शनिवार, अप्रैल 18, 2020

समाज का नूतन आकार: मनोज कुमार चंद्रवंशी

समाज उन्नयन क्यों, कैसे प्रबुद्ध जनों का प्रारूप हो ।
पल्लवित, पुष्पित समाज में जब एकता का सूत्र हो ।।

हम सबके मन में नव परिवर्तन के लिए केवल एक आस ।
आओ सब मिलकर करें समाज का चौमुखी विकास ।।

सामाजिक कुरीतियों, अत्याचारियों का करें बहिष्कार ।
समाज को नूतन तालीम से दें नये आकार ।।

भ्रातृभाव और समरसता का  हमें जन-जन में अलख जगाना है ।
नित  नये दिन समाज को प्रगति के पथ पर लाना है ।।

समाज के लिए तन-मन-धन सब कुछ अर्पण करना है ।
नवचेतना का प्राण फूँककर पूर्वजों का तर्पण करना है ।।

मुखरित होकर आगे आएं जब तक है  रगों में लहू का प्रवाह ।
तब तक राही बनकर बढें समाज है नैतिक गुणों का अथाह ।।

हमें निज स्वार्थ से मुक्त होकर शिक्षित समाज गढ़ना होगा ।
मानसिक गुलामी की प्रताड़ना उन्मूलन के लिए लड़ना होगा ।।

कमर कसे नवयुवक पीढ़ी समाज का सिरमौर बने ।
मानवता के पथ पर बढ़कर वीर साहसी  शौर्य बने ।।

सदियों से शोषित पीड़ित समाज में नए ज्ञान मंत्र फूकना होगा ।
कंटक मार्ग में अविरल चलकर लक्ष्य प्राप्ति करना होगा ।।

तन हो सुंदर मन हो सुंदर शिक्षित संस्कारित समाज हो सुंदर ।
समाज में सदाचार समरसता का भाव संचित कर समाज सृजन में आवाज हो सुंदर।।

काव्य रचना- मनोज कुमार चंद्रवंशी (प्राथमिक शिक्षक)  संकुल-खांटी, विकासखंड-पुष्पराजगढ़, जिला अनूपपुर-मध्य प्रदेश

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