सोमवार, जून 29, 2020

हाइकु (भारत में कविता की नयी विधा): अविनाश सिंह


1. हाइकु:-पिताजी संबंधित
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पेड़ की छाया
उसके फल-फूल
होते हैं पिता।

धूप में छांंव
गागर में सागर
होते हैं पिता।

उठाये बोझ
जिम्मेदारी से दबे
होते हैं पिता।

घर की खुशी
मंदिर के देवता
होते हैं पिता।

पिता हमारे
है चाँद और तारे
लगते न्यारे।

पिता महान
दे वो जीवन दान
करो सम्मान।

पिता का प्यार
न दिखता हमेशा
है एक जैसा।

मुश्किल कार्य
हो जाते है आसान
पिता के साथ।

घर की नींव
भोजन का निवाला
जुटाये पिता।

पिता का रूप
अदृश्य महक सी
चारों तरफ।

पिता दुलारे
करे मार्गप्रशस्त
गुरु समान।

पिता की डाँट
सफलता का राज
रखना ध्यान।

घर की शान
रखे सभी का ध्यान
करो सम्मान।

2. *हाइकु:-हार या जीत*💐
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हार या जीत
सिक्के के दो पहलू
ना करो भेद।

हार या जीत
होते मन के भ्रम
भरे अहम।

हार या जीत
कर्म के होते फल
कम या ज्यादा।

जीत या हार
जीवन के दो मंत्र
रहो तैयार।

हार या जीत
गाड़ी-चक्का समान
उलट फेर।

हार या जीत
सावधानी से चुनो
आगे को बढ़ो।

हार या जीत
परिवर्तन शील
नही अडिग।

हार या जीत
न मिले लगातार
करो संघर्ष।

हार या जीत
मिलेगा एक दिन
मान या ठान।

हार या जीत
दे गम या अहम
रहना दूर।

हार या जीत
देगा दुख या सुख
पहले उठ।

हार या जीत
है दीपक के रूप
देता प्रकाश।

©अविनाश सिंह, नई दिल्ली।
8010017450 

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