कितनी और कथाएं
० सुरेन्द्र कुमार पटेल०
कितनी और कथाएं
कितने लेख लिखे जाएं।
मैं तो कहता हूँ कि
जब जल ही गई
सचमुच की कविता
तब इस कविता को क्या पढ़ना?
चलो इसे भी आग लगाएं।
जिस बाप की जली बेटी,
उसकी वह ही कविता थी, गीता थी।
जनक रह गया खड़ा स्वयंवर के उत्सव में
जो छली गई वह ही उसकी सीता थी।
इस समाज के रावण को
चलो अपने ही हाथों फंदे पर लटकाएं।
...कितनी और कथाएं
निर्भया के साथ हुआ जो,
ऐसा लगा यह अंतिम, लोगों में अब भय होगा।
क्या मालूम था सत्ता के आश्रय में
बलात्कारी का ऐसा आचरण निर्भय होगा।
लकवा मार गया कण्ठों को
किस मुंह से, ऐसे गीतों को गाएं।
....कितनी और कथाएं
किससे उसने की नहीं मनुहार,
तमाशाई बने रहे सब दरबारी।
राज्य बचा नहीं सका अपनी मर्यादा
प्रकट हुई उसकी कलयुगी लाचारी।
कर्तव्यविमुख रहे जो-जो अधिकारी,
वे पिशाच, नराधाम भी फन्दे पर लटकाएं जाएं।
....कितनी और कथाए
वह कितना तड़पी होगी, कितना छटपटाई होगी।
फिर कितना करके साहस आप बीती बताई होगी।
जग रहा सुनता, वह सुनाती रही।
जग भी हुआ लाचार, वह देह नुचाती रही।
ऐसे क्रूर दानवों का जेल करे क्यों पोषण?
ऐसे क्रूर दानवों पर तत्काल सजा सुनाएं।
....कितनी और कथाएं
चर्चा हुई पुरजोर, और आंकड़ा दिखाया
नहीं है आंकड़ा बहुत ऐसा दरबारियों ने बताया।
मैं पूछता हूं जिसकी अस्मत गई, जान गई जिसकी।
वो पूरी ही गई, या परसन्टों में अस्मत लुटी उसकी?
कुछ हो शेष लज्जा इंसानियत के नाते तो
आंकड़ों से दरिंदगी को न भुलाएं।
कितनी और कथाएं...
कितने लेख लिखे जाएं।
मैं तो कहता हूँ कि
जब जल ही गई
सचमुच की कविता
तब इस कविता को क्या पढ़ना?
चलो इसे भी आग लगाएं।
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अति सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंसुपर
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील कविता
जवाब देंहटाएं