सोमवार, अगस्त 19, 2019

जागो युवाशक्ति तुम




जागो युवाशक्ति तुम,
तुम ही समय के संरक्षक हो.
तुम ही हो राहगीर पथ के,
तुम ही पथ प्रदर्शक हो.

देखो, हर कोई जहर घोल रहा,
तुम्हारी आती-जाती सांसों में.
पकडाने को आतुर है खंजर,
हर कोई तुम्हारे हाथों में.
तुम ही हो विकास पुरुष,
तुम ही  तो धरा के वंशज हो.       जागो युवा शक्ति तुम .......

आजादी के इतने वर्षों में भी,
विकाश रुदन क्यों करता है.
जिसने ही  पायी कुर्सी,
कोष उसी का हो जाता है.
कुछ ऐसा करके दिखलाओ,
जिससे ऊंचा मस्तक हो.           जागो युवा शक्ति तुम ........

कितना अवसर है, कितना काम यहाँ,
गाँव-गाँव, गलियारों में.
है उम्मीद तुम्हीं से,
और तुम्हारे यारों में.
कोई तो उपाय करो,
तुमसे ही कोई जतन हो.         जागो युवा शक्ति तुम.....

अम्बर बदन दिखाता,
धरती रोती पानी को.
वह दिन दूर नहीं जब कोई लिखेगा,
धरती की कहानी को.
तुम आशापुन्ज बनो,
तुम जीवन के समर्थक हो.       जागो युवा शक्ति तुम .....

देख अशिक्षा और रूढ़ियाँ,
तुमको बिरियाती हैं.
राजनीति के संरक्षण में,
नारियां लुट जाती हैं.
कौरवों के दरबार में,
कृष्ण बन अवतरित हो.         जागो युवा शक्ति तुम ......

प्रस्तुति- सुरेन्द्र कुमार पटेल
(प्रस्तुतकर्ता की अनुमति के बिना यह रचना कहीं भी प्रकाशित/प्रसारित नहीं की जा सकती)
[इस ब्लॉग पर प्रकाशित रचनाएँ नियमित रूप से अपने व्हाट्सएप पर प्राप्त करने तथा ब्लॉग के संबंध में अपनी राय व्यक्त करने हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें] 



 

  


3 टिप्‍पणियां:

  1. कई बार मनुष्य उस मेंढक की तरह बरताव करता है जिसे सामान्य पानी से भरे बर्तन में डाला जाए और फिर उस पानी को धीरे धीरे गरम किया जाय तो मेंढक प्रतिक्रिया नही करता बल्कि उससे एडजस्टमेंट बैठाने का प्रयास करने लगता है। उसकी संवेदनशून्यता में एक दिन पानी इतना गरम हो चुका होता है कि उसमें बाहर कूदने जा साहस नही बचता। हम सब रोज देखते हैं, सुनते हैं और एडजस्टमेंट बैठाते हैं। संघर्ष जैसे मानवीय गुणों को हमने युद्ध के लिए सुरक्षित करके रखा है। और युद्ध की भी नौबत इस लिए आ जाती है कि हमने हर दिन संघर्ष नही किया। इसलिए हमें जीवन को एक संघर्ष की तरह जीना है।

    आपकी कविता इसीका आह्वान करती है , बहुत सुंदर चित्रित किया है अपने ।

    जवाब देंहटाएं
  2. लिखते समय बस में यात्रा कर रहा हूँ, वर्तनी की अशुद्धियों कब लिए क्षमा करें।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रदीप जी, आपकी विस्तृत टिप्पणी के लिए खुले मन से आभार।आपकी टिप्पणियों की हमें हमेशा प्रतीक्षा होती है।

      हटाएं

कृपया रचना के संबंध अपनी टिप्पणी यहाँ दर्ज करें.