दुर्गादत्त एक
अविवाहित हट्टा-कट्टा नवयुवक है। कहते हैं आध्यात्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति
है, साथ ही समाज में अच्छी प्रतिष्ठा है। लोग कहते
हैं कुलीन खानदान का सांस्कारिक लड़का है। एक मध्यमवर्गीय परिवार के लड़की के पिता
को अपनी बिटिया के लिए ऐसा लड़का मिल जाय और क्या चाहिए? इसी
संस्कार के कारण सुमन के पिता को दुर्गादत्त पसंद आ जाता है और वे
अपनी फूल जैसी बिटिया का हाथ दुर्गादत्त को जीवन भर के लिए सौंप देते हैं।
शादी के दो-तीन वर्षों तक ऐसा महसूस हुआ कि
सुमन बहुत ही खुशहाली से अपना जीवन बिता रही है। पहनने-ओढ़ने एवं गहने-जेवर की कमी
न थी। बस यही ऊपरी साज-सज्जा व्यक्ति के अंदरूनी दुःखों पर पर्दा डाले रहती है।
धीरे-धीरे समय के साथ बदलाव आया और पता चला कि सुमन आए दिन बीमार रहती है। बीच-बीच
में उसके झाड़-फूँक एवं इलाज की खबर भी मिलती रहती। साथ ही साथ दुर्गादत्त के
संवेदनशीलता का पर्दाफाश भी होने लगा। कभी पता चलता कि वह बाजार से मनमानी गोली
दवाई खरीदकर सुमन को खिला रहा है, तो कभी-कभी लम्बे समय तक बिना दवाई के
बीमार रही आती. अब वह उसके दवाई के खर्च पर खीझता भी
है। उसके असाधारण व्यवहार से सुमन को मानसिक प्रताड़ना भी होने
लगी।
ससुराल
में पति के अलावा सुमन की सास थी जिसको सुमन से बिल्कुल लगाव न
था। सुमन अपनी व्यथा किससे कहती। मायके में शादी योग्य उससे छोटी तीन
बहनें और भी थीं। जिनकी शादी का बोझ उसके सेवानिवृत्त पिता पर था। सुमन की तबियत ज्यादा
खराब होने पर यह बात उसके मायके वालों को भी पता चल गई। वे भी सुमन को देखने आते
एवं यथाउचित आर्थिक मदद भी करते। धीरे धीरे दुर्गादत्त सुमन के इलाज का पूरा खर्च
मायके वालों से चाहने लगा। और इसी बीच सुमन की गंभीर
बीमारी का पता चला कि उसकी दोनों किडनी खराब हो चुकी हैं और उसकी बाकी साँसें
डायलिसिस पर ही निर्भर हैं। अब वह अपने पति के लिए जिन्दा लाश से ज्यादा कुछ न थी।
सुनने में तो यह भी आता कि सुमन के पति उसे भूखा भी रखने लगें हैं। वह खाने के लिए
तड़पती है। यह तो निष्ठुरता की पराकाष्ठा ही कही जायेगी। ऐसे हालात में एक दिन
सुमन के मायके वाले उसे अपने घर ले गये।
घर में
सेवानिवृत्त बूढ़े पिता, माँ, तीन अविवाहित बहनें
एवं एक बेरोजगार भाई है। हर महीने लगभग बीस हजार रुपए की दवाई का खर्च
उसके पिता पर है। सुमन की दबे पाँव आती मौत से सारा घर सहमा
है। यज्ञ अनुष्ठान में व्यस्त दुर्गादत्त अब सामान्य जीवन जी रहा है. उसके जीवन
में अब सुमन का कोई अस्तित्व नही है; दूसरी ओर सुमन भी
उसकी जिंदगी की बची हुई साँसें गिन रही है. बस उसे इस
बात का संतोष है कि वह चैन से मर तो सकेगी !
प्रस्तुति- राजेन्द्र कुमार शुक्ल
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