देखो, देखो कैसी घड़ी है आई,
विपदा देश पर बड़ी है छाई।
परीक्षा है संयम और धीरज की,
परीक्षा है हमारे नैनों के नीरज की ।
नही, नही है साधारण यह बीमारी,
दुनिया मान चुकी है इसे महामारी ।
यह जहाँ रुका है वहीँ इसे रोकें,
वरना मिलेंगे केवल धोखे पर धोखे ।
फैल रहा यह आदमी से आदमी में,
इसीलिये दूरी बनाओ आदमी से आदमी में ।
यह छुपा रूस्तम-सा भी आता है,
खुद में बिना लक्षण भी यह रह जाता है ।
इसीलिए सोचो कैसे इसे पहचानोगे,
कौन है रोगी यह कैसे जानोगे?
साधारण दिखने वाला भी इसे फैलाएगा,
सादी वर्दी में भी ये आ जायेगा ।
इसीलिये ऐसी मजबूरी है आई,
उपाय केवल और केवल दूरी है भाई ।
अब न हाथ से हाथ मिलाओ,
नमस्ते कहने को दोनों हाथ उठाओ ।
संस्कृति है यह भारत की पहले से ही,
फिर फह्रेगी यह पताका भारत की ।
डाक्टर भी हाथ जोड़ विनयवत हैं,
जान हथेली पर रख जो सेवारत हैं ।
कम से कम हम उनकी तो मानें,
बेमतलब न पग घर से बाहर निकालें ।
पूरा देश आज संकटमय है,
इसे बचाने का ही गीत एकलय है ।
खुद रहो सुरक्षित और रहना सिखलाओ,
खुद बन दीपक यह अंधेरा मिटाओ ।
न जाने किस दिशा से आ घेरे,
न जाने प्राण यह किसकी ले ले ।
बंद हुए हैं अब ईश के भी दरवाजे,
बंद हो गये हैं गाने और बाजे ।
घर से ही अब हो रही नमाज अदाई,
घर से ही प्रार्थना स्वीकार रही मैहर की माई ।
देश का मुखिया भी कर जोड़े,
देश बचाने योगदान करो अब थोड़े-थोड़े ।
तुम्हें बचाने उसने लक्ष्मण रेखा खींची,
लड़ने को संकट से उसने मुटठी भींची ।
जो ललना अब तक पलने में है,
उसकी रक्षा केवल तुम्हारे घर रहने में है ।
घर के सयाने, जिनसे हो रही है रोशनाई'
न खोदें हम उनके लिए कोई खाई ।
उन पर ही यह ज्यादा हमलावर है,
उन पर ही जिनसे हमारा घर इतना सुंदर है ।
उनके प्राणों की रक्षा की लें जिम्मेदारी,
घर से बाहर जाना अब न रखें जारी ।
ऐसी आशा हम सब पालें,
खुद सम्हलें और लोगों को सम्हालें ।
यह अँधेरा है अब मिटने ही वाला,
थोडा-सा संयम रख लो, है पौ फटने वाला ।
इस रात के बीते सब उगता सूरज देखें,
इस पल को गुजारें और स्वर्णिम पल देखें ।
होगा विहान तो हम संग गायेंगे,
बालक भी और वृद्ध हमारे मुस्कायेंगे ।
रचना:सुरेन्द्र कुमार पटेल
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