शनिवार, मई 09, 2020

मां: श्रद्धा


मां

रूप दिया, आकार दिया।
इस जग में अवतरण किया।
जीवन देकर मां ने ही।
 अमृत पान कराया।
मां के भीतर जगत समाया।
मां से सब ने जीवन पाया।
मां ही पहली गुरु बनी।
मां ने ही संस्कार सिखाया।
त्याग तपस्या का कोश मां।
व्रत उपवास सुरक्षा मां।
नींद कभी ना आए तो।
लोरी का गान है मां।
सारे कष्ट स्वयं मां सहती।
आंच ना आने देती मां।
धूप लगे तो खुद तपती।
पर आंचल से ढक लेती मां।
रहे लाल कुशलता से।
 इसलिए दीप जलाती मां।
मां से बड़ा देव नहीं दूजा।
मां की जग में होती पूजा।
मां चरणों में चारो धाम।
मां की सेवा मेरा काम।
यह जीवन भी मां पर कुर्बान।
मां के इतने उपकार।
भूख प्यास सब सह लेती मां।
धूप शीत भी सह लेती मां।
पर नयनों के तारों को।
भूखा नहीं सुलाती मां।
भूख नहीं यह कहकर ।
अपना हिस्सा भी दे देती मां।
लिखूं इबारत मां उपकारों की।
या मां का प्यार सुनाऊं।
सोच रही हूं।
मैं अपनी मां की।
सच्ची बेटी बन जाऊं।
मां की सेवा कर।
 मां का कर्ज चुकाऊ।
रचना: श्रद्धा कुशवाहा कक्षा 9
माता श्रीमती द्रोपती कुशवाहा
पिता श्री कोमल चंद कुशवाहा
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