मन की बातें
सतीश कुमार सोनी
देख चिड़ियों का यह रैन बसेरा, लगता है मुझको अपना ही डेरा।
इनको देख बड़ा मन मुस्काए,
काश! मुझको फिर से ऐसा बचपन मिल जाए।
चीं-चीं करके दाना खातीं,
लगता है मुझको यह समझातीं।
आंख खुले और झट उड़ जाएं,
काश! मुझको फिर से ऐसा बचपन मिल जाए।
चिड़ियों का यह देख हौसला,
मेरा मन मुझसे यह बोला।
चल अब कुछ करके दिखलाएं,
सारे सपने सच कर जाएं।
काश! मुझको फिर से ऐसा बचपन मिल जाए।
रचना:सतीश कुमार सोनी
जैतहरी, जिला-अनुपपुर (म.प्र.)
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मधुर शब्दो की जादूगरी,,, नमन हर एक पंक्ति को,,,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर🙏
हटाएंRejuvenated@Satish
जवाब देंहटाएंशुक्रिया,धन्यवाद सर।🙏
जवाब देंहटाएंProud of you dear satish mere dost nice childhood yaad dila diye bhai
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मित्र।
जवाब देंहटाएंकाव्य जगत में स्वागत है - 👆👆👌👌
जवाब देंहटाएंमनभावन रचना
धन्यवाद गगन सर 🙏
जवाब देंहटाएंशानदार सतीश....👍
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मित्र।
हटाएंमेरा हौसला बढ़ाने के लिए शुक्रिया। कृपया कमेंट के साथ अपना नाम भी लिखें या ब्लॉग पर अपने ईमेल से साइन अप करें।
👍👍👍👌👌👌👌
जवाब देंहटाएं🙏🙏
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