*शहीद हो गए कंत*
नाश की पट भूमिका पर ,
पदचिन्ह छोड़कर चले गए।
मांग में लालिमा रोली भर,
अंगार बना कर चले गए।
पुलकित दृग में प्रेम बीज भर ,
अश्रु धार बना कर चले गए।
स्नेह जलद के प्रेम नांव में,
अनुराग अधूरा छोड़ चले गए।
सहस्त्र ख्वाब की सेज पर,
कटीली रजनी छोड़ चले गए,
मन-मंदिर के प्रेम पुजारी
दीया बुझा कर चले गए।
अंतस में ऐसा घाव दिये ,
गरल पिला कर चले गए।
पर मेरे परम -प्यारे पिया,
वतन का मान बढाकर चले गए।
गर्व करु ,अभिमान करूं,
सिसकूं या जयगान करूं।
धरती मां के वीर पुत्र ,
माता का कर्ज उतार कर चले गए।
मेरे प्रारब्ध के पुण्य कंत
यश गात बना कर चले गए।
नाश की पट भूमिका पर ,
पदचिन्ह छोड़ कर चले गए।।
©रचनाकार
अंजली सिंह
उच्च माध्यमिक शिक्षक
शासकीय स्तर माध्यमिक विद्यालय भाद
मार्मिक चित्रण कर उस दर्द को प्रस्तुत किया है जो इन हालातो में परिवार में पैदा होता है राजनीति वाले शौर्य गान से अपने भाओं को बचा लिया है अपने, इस तरह एक पत्नी, एक माँ के पीड़ा की अभियक्ति के साथ जो न्याय किया है आपके शब्दों ने वह प्रशंशनीय है|
जवाब देंहटाएंमार्मिक चित्रण कर दर्द को प्रस्तुत किया है kahani
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना hindi me
जवाब देंहटाएंमैं इस ब्लाग के कुशल नेतृत्वकर्ता ,प्रणेता ,दक्ष व्यक्तित्व को नमन 🙏🙏🙏 करती हूं | साथ ही मेरी कविता के लिए जो स्नेह और प्रोत्साहन आप लोगों ने कमेंट (टिप्पणी) से मुझे जो अनुराग दिए हैं उसके लिए मैं हृदय से बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏 देती हूं|आत्मिक आभार 🙏
जवाब देंहटाएंमर्म स्पर्सी,अद्भुत चित्रण आपको साधुवाद ,शुभकामनाएं
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