रविवार, अगस्त 02, 2020

बाबूजी सच कहूं: कोमल चंद



बाबूजी सच कहूं
 
अन्न उगाते हम 
भूखे भी हम 
बांध बनाए हम 
प्यासे भी हम। 
स्कूल बनाए हम 
अनपढ़ भी हम 
कपास उगाते हम 
नंगे भी हम। 

मकान बनाए हम 
बेघर भी हम 
अस्पताल बनाए हम 
मरते भी हम। 
हमनें अपना दुख कह दिया 
तुम्हारे महलों में हमारे चिन्ह 
फिर भी हम तुमसे भिन्न ... 
हमारा हिस्सा ..... 
हमें लौटा जाओ, 
कहीं ऐसा ना हो, 
इस धरा में अकेले रह जाओ। 
सोचता हूं चला जाऊं बचपन में 
बनाकर टोलियां खूब खेलू खेल, 
जो हमारा हक छीनते हैं, 
उन्हें भेज दूं जेल। 
सोनू,मोनू, दीनू, दुखिया, 
सब होंगे अधिकारी 
बिजली-पानी राशन 
आवास योजना..... 
सबकी होगी इंक्वायरी 
नहीं बचेंगे शोषणकारी। 
ना रहेगी अंधेर नगरी, 
ना होगा चौपट राज, 
फांसी का फंदा नया बनेगा, 
अपराधी उसमें जरूर चढ़ेगा। 
फर्जी योजना बंद करेंगे, 
जनहित के काम करेंगे। 
भूखा,नंगा, घर बिन आटा, 
उसको कहां मिलेगा डाटा। 
यह योजना बेकार, 
इसको बंद करेंगे। 
बचपन है खुशहाल, 
वहीं हम राज करेंगे। 

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शोषण करने वालों को, 
कभी ना हम माफ करेंगे। 

(उक्त रचना मेरी मौलिक रचना है) 
कोमल चंद कुशवाहा 
शोधार्थी हिंदी 
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा 

मोबाइल 7610 1035 89 [इस ब्लॉग में रचना प्रकाशन हेतु कृपया हमें 📳 akbs980@gmail.com पर इमेल करें अथवा ✆ 8982161035 नंबर पर व्हाट्सप करें, कृपया देखें-नियमावली

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