हृत वन्दन -रजनीश (हिन्दी प्रतिष्ठा)
हूँ मैं श्रवण
हूँ मैं लक्ष्मण
चिरकाल से हूँ मैं 'सदाचारी'
स्मरण मुझको
सेवा, सद्भाव
आदिकाल से हूँ 'हृत-विचारी'
धरा नूतन,राग नूतन
सच हूँ मैं अनुराग विस्तारी
स्मृति सदा मुझको
पूव र्जों की अप्रतिम अवतारी
सच, पूर्वकाल से ही व्यवहारी
रतन हूँ, चमन हूँ
मातृभूमि का अनुगमन हूँ
शीश अपनी भेंट करता
भारत भूमि का हवन हूँ
है समर्पित 'जीवन-त्याग' मेरे
स्वीकार कर ऐ माँ मेरी धरती
मैं तेरी कभी भाई, कभी छोटी बहन हूँ
हूँ मैं शुभचिन्तक
हूँ मैं विस्तारक
और दीर्घकाल से आचारी
सृष्टि मेरी पूजा, सेवा मेरा कर्म
मैं सर्वजन का हूँ कल्याणकारी
नर हूँ, नारी हूँ
जल हूँ,जीव संचारी हूँ मेरी प्यारी माँ धरती को
सब मेरे मातृ-बन्धुत्व सादर समर्पित
सृष्टि मिलनसारी हूँ
वीर हूँ,धीर हूँ
इस अंतरिक्ष का मैं 'शूर-प्रवीण' हूँ
इस विस्तृत जग शिला का
निर्भीक हूँ, विचित्र हूँ
कलश रूप चित्र का
मनोरम 'हृत-कृत्य' हूँ
फूल हूँ, फल हूँ
उपवन सुरम्य का
मैं स्नेही भृंग हूँ
धर्म हूँ, दर्शन हूँ
धरा का सत्य हिन्दुत्व हूँ
मैं विश्व शिला का प्रभावक प्रभुत्व हूँ
आज इस विश्व के
एक-एक जन को
वीरभद्र, श्रवण-लक्ष्मण होनी चाहिए
शूरता,प्रेम-सद्भाव का प्रसार कर गीत गाना चाहिए
सब बने फूल
सब बने गीत
कृत्य कुछ ऐसे विशेष हो
कि सृष्टि हो प्रमीत
हाँ, आज हम स्पष्ट हों
सुकर्म में व्यस्त हों
कोई दोष न छूने पाए
ऐसा हमारे हस्त हों
यहां सब श्रवण हैं
भारत भूमि के भ्रमण हैं
माँ माटी को तर्पण है
माँ धरती को सर्व समर्पण है
माँ भारती को जगवंदन है
सहृत अभिनंदन है
'कलश- शिखा' की सुंदर छाया से
भारत माँ के सब स्पन्दन हैं।
रचनाकार:रजनीश (हिन्दी प्रतिष्ठा)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया रचना के संबंध अपनी टिप्पणी यहाँ दर्ज करें.