धरती का बेटा
- रजनीश हिंदी (प्रतिष्ठा)
खेतों से, खलिहानों से
घर में आ रही सौंधी बास
फिर ये खेतों का संचालक
क्यों है संतप्त और उदास?
धरती की गोद से
अन्न
उपजाकर लाते हैं हमारे द्वार
वृक्षों की माला से चलती है
महकती है शीतल बयार......
धरती के ये श्रमिक-पुत्र हैं
ये धरती के सेवक हैं
श्रम-पूँजी और संगठन शक्ति से
जगमग जग भर जाते हैं........
प्रकृति कहर से ये डर जाते
फिर
माँ धरती को याद हैं करते
धरती
के संरक्षण खातिर
हरदम ये हैं मरते .......
देश-सम्मान इन्हीं के हाथों
ये पोरा-पोरा जग रोशन करे
जिलाए विश्व जनों को
देखो,सब जन का ये मोदन करे।
तीज-त्योहारों से
लेकर
खुशियाँ
घरों तक फैलाये
आज
तुम्हें सर्वस्व समर्पण
तू
हम सबको है बदलाए......
रचना:- रजनीश हिंदी (प्रतिष्ठा)
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