(एक) चीत्कार
मजदूर, किसान
मिट्टी, गोबर, खेत, खलिहान।
सर्दी, गर्मी, वर्षा के बीच।
भूख-प्यास सहकर।
परिवार से दूर रहकर।
देश के लिए जिया।
जीवन भर परमार्थ किया।
बच्चों को कपड़ा, किताब
शिक्षा, स्वास्थ्य कुछ नहीं।
अभावों मे जीकर।
उम्र भर संघर्ष कर।
एकलव्य की तरह।
स्वाध्याय से
विद्या अर्जित कर।
रोजगार तलाश करें।
तो उनकी प्रतियोगिता राजकुमारों से क्यों?
प्रतियोगिता बराबरी में नहीं, क्यों?
पैदल और घुड़सवार
राजा और रंक
सीपी और शंख
नदी और नाला
धरती और आकाश
सब बेमेल हैं।
प्रसंग है महाभारत का
कर्ण और अर्जुन का
राजकुमार और सूतपुत्र का
प्रश्न था प्रतियोगिता बराबरी में होगी।
आज ऐसा क्यों?
पहले उन्नति के समान अवसर।
शिक्षा स्वास्थ्य सब बराबर।
गुरु द्रोण के शिष्यों से
मजदूर, किसान के बच्चों की
प्रतियोगिता क्यों?
(दो) महुआ
टिप-टिप बूंदों सा।
झरता मधुरस सा।
मधुर शीतल बल वर्धक।
वन वासियों का रक्षक।
औषधि गुण खूब मिलते।
दाह, पित्त ,वात ,दूर
रहते।
तेरी बात सबसे खरी।
आटा मैं मिल बनता महुअरी।
आकाल में भी तुही पालता।
तेरा ही बन जाता "लाटा"
आय का भी स्त्रोत उनका ,
कुछ नहीं रोजगार जिनका।
बनवासी तुझे महुआ देव कहते।
पेट भर तेरा भोजन करते।
तेरी बिरादरी की चिरौंजी और हर्रा।
बनवासी फूल के रस से बनाते ठर्रा।
मस्त सौरभ शर्करा युक्त।
पकवान तेरा रखता दुरुस्त।
तू था कभी संपूर्ण आहार।
व्यापारियों ने किया प्रहार।
वनों की कटाई का असर ।
छिन गया गुजर और बसर।
रचना:कोमल चंद कुशवाहा
शोधार्थी हिंदी
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा
मोबाइल 7610103589
Bht achhi kavita hai..sir��
जवाब देंहटाएंNice sir
हटाएंग्रामीण संस्कृति की बहुत ही मार्मिक चित्र उकेरे हैं। सर आपका बहुत-बहुत धन्यवाद्। आपके स्नेहन में -रामू
जवाब देंहटाएंBahut badhiya
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