बुधवार, सितंबर 11, 2019

वाह रे! चिड़िया तेरा ज्ञान:अखिलेश कुमार की कविता

वाह रे! चिड़िया तेरा ज्ञान
अखिलेश कुमार पटेल 
वाह रे! चिड़िया तेरा ज्ञान
तुझे क्या पता दर्पण में क्या छिपा है
किसने सिखाया तुझे दर्पण में  झांकना 
क्या करेगी अपना प्रतिबिंब देखकर 
क्या तुझे भी अपने जीवन पर गर्व है?

वाह रे! चिड़िया तेरा ज्ञान
क्या जरूरत तुझे मान - सम्मान का
क्या जरूरत तुझे अवगुणों को दूर करने का
क्या जरूरत तुझे लोगों को सीख देने की 
क्या जरूरत तुझे शान - शौकत का

वाह रे! चिड़िया तेरा ज्ञान
कहीं किसी ने तुझे भेजा तो नहीं
पृथ्वी पर जा, मनुष्य को दर्पण दिखा
क्यों तू बार - बार दर्पण के पास आती
तुझे क्या पता मनुष्यता की बीमारी 
कहीं तू भी इसी का शिकार तो नहीं 
वाह रे! चिड़िया तेरा ज्ञान

चिड़िया ने कहा 
हे! पृथ्वी के मनुज झाँक दर्पण को तू
भूल तेरी दर्पण से न  छिपा
जिसने देखा, नये जीवन का सच दिखा है
तुममें से कुछ को गगन  दिखा
कुछ तारे नभ के तोड़ रहे हैं 
कुछ परिंदे बिखर पड़े धन - दौलत में
कुछ दरिंदे छिपे पड़े मोह माया में
देख दर्पण क्या तेरी आभा है क्या तेरी आशा है
जो आता है, वह जाता है 
क्यों कालिख चेहरे पर मलता है 
तू जैसा है वह दर्पण में दिख जाता है 

मनुष्यता ने अपनी आँखें मींची 
चिड़िया को  दर्पण में चोंच से टिक-टिक करते देखा 
उसने भी अपने जीवन का दर्पण देखा 
उसकी दुनिया बिल्कुल वैसी ही थी
जैसा उसके मन के भीतर था
उसके जीवन के दर्पण से
कुछ बाहर निकालना  चाहा
पर चिड़िया की ही तरह वह चोंच से सिर्फ टिक-टिक करता रहा
जीवन का सच सिर्फ दिख सकता है दर्पण से बाहर निकलता नहीं!    

हम मान गये तेरा ज्ञान   
वाह रे! चिड़िया तेरा ज्ञान
रचना: अखिलेश कुमार पटेल,
वार्ड क्रमांक-20, उकसा, तहसील-ब्योहारी जिला शहडोल (मध्यप्रदेश)
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30 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    1. क्या लिख रहे हैं, एक बार जांचें।
      पोस्ट में पधारने का शुक्रिया।

      हटाएं
  2. बहुत बहुत स्वागत वंदन व अभिनंदन..............!

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