बुधवार, जनवरी 08, 2020

तुम्हें अंधेरा ही चाहिए क्या: सुरेन्द्र कुमार पटेल


बिक रहा है मिट्टी के मोल,
तुम्हें भी कुछ चाहिए क्या?
तुम्हारी चुप्पियों ने घुप अंधेरा किया,
तुम्हें अंधेरा ही चाहिए क्या?

थी  चमक जुगनुओं-सी,
भारत में तुम्हारे शिक्षा दीप की।
बढ़ने लगे थे पग इसी में,
निकालने मोती सत्ता-सीप की।

लेकर हाथों में प्रमाणपत्र,
कहते थे वो काम-दो, काम दो।
उसने भी क्या खूब दिमाग लगाया,
इनकी पैदाइश में ही लगाम दो-लगाम दो।

सत्ता शक्ति ने सर्वदा के लिए,
प्रदीप्त दीप ही बुझा दिया।
रोशनदान-से आती रोशनाई
बुझा, घर में घुप अंधेरा किया।

बनकर मजाक रह गए,
शिक्षालय तुम्हें दिखे नहीं?
खो रही कुंजियाँ दिनोंदिन,
लटकते तालों के दिखे नहीं?

नवाचार की भेंट चढ़ रहे
नित नव प्रयोग सिर्फ यहाँ,
फीस सरकार से भरे गए जहाँ,
क्या वही प्रयोग हुए हैं वहाँ?

सवाल तुम उनसे करो नहीं,
यहीं हो पैदा, मरो यहीं।
आंख सत्ता से तुम मिला न सको,
कुपथिक बनने में डरो नहीं।

तुम अंधेरी खाईं से निकलने लगे,
डर उन्हें लगा जो सबेरा हुआ।
होकर बेदखल जीना पड़ेगा,
जो सत्ता तक तुम्हारा बसेरा हुआ।

राज्य का उत्तरदायित्व था,
जो जनता के सिर मढ़ा गया।
शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और सुरक्षा
संविधान से है सुरक्षित, ऐसा पढ़ा गया।

शिक्षक हुआ रोबोट-सा,
रिमोट है जिस-जिसके हाथ में।
उस रिमोट का भी रिमोट है,
देश के पूंजीपतियों के साथ में।

हर शहर, हर गांव-गली में,
एक बोर्ड झूलता वह झरना है
जिसे शिक्षा के नाम पर,
झोली किसी का भरना है।

तुम्हारे बीच के कुछ युवा,
मुनाफा कमाने लगे हैं जो इसी विधा से,
वे नमूने हैं दिखाने के, दिग्भर्मित करने के,
झियो भी यूनिवर्सिटी खोल रहा इसी सुविधा से।

मतदान अगर करते तुम
निर्भीक, स्वनियंत्रित विचारों से।
कोई-कोई बहकता मदिरा के वश,
तुम तो बहके सरकारी चटनी और अचारों से।

नित नए खुल रहे निजी प्रतिष्ठान,
मुनाफाखोरी है आधुनिक मैकॉलों का।
करके वादा जनता से खुद आबाद हो रहे,
सत्ता में भी है दखल शिक्षा के इन दलालों का।

शिक्षालयों का हुआ पतन सुनिश्चित,
अब विश्वविद्यालयों की बारी आई है।
क्योंकि सत्ता पर उठ रहे सवालों से,
सारी मशीनरी बुरी तरह घबराई है।

हमारे मौनव्रत,मौका परस्ती से,
शिक्षार्थीयों का वस्त्र रक्तरंजित होना चाहिए क्या?
जिम्मेदारों पर जिम्मेदारी का बोध कराने,
सवाल उठाना यूं वर्जित होना चाहिए क्या?

बिक रहा है मिट्टी के मोल,
तुम्हें भी कुछ चाहिए क्या?
तुम्हारी चुप्पियों ने घुप अंधेरा किया,
तुम्हें अंधेरा ही चाहिए क्या?
-सुरेन्द्र कुमार पटेल 

4 टिप्‍पणियां:

कृपया रचना के संबंध अपनी टिप्पणी यहाँ दर्ज करें.