वर्षा ऋतु (कविता)
(प्रस्तुत है श्री राम सहोदर पटेल जी की वर्षा ऋतु पर कविता )
आई है ऋतु की रानी, धरणी श्रंगार करने।
काली घटा घनेरी, घम-घम-घमा घुमड़ने॥
गरजे घुमड़-घुमड़ के ज्यों ढोल लगे बजने।
चम-चम से चपला चमके, अम्बर लगा है सजने।
झम-झम-झमा से झूमे, झर-झर लगा है झरने।
चहुओर छाई खुशियाँ, वृष्टि हिलोर उठने।
भये दादुरादि चारण, गायें है गीत सबने।
केकी बनी है नर्तक, वर्षा के रंग में रंगने।
उमड़ी है तटनी तट की, सीमा को लगी लघने।
सूखा का कहर भागा, श्यामल धरा है लगने।
थी सूर्य की प्रखर से तापिश हो जगु झुलसने।
थी जेठ की ऊमस में, छाया भी छाँव तकने।
अब आई वर्षा रानी, लागे है मन हुलसने।
उमंगें प्रकृति है सारी, खग-मृग खुशी छलकने।
खेतों में बीज रोपे, कृषकों के हल हैं चलने।
धरणी की प्यास भागी, अंकुर से लगी सजने।
बीथिन में कीच प्रसरी, केचुले लगे सरकने।
मल-मूत्र, कूड़ा-कचरा, धारा के संग में बहने।
सन्देश देता जग को, निर्मल हो रब के गहने।
सम्पूर्ण हुई वसुधा, नहिं जीव कोइ दुख में।
रानी है वर्षा ऋतु की, चाहे सहोदर लिखने।
रचना: राम सहोदर पटेल (शिक्षक)
ग्राम-सनौसी, तह. जयसिंहनगर थाना-ब्योहारी जिला
शहडोल(म.प्र.)
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