मैं भी रस हूं तू भी रस है।
रस है जीवन सारा।
तू मेरा ले मैं तेरा तेरा लूं ।
यह बात व्यर्थ है यारा।
मैं भी रस हूं तू भी रस है।
रस है जीवन सारा।
दोनों मिल दे दया दान का
चख ले यह जग सारा।
मैं भी मिट्टी तू भी मिट्टी
मिट्टी है जग सारा।
इस मिट्टी का गर्व न करना
यह तन न मिलेगा दुबारा।
मैं भी रस हूं तू भी रस है।
रस है जीवन सारा।।
ना मैं तेरा ना तू मेरा
सपना है जग सारा।
स्वार्थ के सब मीत बने हैं।
कोई ना अपना यारा।
मैं भी रस हूं तू भी रस है।
रस है जीवन सारा।।
काव्य रचना: कोमल चंद कुशवाहा
शोधार्थी हिंदी
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा
मोबाइल 7610103589
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अति सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंVery nice 👌👌 mama ji
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जवाब देंहटाएंMst h sir
जवाब देंहटाएंVery nice line
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