियर प्रदीप



जीवन और अन्तःकरण

जीवन एक जैविक घटना है, एक बायोलॉजिकल प्रोसेस है, अगर सिर्फ जीवन का मिलना ही जीना है तो मनुष्य और जानवर में कोई फर्क नहीं है क्योंकि जीवन तो उसे भी मिलता है, पर अन्तःकरण निर्मित होता है उसे बनाया जाता है अन्तःकरण उस पटल की तरह है जिस पर लिखना संभव है; जिस पर पहले से कुछ लिखा हुआ नहीं है। जीवन की शुरुआत में  अन्तःकरण शून्य होता है। लालच, घृणा, प्रेम, नफरत, काम  और क्रोध  भी अन्तःकरण नहीं हैं क्योंकि यह भाव है, एक परिणाम है, आवेग है अन्तःकरण की सतह पर बनती बिगड़ती हुई प्रतिक्रिया है ।

फिर अन्तःकरण क्या है? अन्तःकरण एक समझ है हर उस वस्तु को लेकर जो हमारे से होकर गुजरती है और जिसे देखकर हम उसका छाया चित्र कैद कर लेते हैं । यह सतत होने वाली प्रक्रिया है। हर समझ की नई परत हर बार हमारे मानस पर जमती चली जाती है और हमारा अन्तःकरण बनता चला जाता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति का अन्तःकरण अलग निर्मित हुआ है क्योंकि वस्तुओं को परखने का उसका परसेप्शन अलग था। उसे देखने का उसका नजरिया अलग था, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति एक समान दिखने पर भी भिन्न अन्तःकरण की वजह से भिन्न होते हैं । इसलिए अलग- अलग भू-भाग, और कई बार तो एक ही भू-भाग के अलग- अलग समूह, समाज में रहने वाले व्यक्तियों के आचरण, स्वभाव और नज़रिए में फर्क होता है। हमारा अंतःकरण कई स्तर पर भिन्न है और कई स्तर पर समान।

शुरुवात में बच्चे अंधेरे से नहीं डरते फिर जब वो रात में नहीं सोते हैं तो हम ही काल्पनिक डर उनके मन में भरते हैं। भले ही हमने  उन्हें नियंत्रित करने के दृष्टिगत यह सब किया हो पर यह सब उनके अन्तःकरण को निर्मित करता है और अंधेरा डर का पर्याय बन जाता है जबकि अंधेरा जिज्ञासा का विषय है । चूंकि उनका अन्तःकरण नए ब्लैक बोर्ड की तरह एकदम साफ सुथरा होता है उस समय का उकेरा हुआ वो डर जीवन पर्यन्त नहीं मिटता । अंधेरा डर का पर्याय है यह बालक के अन्तःकरण में अमरता के साथ लिखने में अभिभावक, कोई रिश्तेदार जैसे कि नाना-नानी,मौसा-मौसी या दादा-दादी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जबकि अंधेरा का अर्थ  प्रकाश का न होना है। जब सूर्य पृथ्वी के एक हिस्से में चमक रहा होता है तो पृथ्वी के दूसरे हिस्से में अंधेरा होता है।  चूंकि बच्चे में विवेक नहीं होता तो उसे जियोग्राफी समझाना और विवेक के आधार पर उसे सोने के लिए तैयार करना आसान नहीं होता तो हम उसे डर का खुराक देते हैं। पर हम इस तरह उसका अन्तःकरण भी निर्मित कर रहे होते हैं। ईश्वर का डर भी एक ऐसा ही डर है जो हमारे अन्तःकरण में निर्मित किया जाता है। राजनीति, धर्म और व्यवसाय इसके लाभार्थी भी हैं और पोषक भी ।

बड़े होते-होते एक इंसान का अन्तःकरण परिपक्व होते चला जाता है। यह परिपक्वता आकृति या विकृति के संदर्भ में नहीं है बल्कि  रिजिडनेस और फ्लेक्सिबिलिटी के संदर्भ में है । व्यक्ति का अन्तःकरण अंततः उसका ईगो और व्यक्तित्व बनता चला जाता है, भले ही उसका अन्तःकरण अचेतन में निर्मित हुआ है। अबतक निर्मित हो चुका अन्तःकरण नए विचारों को, विविधता को रिजेक्ट करता है  ऐसे विचार जो अन्तःकरण के हिसाब से न हों, हम उसे पहली बार में स्वीकार नहीं करते चाहे कितने भी तथ्य रखें जाएं। पर ऐसा नहीं है कि अन्तःकरण निर्माण की प्रक्रिया खत्म हो चुकी है यह एक सतत प्रक्रिया है पर जैसे पहले से लिखे हुए बोर्ड में नया कुछ लिखा हुआ स्पष्ट रूप से चिन्हित नहीं होता वैसे ही नई विविध जानकारी अन्तःकरण परिवर्तन में बहुत ही स्थिलिता से काम करती है।


इसलिए नए समाज और देश का निर्माण बच्चों के अन्तःकरण निर्माण से प्रारंभ होता है । हमारे बच्चों का अन्तःकरण निर्माण राजनीतिक और सामाजिक वातावरण में स्वतः हो रहा है या फिर हमारे सतत नियंत्रण और देखरेख में  इस पर बहुत कुछ  निर्भर करता है । इसलिए अन्तःकरण  निर्माण को राजनैतिक परिपेक्ष्य में भी  समझना आवश्यक है। जब राजनीति से प्रेरित कोई समूह  बैनर, होर्डिंग, पुस्तक, ऑडियो ,वीडियो लेख , कविता और कैंपेन के माध्यम से झूंठ और प्रोपगंडा को लगातार, बार-बार परोसता है , छद्म आदर्श और काल्पनिकता के प्रति प्रेम की आड़ बनाकर पॉलिटिकल कैंपेन करता है तब भी जन और समूह खासकर बाल मन  का  अतः करण निर्मित किया जा रहा होता है। इस अन्तःकरण निर्माण के पीछे जन समूह में स्वीकारता को विकसित करने का उद्देश्य होता है। पोलिटिकल लाभ के लिए हम  पब्लिक सेंटीमेंट में बदलाव करते हैं। पब्लिक सेंटीमेंट बदलते ही हर चीज बदलने लगती है। हर व्यवस्था, समूह और न्यायिक प्रणाली पब्लिक सेंटीमेंट के हिसाब से  अलाइन  होने लगता है। टेलीविज़न पर डिबेट के विषय बदल जाते हैं, नेताओं के भाषण में नारे और मुद्दे बदल जाते हैं  न्यायाधीशों के न्यायिक तर्क बदल जाते हैं , गली-मोहल्ले के बच्चों के व्हाट्सप्प और फेसबुक के  पोस्ट बदल जाते हैं ।
यह निचले स्तर पर अबोध और स्वतः आकार लेता  हुआ समाज की तरह प्रतीत होता है  पर ऊपरी स्तर एक सुव्यवस्थित संचालित किया हुआ प्रोग्राम है  जो फेसबुक,व्हाट्सप्प के पोस्ट फॉरवर्ड करने एवं  टेलीविज़न व समाचार पत्रों पर यकीन करने वाले समूह को हांकते- हांकते उनके बुनियादी विचार तंत्र से विस्थापित कर देता है,  और इस तरह वर्तमान पीढ़ी  के  राजनीतिक एवं सामाजिक अंतःकरण  का नवीनीकरण हो जाता है। पर अंतःकरण की  इस  सतह पर खड़े व्यक्ति को यही लगता है कि वह  कोई मौलिक कार्य कर रहा है जबकि सामूहिक और भीड़ वाली इस अन्तःकरण का वह भी एक प्रतिबिम्ब मात्र है।

आलेख: 
ई. प्रदीप पटेल नागपुर, महाराष्ट्र

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