शनिवार, जून 13, 2020

तुम हो चिराग: सुरेन्द्र कुमार पटेल

तुम हो चिराग 
तुम हो चिराग,तुम्हें  यह  यकीन हो जाये।
क्यों मां-बाप  का दामन नमकीन हो जाये।
जिनके सपनों में घुली है पलपल की चिंता,
क्यों जीवन पानी से निकाली मीन हो जाये॥

तुम  बढ़ो और  सपनों  को  बढ़ाते  जाओ।
सामाजिक मूल्य भी खुद को पढ़ाते जाओ।
अटपटी  हैं  जीवन की  राहें  यहां बहुत सी,
इच्छा-बेलों को दे हाथ ऊपर चढ़ाते जाओ॥

इस छोटे से उम्र में और भी काम हैं बड़े-बड़े।
जीवन में मिलता नहीं बहुत कुछ बिना लड़े।
दो जून की रोटी की जद्दोजहद जीने नहीं देती,
क्या  तुम्हें  सब कुछ मिलेगा यूँ ही पड़े-पड़े॥

बनाना है तुम्हें यहाँ अपनी एक पहचान भी।
मां-बाप के सपनों को चाहिए एक निशान भी।
कुछ  बनना है खुद की परवरिश के लिए और,
समाज को मिले तुम्हीं से एक भला इंसान भी॥

अगर कुछ खट्टा है मन मेंमन से विलग करो।
खट्टे होने वाले मीठों कोजाँच कर अलग करो।
निज मन भावों का निरंतर  करते रहें परीक्षण,
अरमानों को ऊंचाई देने का कुछ तो जुगत करो॥


© सुरेन्द्र कुमार पटेल
ब्यौहारी, जिला-शहडोल
मध्यप्रदेश
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4 टिप्‍पणियां:

  1. अरे वाह सर कुल की दीपक को आपने सुंदर पंक्तियों से बंया किया है हे! कवि श्रेष्ठ शत शत नमन।

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  2. सर आपने तो शब्दों की शीतल बारिश कर जीवन गतियों को प्रतिबिंबित कर दिए हैं ,,,,सच भाव चित्र खींचना कोई आप सीखे,,,,

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