सोमवार, दिसंबर 16, 2019

एक बेरोजगार का प्यार:अखिलेश पटेल की कविता

एक बेरोजगार का प्यार
अखिलेश पटेल

एक-दूजे से प्यार था भारी,
और प्यार पर भारी बेरोजगारी!

हे! प्राणाधार, हे! प्रियवर,
बतलाओ कब बसेगा हमारा घर?

प्रेमी युवक ने कहा, हे प्रियतमा, हे सखी!
शादी-शादी की रट तू क्यों लगा रखी?

देखती हो प्रियतमा, कितनी मंहगाई है,
चारो तरफ मंदी छाई है।

ऐसे में घर में होगा उजाला कैसे,
तुम मेरी याद में बसी रहो बस ऐसे।

जैसे नदी के हों हम दो किनारे,
जैसे चांद को चकोर निहारे!

बहुत दिन हुए शहर में रहते!
बहुत हो गया पढ़ाई करते-करते।

अब लोग पूछते हैं बताओ क्या करते,
उन्हें बताएं क्या पाया हमने शहर में रहके!

हे प्रियतम! ये क्रम कब खत्म करोगे,
सूनी है मांग, उस पर सिंदूर कब भरोगे?

देखो, हे प्रियतमा, हे सखी सुकुमारी।
कुछ समझो हम बेरोजगारों की लाचारी।

फॉर्म जो चार साल पहले हमने भरा था,
जिसकी आस में मन कुछ हरा था।

कोई लेकर बहाना कोर्ट चला गया,
क्या करूं मैं इसी तरह छला गया।

कुछ और परीक्षाएं थी दी हमने,
एक साल हो गए, लोग भी लगे कहने।

कि परिणाम क्यों अभी तक नहीं आया,
सरकार ने इस बीच दो झंडा फहराया।

कोई कह रहा अगले चुनाव की प्रतीक्षा है।
विज्ञापनों के असर की जारी समीक्षा है।

परीक्षाएं अब कुछ इस तरह हो रही हैं।
एक परीक्षा न जाने कितनी सरकारों को ढो रही हैं।

चुनाव से पहले विज्ञापन आता है,
और अगले चुनाव से पहले पेपर हो जाता है।

उसके अगले चुनाव के पहले रिज़ल्ट आ जाता है।
और अगले चुनाव के ठीक पहले भर्ती का आश्वासन मिल जाता है।

इधर चुनाव होते हैं, कोई सरकार नया बनाता है।
उधर सरकार बनते ही भर्ती पर कोर्ट का स्टे लग जाता है।

कोर्ट भी इसी तरह पंचवर्षीय योजनाओं की तरह।
एक पेशी, दो पेशी, तीन पेशी, पेशी पर पेशी बुलाता है।
अंत मे जब निर्णय आता है, जाने किसके हक़ में जाता है।

कभी-कभी तो यह भी होता है।
वर्षों पुराना विज्ञापन रद्द हो जाता है।

और अगर रदद् हो गया इस बार,
तुम्हीं बताओ भला कैसे करेंगे प्यार?

इसीलिए कहता हूँ, इस वक़्त को यूं ही टालो।
शादी का विचार, मन से अब तो हटा लो।

अब हम शादी नहीं, पंचवर्षीय प्यार किया करेंगे।

नौकरी मिल गयी तो ठीक, नहीं तो इसका रिन्यू कर लिया करेंगे।
रचना:अखिलेश  कुमार पटेल 
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